Disadvantages of Planting Eucalyptus Tree: अगर किसान अतिरिक्त कमाई के लिए खेतों के किनारे मेड़ पर पेड़ लगाना चाहते हैं, तो ऐसे में इस पेड़ को भूलकर भी नहीं लगाना चाहिए.
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Side Effects of Neelgiri Tree: भारत एक कृषि प्रधान देश है. ऐसे में किसानों के लिए तमाम तरह की कृषि मित्र योजनाएं भी बनाई जाती हैं. किसान एक्स्ट्रा कमाई के लिए उन तौर तरीकों को भी अपनाता है. ऐसा ही एक तरीका खेतों में पेड़ लगाना है. दरअसल, किसान अपने खेतों की मेड़ पर पेड़ लगवाना ज्यादा पसंद करते हैं. ऐसे पेड़ लगभग डेढ़ से 5 साल में बड़े हो जाते हैं. ऐसे पेड़ों की देखभाल और इन्हें खाद-पानी की ज्यादा जरूरत नहीं होती है. वहीं, इनकी लकड़ियां बाजार में काफी महंगी बिकती हैं. इनमें कुछ ऐसे पेड़ हैं, जिन्हें भूलकर भी नहीं लगाना चाहिए.
दरअसल, कुछ पेड़ हैं जिन्हें भूलकर भी नहीं लगाना चाहिए. वरना ये फायदा देने के बजाए हमारे खेतों को बंजर बना देते हैं. उनमें से एक नाम यूकेलिप्टिस का है. यूकेलिप्टिस को हम सफेदा के नाम से भी जानते हैं. बता दें कि इसे नीलगिरी के पेड़ के नाम से भी जाना जाता है. आइए बताते हैं पूरा मामला.
जमीन में मौजूद पोषक तत्वों को सोख लेता है ये पेड़
इस मामले में वनस्पति विज्ञान के एक्सपर्ट्स की मानें तो यूकेलिप्टिस लगाने (Disadvantages of Eucalyptus Tree) के लगभग पांच साल में ये अपना पूरा रूप हासिल कर लेता है. तब इसका पेड़ यानी लगभग 25-30 फुट लंबा हो चुका होता है. इस विशालकाय पेड़ की लकड़ियों को बेचकर ठीक-ठाक पैसे कमा सकते हैं. वहीं, इस पेड़ को लगाने के कई साइड इफेक्ट भी हैं. दरअसल, ये पेड़ जमीन का पानी और मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों को सोखकर, भूमि को बंजर बना देता है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस पेड़ को हर दिन लगभग 12 लीटर पानी और काफी पोषक तत्वों की जरूरत होती है. ऐसे में अगर सिंचाई के लिए पेड़ को पानी न मिले, तो इसकी जड़ें भूजल को सोखने लगती हैं. इससे आस-पास के इलाके में भूगर्भ जलस्तर काफी नीचे चला जाता है.
कई इलाकों में इस पेड़ के लगाने पर लगा बैन
आपको बता दें कि इस मामले से जुड़ी कई रिपोर्ट्स से जानकारी मिलती है कि जिन इलाकों में यूकेलिप्टिस (Disadvantages of Planting Eucalyptus Tree) की खेती होती है, वहां का भूगर्भ जलस्तर, बाकी दूसरों स्थानों की तुलना में बहुत नीचे जा चुका है. कई बार ऐसे हालात भी देखने को मिलते हैं कि प्रशासन ने ऐसे इलाकों को डेंजर जोन घोषित कर दिया. इसके बाद उन इलाकों में सफेदे का पेड़ लगाना तक बैन कर दिया गया. कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो ये पेड़ उस मिट्टी को दूसरी खेती के लायक नहीं छोड़ता. ये मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों को बुरी तरह से बर्बाद कर चुका होता है.
अंग्रेजों ने शुरू किया ये पेड़ लगाना
एक रिपोर्ट की मानें तो भारत में यूकेलिप्टिस की खेती (Disadvantages of Planting Eucalyptus Tree) का चलन अंग्रेजों ने शुरू किया. उन्होंने इस पेड़ को दलदली और पानी वाले इलाकों को सुखाने के लिए लगवाना शुरू किया. इससे उन इलाकों में नमी खत्म होती चली गई. वहीं, इन पेड़ों की लंबाई अन्य पेड़ों की तुलना में अधिक होती है. इसे बेचकर बड़ी आसानी से मुनाफा कमाया जा सकता है.
इन इलाकों में लगाएं ये पेड़
आपको बता दें कि मौजूदा समय में भूगर्भ जलस्तर काफी नीचे जा चुका है. ऐसे में यूकेलिप्टिस का पेड़ (Neelgiri Tree) मुनाफे का सौदा नहीं मुसीबत का सबब बनता जा रहा है. शायद यही वजह है कि अधिकतर किसानों ने इस पेड़ को लगाने से तौबा कर लिया है. वहीं, कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो इस पेड़ को नहर, तालाब, नदी या दलदली जमीन के पास लगाना फायदेमंद हो सकता है. अन्य जगहों पर इसे लगाना जमीन को बंजर बनाने जैसा ही है.