Saharanpur ka Itihaas: यूपी के लगभग सभी शहर सैकड़ों साल पुराने इतिहास को समेटे हुए है. कई ऐतिहासिक क्षणों के साक्षी भी हैं. ऐसे में आज हम सहानपुर का जिक्र कर रहे हैं, जिसके नाम को लेकर कई दावे किए जाते रहे हैं. इस शहर के कई हिस्सों में खुदाई के दौरान सिंधु घाटी सभ्यता के निशान मिले हैं. पढ़िए
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Saharanpur ka Itihaas: उत्तर प्रदेश का सहारनपुर...जिसे कभी 'शाह-हारुनपुर' के नाम से जाना जाता था, लेकिन मुगल बादशाह अकबर के शासन काल में इसे मौजूदा नाम मिला. यह शहर खुद में सैकड़ों साल पुराने इतिहास को समेटे हुए है. जिले के कई हिस्सों में जब खुदाई की गई तो सिंधु घाटी सभ्यता के निशान मिले. मौजूदा समय में सहारनपुर अपने लकड़ी के नक्काशीदार कुटीर उद्योग के लिए दुनियाभर में काफी मशहूर है. यह शहर उत्तर और उत्तर-पूर्व में शिवालिक पहाड़ियों से घिरा हुआ है, जोकि इसे देहरादून से अलग करता है. कभी हरिद्वार भी सहारनपुर का हिस्सा हुआ करता था.
क्या है शहर का इतिहास?
कहा जाता है कि सहारनपुर का इतिहास लगभग 2000 साल पुराना है. इसका इतिहास बेहद तार्किक तरीके से मिलता है, लेकिन मौजूदा वक्त में खुदाई के बिना स्थानीय राजाओं के इतिहास और प्रशासन का पता लगाना बेहद मुश्किल है. समय बीतने के साथ, इसका नाम तेजी से बदल जाता है. इल्तुतमिश के शासनकाल में सहारनपुर गुलाम वंश का एक हिस्सा बना. 1340 में शिवालिक राजाओं के विद्रोह को कुचलने के लिए मुहम्मद तुगलग उत्तरी दोआब तक पहुंच गया था. वहां उसे ‘पाऊधोई’ नदी के तट पर एक सूफी संत की मौजूदगी का पता चला. वह उन्हें देखने के लिए गया और इस जगह को शाह हरुण चिस्ती के नाम पर ‘शाह-हारनपुर’ नाम रखा गया. हालांकि, इतिहासकार इसकी पुष्टि नहीं करते.
कैसे पड़ा शहर का नाम?
रिपोर्ट्स की मानें तो अकबर पहले मुगल शासक थे, जिनके शासनकाल में सहारनपुर में नागरिक प्रशासन की स्थापना की गई. दिल्ली प्रांत में ‘सहारनपुर-सरकार’ बनाया गया और एक राज्यपाल नियुक्त किया गया. कहा जाता है कि लगभग 650 साल पहले सहारनपुर के शासक राजा शाह रणवीर सिंह के नाम पर इसका नाम पड़ा. इससे पहले यह क्षेत्र एक छोटा सा गांव हुआ करता था और सेना का केन्ट क्षेत्र था. उस समय कि सबसे निकट बस्तीयां शेखपुरा और मल्ल्हिपुर थी. सहारनपुर का अधिकांश भाग जंगलों से घिरा हुआ था.
शहर का मुगल कनेक्शन
सहारनपुर में अकबर ने दो टकसालें स्थापित की थीं. एक सहारनपुर में और दूसरी ज्वालापुर में थी. इन टकसालों में सिक्के ढाले जाते थे. शाहजहां ने सहारनपुर को जागीर के रूप में राजा शाह रणवीर सिंह को सौंपा था. सहारनपुर में आज भी कई जगहों पर पुराने समय के चिन्ह देखे जा सकते हैं. यहां शाहजहां और मुमताज ने भी समय बिताया था. क्षेत्र में रायवाला जैसी दलदली मिट्टी वाली जगहें थीं, जिन्हें धीरे-धीरे विकसित किया गया. ऐसा कहा जाता है कि राजा शाह रणवीर सिंह के शासनकाल में शहर का विकास शुरू हुआ था. हालांकि सहारनपुर के नामकरण को लेकर अलग-अलग मत हैं.
अग्रेजों के कब्जे में शहर
1803 में सहारनपुर अंग्रेजों के पास गया. फिर दारूल उलूम देवबंद के संस्थापकों ने सक्रिय रूप से विद्रोह में भाग लिया, दिल्ली के बाहर जनता को संगठित किया और कुछ समय के लिए ब्रिटिश अथॉरिटी को बाहर करने में सफल हुए. मौजूदा वक्त में मुजफ्फरनगर का एक छोटा कस्बा, शामली उनकी गतिविधियों का केंद्र था. 1857 के बाद, मुस्लिमों के सांस्कृतिक और राजनीतिक इतिहास अलीगढ़ और देवबंद के चारों ओर फैला. 1867 में मौलाना नानोत्वादी और मौलाना राशिद अहमद गंगोह ने देवबंद में एक स्कूल की स्थापना की. यह दारूल उलूम नाम से लोकप्रिय हो गया. यह स्कूल अंग्रेजों को भारत से बाहर करने के लिए क्रांतिकारी गतिविधियों में अहम भूमिका निभाई थी.
कब जिला बना सहारनपुर?
1997 में सहारनपुर को उत्तरप्रदेश के सहारनपुर डिवीजन के रूप में दर्जा मिला. 1 अक्टूबर 2009 को शहर ने सहारनपुर नगर निगम के रूप में जगह हासिल की. उत्तर प्रदेश राज्य में 13 वीं नगर निगम है. यह सहारनपुर जिला और सहारनपुर डिवीजन का प्रशासनिक मुख्यालय है. आज के समय में यहां घूमने के लिए कई ऐतिहासिक स्थल मौजूद हैं, जो समृद्ध इतिहास की गवाही देते हैं.