Dhanteras 2022: जिंदा-सी दिखने वाली चांदी की मछली के बिना अधूरी है बुंदेलखंड की दिवाली, प्रिंसेस विक्टोरिया से है खास कनेक्शन
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Dhanteras 2022: जिंदा-सी दिखने वाली चांदी की मछली के बिना अधूरी है बुंदेलखंड की दिवाली, प्रिंसेस विक्टोरिया से है खास कनेक्शन

Dhanteras 2022: हमीरपुर के मौदहा में एक परिवार पीढ़ियों से चांदी की मछली बनाता आ रहा है. इस परिवार के बुजुर्गों ने विक्टोरिया राजकुमारी को मछली भेंट की थी. 

 

Dhanteras 2022: जिंदा-सी दिखने वाली चांदी की मछली के बिना अधूरी है बुंदेलखंड की दिवाली, प्रिंसेस विक्टोरिया से है खास कनेक्शन

रवींद्र निगम/हमीरपुर: देश भर में दिवाली (Diwali 2022) के त्योहार की धूम देखने को मिल रही है. यूपी के बुंदेलखंड में भी दीपावली आते ही चांदी की मछली (Importance of Silver Fish) की धूम मच जाती है. यहां हमीरपुर में असल सी दिखने वाली चांदी की मछली (Hamirpur Silver Fish) के बिना दिवाली (Diwali 2022) और धनतेरस (Dhanteras 2022) की पूजा अधूरी मानी जाती है. नतीजतन यहां हर घर में चांदी की मछली खरीदी जाती है. लोग अपनी आर्थिक स्थिति के हिसाब से खरीदारी करते हैं. जिसकी जितनी भारी जेब होती है, वो उतनी बड़ी मछली खरीदता है. दीपावली में इस मछली की बुंदेलखंड के साथ-साथ पूरे देश में डिमांड बढ़ जाती है. 

दिवाली में बढ़ जाती है डिमांड 
पहली नजर में लोगों का ध्यान खींचने वाली जिंदा सी दिखने वाली मछली शुद्ध चांदी से बनी है. दीपावली के त्योहार के चलते इस मछली से बाजार पटा पड़ा है. छोटी और बड़ी हर किस्म की खूबसूरत मछलियां तो पूरे साल बिकती हैं, मगर दीपावली के मौके पर इसकी मांग काफी बढ़ जाती है. इसकी आपूर्ति करने में बनाने वालों को खासी मशक्कत करनी पड़ती है.

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मछली की पूजा का है विशेष महत्व (Importance of Silver Fish in Dhanteras Pooja)
दरअसल, बुंदेलखंड में दिवाली की पूजा में चांदी की मछली के पूजन की परंपरा बहुत पुरानी है. यही वजह है कि लोग पैसे खर्च कर इन मछलियों को खरीद कर पूजा करते है. हिंदू धर्म में मीन (चांदी की मछली) को शुभ और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. धार्मिक जानकारों के मुताबिक, भारतीय परंपरा में आस्था और विश्वास के आधार पर खास पर्वों पर चांदी की मछली रखना शुभ माना जाता है. यही वजह है कि दीवाली पर भी कई लोग चांदी निर्मित विशेष मछली की पूजा करते हैं. 

आइने-अकबरी में दर्ज है परिवार का नाम 
घर-घर के पूजा स्थलों में अपनी पैठ बनाने वाली यह चांदी की मछली 5 ग्राम से लेकर एक किलो तक के वजन तक बाजार में उपलब्ध है. लेकिन पूरे देश में सिर्फ हमीरपुर जिले के मौदहा कस्बे में एक परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी इसे बनाता आ रहा है. अंग्रेजी हुकूमत में इस परिवार के बुजुर्गों ने विक्टोरिया राजकुमारी को चांदी की मछली भेंट की थी. तब राजकुमारी ने मछली की खूबसूरती देखकर इन्हें एक मेडल भी दिया था. अपनी इस खास कला के कारण इस परिवार का नाम आइने-अकबरी पुस्तक में भी दर्ज है.

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हाथ से बनाई जाती है यह खास मछली 
इन मछलियों को लोग अलग-अलग तरीके से इस्तेमाल करते हैं. कोई कोट में लगाता है, तो कोई कान में पहनता है. इसके अलावा बच्चे गले में भी पहनते हैं. घरों के पूजा स्थलों के अतिरिक्त यह ड्राइंग रूम में भी शोभा बढ़ाती हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि आज तक ये मछलियां सिर्फ हाथों से ही बनाई जा रही है. हस्त कला और दस्तकारी का यह नायब नमूना किसी को भी अपना दीवाना बनाने की कूबत रखता है.

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