ज्यादातर लोगों को इतना ही पता होगा कि शामली जो कभी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर की चर्चित तहसील हुआ करता था अब एक जिला है लेकिन शामली का एक पौराणिक इतिहास भी है जो इसे महाभारत काल से जोड़ता है. यह भगवान श्याम की नगरी यानी श्यामली कहलाता था.
शामली के चार सिद्धपीठ शिवमंदिरों का इतिहास महाभारत और मराठा काल से जुड़ा है. कहा जाता है कि द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने अर्जुन के साथ कुरुक्षेत्र जाते समय यहां एक रात बिताई थी.
गुलजारी वाला शिव मंदिर, श्री हनुमान धाम में मनकामेश्वर मंदिर, भाकूवाला शिव मंदिर, और सदाशिव मंदिर - चारों दिशाओं में स्थित हैं, जहां 40 दिन तक जलाभिषेक करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
कैराना रोड पर स्थित गुलजारी वाला शिव मंदिर का इतिहास 850 साल पुराना है और यह मंदिर मराठाकाल में बना था. श्रावण मास में यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है, और मंदिर का विशेष शृंगार किया जाता है.
इस मंदिर का शिवलिंग स्वयंभू है और इसका निर्माण इस तरह किया गया है कि सूर्य की पहली किरण सीधे शिवलिंग पर पड़ती है. कांवड़ यात्रा के दौरान यहां भंडारा भी आयोजित होता है.
माजरा रोड पर स्थित भाकूवाला शिव मंदिर महाभारत काल से जुड़ा हुआ है और यहां 51 फीट ऊंची भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित की गई है. विशेष रूप से शिवरात्रि के अवसर पर हजारों श्रद्धालु यहां जलाभिषेक करने आते हैं.
रेलपार मोहल्ले में स्थित सदाशिव मंदिर में नर्मदाश्वेर महादेव की मूर्ति है. इस मंदिर की खोज बाबा देव गिरी ने की थी, और सावन मास में यहां शिवपुराण कथा का आयोजन होता है.
सदाशिव मंदिर का भी निर्माण मराठाकाल में हुआ था. शिवरात्रि के अवसर पर यहां भंडारा आयोजित किया जाता है और श्रद्धालु बड़ी संख्या में पूजा-अर्चना के लिए आते हैं.
श्री हनुमान धाम में स्थित मनकामेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है. भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र जाते समय इस स्थान पर रात्रि विश्राम किया था.
हनुमान धाम में द्वादश ज्योतिर्लिंग की स्थापना हो रही है. यहां सावन मास में कांवड़ शिविर, रामलीला आयोजन, दशहरा मेला और चैत्र में बुढ़ा बाबू का मेला आयोजित किया जाता है.
यहां बताई गई सारी बातें धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं. इसकी विषय सामग्री और एआई द्वारा काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.