Sawan 2024: सावन शुरू हो गए हैं. इस लेख में हम आपको त्रिपुण्ड के बारे में बताने जा रहे है और साथ में यह भी समझाएंगे कि इन 3 रेखाओं का क्या महत्व है.
सावन का पवित्र महीना शुरू हो गया है. यह माह शिवजी को बहुत प्रिय है. इस पूरे माह भक्त पूरी श्रद्धा से भगवान शिव और उनके परिवार की पूजा की जाती है. पूरे माह भक्त पूरी श्रद्धा से भगवान शिव और उनके परिवार की पूजा की जाती है.
हिंदू शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव को देवों का देव कहा जाता है.भगवान शिव को बेलपत्र, फूल, धतूरा, दूध अभिषेक आदि करने से भी प्रसन्न किया जा सकता है. इसके साथ ही भगवान शिव को चंदन से तिलक लगाने के अलावा त्रिपुंड लगाना शुभ माना जाता है.
ललाट आदि सभी स्थानों में जो भस्म से तीन तिरछी रेखाएं बनायी जाती हैं, उनको त्रिपुंड (Tripund) कहा जाता है.महादेव की पूजा के समय उन्हें चंदन या फिर भस्म का त्रिपुंड लगाया जाता है. भौहों के मध्य भाग से लेकर जहां तक भौहों का अंत है, उतना बड़ा त्रिपुंड ललाट पर धारण करना चाहिए.
ज्यादातर लोग सोचते हैं कि त्रिपुंड लगाने से महादेव अति प्रसन्न होते होंगे, लेकिन शायद की आपको यह रहस्य पता हो कि त्रिपुंड लगाने से भगवान शिव की नहीं बल्कि 27 अन्य देवी-देवता और नवग्रह प्रसन्न होते हैं.
इस लेख में जानते हैं भगवान शिव को लगाने वाले त्रिपुंड का रहस्य और इसे किस तरह से लगाना हो सकता है शुभ. शिव पुराण (Shiv Puran) के अनुसार भस्म सभी प्रकार के मंगलों को देने वाला है. यह दो प्रकार का होता है
महाभस्म और स्वल्पभस्म महाभस्म के तीन प्रकार श्रौत, स्मार्त और लौकिक हैं. श्रौत और स्मार्त द्विजों के लिए और लौकिक भस्म सभी लोगों के उपयोग के लिए होता है.
द्विजों को वैदिक मंत्र के उच्चारण से भस्म धारण करना चाहिए. दूसरे लोग बिना मंत्र के ही इसे धारण कर सकते हैं. शिव पुराण (Shiv Puran) में बताया गया है कि जले हुए गोबर से बनने वाला भस्म आग्नेय कहलाता है. वह भी त्रिपुंड (Tripund) का द्रव्य है.
मध्यमा और अनामिका अंगुली से दो रेखाएं करके बीच में अंगुठे से की गई रेखा त्रिपुंड (Tripund) कहलाती है. या बीच की तीन अंगुलियों से भस्म लेकर भक्ति भाव से ललाट में त्रिपुंड धारण करें.
शिव पुराण में बताया गया है कि त्रिपुंड (Tripund) की तीनों रेखाओं में से प्रत्येक के नौ नौ देवता हैं, जो सभी अंगों में स्थित हैं.
शिवपुराण कथा के अनुसार, भगवान शिव को चंदन, लाल चंदन, अष्टगंध से त्रिपुंड लगाना चाहिए. अगर ये तीनों चीजें नहीं है, तो ऐसे ही अंगुली से लगा सकते हैं. इस बात का ध्यान रखें कि त्रिपुंड हमेशा बाएं नेत्र से दाएं नेत्र की ओर लगाना चाहिए.
अधिकतर लोग त्रिपुंड या शिव तिलक मस्तक पर लगाते हैं, बता दें कि शरीर के 32 अंगों पर त्रिपुंड धारण कर सकते हैं. मान्यताओं के अनुसार, त्रिपुंड शरीर के 32, 16, 8 या 5 स्थानों पर ही लगाने चाहिए.
मस्तक, ललाट, दोनों नेत्र, दोनों कान,मुख, कंठ, दोनों नासिका, दोनों कोहनी, दोनों कलाई, दोनों हाथ, नाभि,दोनों पाश्र्वभाव, हृदय, दोनों अंडकोष, दोनों उरु, दोनों पिंडली, , दोनों गुल्फ, दोनों घुटने और दोनों पैर पर लगा सकते हैं.
यदि आप त्रिपुंड शरीर के 5 स्थानों पर लगाना चाहते हैं तो वह स्थान मस्तक, दोनों भुजाओं, हृदय और नाभि पर लगा सकते हैं.
यहां दी गई सभी जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. Zeeupuk इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.