Budhwar Ke Upay: बुधवार को संकटनाशन गणेश स्तोत्र का करें पाठ, विघ्नहर्ता हर लेंगे सारे कष्ट
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Budhwar Ke Upay: बुधवार को संकटनाशन गणेश स्तोत्र का करें पाठ, विघ्नहर्ता हर लेंगे सारे कष्ट

Sankat Nashan Ganesh Stotra: संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ करने से भगवान गणपति प्रसन्न होते हैं. मान्यता है कि इसका पाठ करने से व्यक्ति के सभी संकटों का नाश होता है और बिगड़े काम बन जाते हैं. 

Sankat Nashan Ganesh Stotra

Budhwar Ke Upay: आज 14 जून दिन बुधवार है. हिंदू धर्म में बुधवार का दिन बेहद खास होता है. यह दिन भगवान गणेश (Lord Ganesh) और बुध देव को समर्पित माना जाता है. इस दिन गजानन की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है. मान्यता है कि गणेश जी प्रसन्न हो जाएं, तो भक्तों के सारे कष्ट हर लेते हैं. उन्हें विशेष आशीर्वाद देते हैं. बुधवार को उनकी पूजा में संकटनाशन गणेश स्तोत्र पढ़ना चाहिए. इस स्तोत्र को श्री संकटनाशन स्तोत्र अथवा सङ्कटनाशन गणपति स्तोत्र भी कहा जाता है. इसके पाठ से विघ्नहर्ता अपने भक्त के जीवन के सारे विघ्न हर लेते हैं. 

संकटनाशन गणेश स्तोत्र (Sankat Nashan Ganesh Stotra)

॥ श्री गणेशायनमः ॥
नारद उवाच -
प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम ।
भक्तावासं: स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये ॥1॥

प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम ।
तृतीयं कृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम ॥2॥

लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च ।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टकम् ॥3॥

नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम ।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम ॥4॥

द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर: ।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो ॥5॥

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ॥6॥

जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत् ।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय: ॥7॥

अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत ।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत: ॥8॥
॥ इति श्रीनारदपुराणे संकष्टनाशनं गणेशस्तोत्रं सम्पूर्णम्‌ ॥

बुधवार को इन पांच मंत्रों का करे जाप 

1. वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरुमे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।

2. विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लंबोदराय सकलाय जगद्धितायं।
नागाननाथ श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते।।

3. अमेयाय च हेरंब परशुधारकाय ते।
मूषक वाहनायैव विश्वेशाय नमो नमः।।

4. एकदंताय शुद्धाय सुमुखाय नमो नमः।
प्रपन्न जनपालाय प्रणतार्ति विनाशिने।।

5. एकदंताय विद्‍महे, वक्रतुंडाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात।। 

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