Powerloom Industry: शहर के बुनकरों ने अपने घरों में पावरलूम स्थापित किए हैं. टेक्सटाइल उद्योग से वे सूत लाते हैं और लूम के माध्यम से कपड़ा तैयार कर वापस लौटाते हैं. बुनकरों के साथ लूम चलाने और माल लाने- ले जाने के लिए मजदूर भी लगाए जाते हैं. सरकार की मदद से इस रोजगार शृंखला को और मजबूती मिलेगी. अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब मांगा है.
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Powerloom Industry: इलाहाबाद हाई कोर्ट में पावरलूम चलाने वाले छोटे बुनकरों ने राज्य सरकार को चुनौती दी है. पावरलूम चलाने वाले छोटे बुनकरों को बिजली बिल पर सब्सिडी देने की सरकारी नीति के खिलाफ दायर याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य की योगी सरकार से जवाब तलब किया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस पर तीन हफ्तों में जवाब मांगा है. दरअसल, पावरलूम चलाने वाले छोटे बुनकरों को बिजली दर बढ़ाने वाले 6 अप्रैल, 2023 के शासनादेश की वैधता को लेकर बवाल मचा हुआ है.
22 जुलाई को सुनवाई
अगली सुनवाई 22 जुलाई को होगी. ये आदेश न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी और न्यायमूर्ति सुरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने गोरखपुर के बुनकर अब्दुल वाला उर्फ अबुल वाला की याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है. याची की तरफ से अधिवक्ता कृपेश मिश्र ने बहस की.
कमीशन पर चलता है पावरलूम
याची के वकील की मानें तो अब्दुल का पूरा परिवार कमीशन पर पावरलूम चलाता है. उसके परिवार के पास नौ पावरलूम हैं. दो रुपये प्रति मीटर की दर से याची को प्रतिदिन 540 रुपये की आय होती है. अब्दुल वाला गरीब है. सरकार की ऐसे बुनकरों को बिजली बिल में सब्सिडी देने की नीति है. शासनादेश से मनमाने तौर पर बिल बढ़ा दिया गया है. जिसपर हाईकोर्ट ने जवाब मांगा है.
नए शासनादेश रद्द करने की मांग
दरअसल, छोटे पावरलूम बुनकरों को अटल बिहारी वाजपेई विद्युत फ्लैट रेट योजना जून 2006 के तहत विद्युत आपूर्ति कराई जा रही थी. 5 किलोवॉट से नीचे वाले सभी नगरीय बुनकरों को 130 रुपए प्रति पावरलूम हर महीने जमा करने का प्रावधान था. नए शासनादेश 2023 में प्रति पावरलूम हर महीने 800 रुपए किया गया है. याची ने छोटे पावरलूम बुनकरों को पुराने शासनादेश के अनुसार विद्युत आपूर्ति उपलब्ध कराने की मांग की है. हाईकोर्ट से याचिका में नए शासनादेश को रद्द करने की मांग की गई है.