Allahabad High Court: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि मकान मालिक अपनी संपत्ति की वास्तविक आवश्यकता का अंतिम निर्णायक होता है. किरायेदार यह तय नहीं कर सकता कि मकान मालिक अपनी संपत्ति का उपयोग कैसे करेगा. आइए जानते हैं किस मामले पर ये फैसला लिया गया?
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Allahabad High Court News: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि मकान मालिक अपनी संपत्ति के उपयोग और आवश्यकता का अंतिम निर्णायक होता है. कोर्ट ने यह टिप्पणी मऊ निवासी श्याम सुंदर अग्रवाल द्वारा दायर याचिका पर की, जिसमें उन्होंने मकान मालिक गीता देवी द्वारा दुकान खाली कराने की मांग को चुनौती दी थी.
क्या है मामला?
यह फैसला मऊ निवासी श्याम सुंदर अग्रवाल द्वारा दायर एक याचिका पर आया, जिसमें उन्होंने मकान मालिक गीता देवी की ओर से दुकान खाली कराने की मांग को चुनौती दी थी. गीता देवी ने अपने बेटों के लिए स्वतंत्र व्यवसाय शुरू करने के लिए दुकान खाली कराने का अनुरोध किया. उन्होंने तर्क दिया कि परिवार के मुखिया के निधन के बाद जीवन-यापन के लिए उनके बेटों को दुकान की आवश्यकता है.
किरायेदार के तर्क और कोर्ट का फैसला
किरायेदार ने दावा किया कि मकान मालिक के पास पहले से एक अन्य दुकान है, जिससे वे अपना व्यवसाय चला सकते हैं. हालांकि, कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया और सुप्रीम कोर्ट के शिव सरूप गुप्ता बनाम डॉ. महेश चंद्र गुप्ता मामले का हवाला देते हुए कहा कि मकान मालिक की आवश्यकता सर्वोपरि होती है.
कोर्ट की टिप्पणी
न्यायमूर्ति अजित कुमार ने कहा कि मकान मालिक अपनी संपत्ति की वास्तविक आवश्यकता का निर्णायक होता है. किरायेदार यह तय नहीं कर सकता कि संपत्ति का उपयोग कैसे किया जाए. इस फैसले के बाद यह स्पष्ट हो गया कि संपत्ति पर अधिकार और उपयोग के मामले में मकान मालिक की प्राथमिकता सर्वोपरि होती है.
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