तीलू रौतेली का जन्म पौड़ी गढ़वाल में हुआ. उनके पिता का नाम भूपसिंह रावत और माता का नाम मैणावती था. तीलू के दो भाई थे, जिनके नाम भगतु और पथ्वा थे. तीलू के बचपन का नाम तिलोत्तमा था.
प्यार से लोग इन्हें तीलू बुलाने लगे. तीलू के पिता गढ़वाल नरेश की सेना में थे और इन्हें गढ़वाल के राजा ने गुराड गांव की थोकदारी भी दी थी. उस समय पहाड़ों पर बाल विवाह का प्रचलन था.
यही वजह रही कि तीलू का विवाह महज 15 साल की उम्र में इड़ा गांव के भवानी सिंह नेगी के साथ कर दिया गया.
18वीं शताब्दी के बाद कत्यूरी पतन की ओर बढ़ने लगे और कुमांऊ क्षेत्र में चंद वंश प्रभावशाली होता गया. अब गढ़वाल में पवार वंश स्थापित था और कुमाऊं में चंद वंश.
कत्यूरी तिनकों की तरह इधर उधर बिखरने लगे थे जिस वजह से उन्होंने चारों तरफ लूटपाट करनी शुरू कर दी. एक बार कत्यूरी राजाओं ने गढ़वाल पर हमला बोल दिया. राजा मानशाह और कत्यूरों के बीच लड़ाई हुई. इस युद्ध में तीलू के पिता भूपसिंह रावत भी मारे गए.
इसके बाद तीलू के दोनों भाई भी मार दिए गए. कांडा में आक्रमण के दौरान तीलू का पति भी शहीद हो गए. पूरे परिवार को खोने के बाद तीलू ने बदले की ठानी.
15 साल की उम्र में ही तीलू ने अपनी दो सहेलियों बेल्लू और रक्की के साथ मिलकर एक सेना बना ली. तीलू ने सबसे पहले खैरगढ़ जीता फिर टकौलीगढ़.
ऐसे ही इस 15 साल की वीर बाला ने एक के बाद एक 7 सालों में 13 किलों को पतह किया और विजय का परचम लहराया.
तीलू के शौर्य वीरता सारे उत्तराखंड में कुछ इस तरह फैल गई थी कि दुश्मन तीलू का नाम सुनते ही थर-थर कांपने लगते थे.
हर कोई तीलू को सामने से युद्ध में पराजित करने में असमर्थ था, तो वो तीलू को धोखे से मारने की योजना बनाने लगे.
तीलू 7 साल बाद जब अपने घर वापस लौट रही थीं तो रास्ते में पानी देखकर वो नदी के पास रुक गई, जब वो नदी में पानी पीने लगी तो पीछे से एक कत्यूरी सैनिक ने उस पर हमला कर दिया.
हमले का सामना नहीं कर पाई और वीरगति को प्राप्त हो गई. आज भी तीलू रौतेली को उत्तराखंड में बड़े ही गर्व के साथ याद किया जाता है.
तीलू की याद में उत्तराखंड में हर साल कांडा मेला भी लगता है. उत्तराखंड की सरकार हर साल उल्लेखनीय कार्य करने वाली महिलाओं को पुरस्कृति भी करती है.