सावन के महीने में कहा जाता है कि सुहागन स्त्रियां सोलह श्रृंगार कर के गौरीशंकर का आशीर्वाद मांगती है और चाहती है कि उनका रिश्ता भी शिव पार्वती जैसा हो. आज हम आपको बताएंगे की सोलह श्रृंगार में क्या-क्या चीजें शामिल है.
आम तौर पर भी महिला सिंदूर लगाती है पर सावन के समय सोलह श्रृंगारों में इसका स्थान सबसे ऊपर आता है. इसे सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है. औरतें अपने पति की लंबी उम्र के लिए अपनी मांग के बीचों-बीच सिंदूर भरती हैं.
सौभाग्यवती महिलाएं बिंदी या कुमकुम को माथे पर दोनों भौहों की बीच में लगती हैं. माथे पर सजी बिंदी भगवान शिव के तीसरे नेत्र का प्रतीक है.
काजल आंखों का श्रृंगार होता है. इससे आंखों की खूबसूरती बढ़ती है और काजल लगाने से बुरी नजर से भी बचा जाता है. सोलह श्रृंगार में काजल का भी महत्वपूर्ण स्थान है.
नथ नाक का गहना होती है. कुंदन नथ सावन के लिए परफेक्ट है. यह जरूरी नहीं कि आप नाक में बड़ी सी नथ पहने, छोटी सी नोजपिन या नोजरिंग से भी श्रृंगार कर सकती हैं.
हिंदू धर्म में शादी के समय बालों पर गजरा सजाया जाता है. गजरे को आप जूड़े पर या चोटी पर लटका कर लगा सकती हैं.
सोलह श्रृंगार में इयरिंग्स भी शामिल है. महिलाओ के साथ-साथ कुंवारी लड़कियां भी कान का गहना पहन सकती हैं. कान के गहने में छोटे टॉप्स, बाली, झुमके इनमें से कुछ भी पहना जा सकता है.
हाथों में पहनी जाने वाली लाल हरी चूड़ियां सुहागन महिलाओं के सौभाग्य का प्रतीक है. लाल चूड़ियां खुशी का प्रतीक है, हरी चूड़ियां सुख और समृद्धि का प्रतीक है. सावन के महीने में जब चारों तरफ हरियाली होती है तो हरे रंग की चूड़िया पहननी चाहिए.
मेहंदी भी सोलह श्रृंगार का हिस्सा है. हाथों की मेहंदी जितनी गहरी रचती है पति का प्यार उतना ज्यादा मिलता है. सावन के महीने में मेहंदी लगाने का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है
पैरों की उंगलियों में पहना जाता है. सिर्फ सुहागन औरते ही बिछिया पहनती है. शादी के समय इसे महिलाओं को पहनाया जाता है. शादी की एक रस्म होती है जिसमें इसे पहनाया जाता है.
सोलह श्रृंगार में पायल का भी अपना एक अलग महत्वपूर्ण स्थान है. सौभाग्यवती स्त्रियों को अपने पैरों में हमेशा पायल पहन कर रखनी चाहिए. इसकी छन-छन की आवाज की तरह ही महिलाएं अपने घर आंगन को खुशियों के संगीत से सजाती है.