दरअसल हम जिस कुंड की बात कर रहे हैं उसका नाम लोलार्क कुंड है. कहा जाता है कि बनारस के इस कुंड में सूर्य की किरणें सबसे पहले पहुंचती हैं. इसीलिए इसे सूर्य कुंड के नाम भी जाना जाता है.
मान्यता है कि लोलार्क कुंड में स्नान करने मात्र से चर्म रोग से मुक्ति मिल जाती है. इसके अलावा इस कुंड में स्नान करने से संतान की प्राप्ति भी होती है. भादो माह की षष्ठी तिथि को इसी मान्यता के साथ स्नान करने के लिए भारी भीड़ जुटती है.
मान्यता है कि संतान प्राप्ति की कामना के साथ सच्चे मन और श्रद्धा के साथ कुंड में स्नान करने से संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है.
कुंड में उतरने के लिए उत्तर, दक्षिण और पश्चिम तीनों दिशाओं से लंबी सीढ़ियां बनाई गई हैं. इसके पूर्वी दिशा में एक बड़ी सी दीवार है.
यहां के पुरोहित का कहना है कि जिन विवाहित महिलाओं की गोद सूनी होती है, उन दंपति को लोलार्क छठ के दिन काशी के भदैनी स्थित लोलार्क कुंड में तीन बार डुबकी लगाकर स्नान करना चाहिए.
इसके बाद दंपति को एक फल का दान कुंड में करना चाहिए. इस दौरान दंपति को अपने भीगे कपड़े भी यहीं छोड़ देना चाहिए. कुंड में स्नान के बाद दंपति को लोलाकेश्वर महादेव का दर्शन करना चाहिए.
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, भगवान सूर्य ने यहां सैकड़ों साल तपस्या कर शिवलिंग की स्थापना की थी, जो लोलाकेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है.
एक दूसरी कथा यह भी है कि इसी जगह पर भगवान सूर्य के रथ का पहिया गिरा था, जिसके कारण कुंड का निर्माण हुआ. बाद में रानी अहिल्याबाई ने इस कुंड का पुनः निर्माण कराया था.
कहा जाता है कि 9वीं सताब्दी से कुंड में स्नान की परंपरा चली आ रही है. यहां राजा गढ़वाल नरेश ने अपनी सातों रानियों के साथ स्नान किया था, जिसके बाद उन्हें संतान की प्राप्ति हुई.
यह कहानी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है. जी यूपीयूके इसकी पुष्टि नहीं करता है.