हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में तनाव एक समस्या है. जो हमारी त्वचा पर बहुत बुरा असर डालती है. आज हम आपको बताएंगे की तनाव त्वचा को किस-किस तरीके से प्रभावित करती है.
तनाव मुंहासों, एक्जिमा, सोरायसिस या रोसैसिया जैसे त्वचा की समस्याओं को भड़क सकता है. सूजन और त्वचा की संवेदनशीलता का कारण तनाव-प्रेरित बदलाव हो सकते हैं, जो हार्मोन के स्तर और प्रतिरक्षा कार्य में बदलाव को बढ़ा सकते हैं.
लंबे समय से चल रहा तनाव त्वचा के प्राकृतिक बाधा कार्य को प्रभावित कर सकता है. जिससे पानी की कमी होती है और एलर्जी और पर्यावरण संबंधी समस्याओं को बढ़ती है. इससे रेडनेस, ड्राइनेस और सेंसिटिविटी बढ़ सकती है.
तनाव के कारण शरीर की घाव और चोटों को ठीक होने में समय लग जाता है. कॉर्टिसोल जैसे तनाव हार्मोन का उच्च स्तर सूजन प्रतिक्रिया और कोलेजन उत्पादन में बाधा उत्पन्न कर सकता है, जिससे घाव भरने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है और इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है.
तनाव की वजह से हम उम्र से पहले बढ़ने लगते है. ये झुर्रियां, महीन रेखाएं और चेहरे के बीच के भाग की ढीलापन बड़ाता है.
तनाव के कारण ऑटो-इम्यून रिस्पॉन्स ट्रिगर हो सकता है. इससे हमारी त्वचा में बुरा प्रभाव पड़ता है. हमारी त्वचा के रंग और टेक्सचर में बदलाव गंभीर बीमारियों का संकेत है. इसलिए स्कीन में होने वाले बदलाव को गंभीरता से ले.
त्वचा का बहुत ज्यादा रुखा होना या खुजली होना डायबिटीज या लिम्फोमा का संकेत हो सकता है. सेवोरिया पार्किनसंस या स्ट्रोक का संकेत हो सकता है. यह समस्या अकसर सिर में होती है. बहुत ज्यादा मुहांसे हार्मोन संबंधी गड़बड़ी का संकेत हो सकता है.
तनाव के कारण कार्टिसोल हार्मोन का स्तर बढ़ने लगती है और त्वचा को नुकसान हो सकता है. खाने में मछली, साबुत अनाज, फल और सब्जियों को शामिल करें. बहुत ज्यादा मात्रा में चीनी या नमक की सेवन ना करें,ये सूजन व दर्द को बढ़ाता है. कभी-कभी शरीर में पानी की वजह से भी तनाव बढ़ता है.
जो लोग कम सोते हैं, उनमें तनाव का स्तर अधिक होता है. जो 6 से 8 घंटे की नींद लेते है वो बहुत अच्छा काम कर रहे है. सोने में कम से कम एक घंटा पहले अपने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों जैसे टीवी, कम्प्यूटर और मुबाइल को बंद कर दें.
न्यूट्रीशनिस्ट डॉ. अर्चना सिन्हा, के मुताबिक तनाव से हमारी सेहत के साथ-साथ हमारी त्वचा को भी बहुत नुकसान पहुंचता है. तनाव के कारण कार्टिसोल हार्मोन का स्तर बढ़ने लगता है. इसलिए हमें अपने खाने में मछली, साबुत अनाज, फल और सब्जियों को शामिल करना चाहिए.