हिंदू धर्म में गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा का बड़ा महत्व है. ऐसा कहा जाता है कि अगर कोई व्यक्ति चारों धाम की यात्रा नहीं कर पा रहा है तो उसे गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा जरूर करनी चाहिए. इससे मनचाहा फल प्राप्त होता है. गोवर्धन पर्वत तकरीबन 10 किलोमीटर तक फैला हुआ है.
गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा लगभग 21 किलोमीटर की है. इसे पूरा करने में 5 से 6 घंटे का समय लगता है. ये पर्वत उत्तर प्रदेश और राजस्थान दो राज्यों में में विभाजित है. कुछ दूर चलने के बाद राजस्थान वाले हिस्से में दाखिल होना पड़ता है.
दिवाली के अगले दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा की जाती है. श्रीकृष्ण ने इंद्र देव के प्रकोप से गोकुल वासियों को बचाने के लिए तर्जनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया था. तभी से इस त्योहार को मनाने की परंपरा चली आ रह है.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, एक जमाने में इस पर्वत की विशालकाय ऊंचाई के पीछे सूरज तक छिप जाता था. लेकिन आज इसका कद रोजाना मुट्ठीभर कम हो रहा है.
कहा जाता है कि 5,000 साल पहले गोवर्धन पर्वत करीब 30,000 मीटर ऊंचा हुआ करता था. आज इसकी ऊंचाई सिर्फ 25-30 मीटर रह गई है. मान्याताएं हैं कि एक ऋषि के शाप के चलते इस पर्वत की ऊंचाई आज तक घट रही है.
एक धार्मिक कथा के अनुसार, एक बार ऋषि पुलस्त्य गिरिराज पर्वत के नजदीक से होकर गुजर रहे थे. इस पर्वत की खूबसूरती उन्हें काफी रास आई. ऋषि पुलस्त्य ने द्रोणांचल से आग्रह किया कि मैं काशी रहता हूं और आप अपना पुत्र गोवर्धन मुझे दे दीजिए. मैं इसे काशी में स्थापित करना चाहता हूं.
द्रोणांचल ये बात सुनकर बहुत दुखी थे. हालांकि गोवर्धन ने संत से कहा कि मैं आपके साथ चलने को तैयार हूं. लेकिन आपको एक वचन देना होगा. आप मुझे जहां रखेंगे मैं वहीं स्थापित हो जाउंगा. पुलस्त्य ने वचन स्वीकार कर लिया.
गोवर्धन ने कहा कि मैं दो योजन ऊंचा हूं और पांच योजन चौड़ा हूं, आप मुझे काशी कैसे लेकर जाएंगे. पुलस्त्य ने जवाब दिया कि मैं तपोबल के जरिए तुम्हें हथेली पर लेकर जाउंगा.
रास्ते में जब बृजधाम आया तो गोवर्धन को याद आया कि भगवान श्रीकृष्ण बाल्यकान में लीला कर रहे हैं. गोवर्धन पर्वत पुलस्त्य के हाथ पर धीरे-धीरे अपना भार बढ़ाने लगा, जिससे उसकी तपस्या भंग होने लगी. ऋषि पुलस्त्य ने गोवर्धन पर्वत को वहीं रख दिया और वचन तोड़ दिया.
इसके बाद ऋषि पुलस्त्य ने पर्वत को उठाने की कई बार कोशिश की, लेकिन वो उसे हिला भी नहीं सके.तब ऋषि पुलस्त्य ने आक्रोष में आकर गोवर्धन को शाप दे दिया कि तुम्हारा विशालकाय कद रोज तिल-तिल कम होता रहेगा. कहते हैं तभी से गोवर्धन पर्वत का कद घटता जा रहा है.