तिरुपति मंदिर में मिलावटी प्रसाद को लेकर बवाल मचा है. यूपी के प्रमुख मंदिरों में चढ़ने वाले प्रसाद के सैंपल जांच के लिए भेजे गए. भक्तों ने भी मिलावटी प्रसाद को आस्था के साथ खिलवाड़ बताया. इन सब के बीच लोगों का ध्यान शुद्धता की ओर गया.
इटावा का देसी घी न केवल प्रदेश बल्कि देश भर में फेमस है. दूर-दूर के लोग घी खरीदने के लिए इटावा आते हैं. इसने अपनी पहचान बना रखी है.
इटावा के हर घर में देसी घी तैयार किया जाता है. इसे बड़े घी कारोबारियों को बेचा जाता है, जो इसे देशभर में सप्लाई करते हैं. इसके बाद यहां का घी कोने-कोने तक पहुंचता है.
इटावा का निर्मल देसी घी नामक ब्रांड को भारत सरकार द्वारा एगमार्क टैग दिया गया है, जो इसकी शुद्धता का प्रमाण है.
इटावा में रामलीला रोड स्थित प्लांट में आधुनिक मशीनों के साथ पारंपरिक तरीकों से भी घी का उत्पादन किया जाता है.
यहां की घी की शुद्धता पर कोई सवाल नहीं उठाता, इसके पीछे का कारण यह है कि इस प्लांट में शुद्धता मापने के लिए फार्मासिस्ट की तैनाती की गई है.
फार्मासिस्ट इस प्लांट में तैयार देसी घी को परीक्षण करने के बाद ही बिक्री के लिए बाहर भेजते हैं. परीक्षण में कड़ी प्रतिक्रियाओं का पालन किया जाता है.
बताया गया कि यहां के देसी घी की शुद्धता मापने के लिए करीब चार घंटे की प्रक्रिया अपनाई जाती है. साल 1956 में यहां के देसी घी को एगमार्क मिल गया.
इटावा से देशभर में लाखों किलो शुद्ध देसी घी की सप्लाई होती है. इसमें सेना के जवानों और अधिकारियों को भी यहां के देसी घी सप्लाई की जाती है.
यहां के लोगों का कहना है कि देसी घी और पनीर का कारोबार वर्षों पुराना है. इस गांव का देसी घी पूरे जिले में मशहूर है.
जिले के विभिन्न हिस्सों से लोग दूध लाकर घी बनाने का भी काम करते हैं. इटावा और आस-पास के जिलों से भी लोग यहां घी खरीदने आते हैं.
इटावा के देसी घी की कीमत 800 रुपये प्रति किलोग्राम रखी गई है. ज्यादातर इसकी सप्लाई बाहर होती है.
लेख में दी गई ये जानकारी सामान्य स्रोतों से इकट्ठा की गई है. इसकी प्रामाणिकता की जिम्मेदारी हमारी नहीं है. एआई के काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.