गुरुवार को महाकुंभ 2025 की आखिरी तैयारियों के बीच प्रयागराज में श्री पंचायती अखाड़ा महा निर्वाणी ने राजसी वैभव और भव्यता के साथ महाकुंभ क्षेत्र में प्रवेश किया. इस अवसर पर जगह-जगह संतों और महात्माओं पर पुष्प वर्षा कर कुम्भ मेला प्रशासन और श्रद्धालुओं ने स्वागत किया.
इस जुलूस में नागा संन्यासियों और 67 महा मंडलेश्वरों की उपस्थिति ने अखाड़े की यात्रा को दिव्यता प्रदान की. आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी विशोकानंद जी के नेतृत्व में जुलूस अलोपीबाग स्थित स्थानीय छावनी से शुरू हुआ तो वहीं भगवान कपिल जी के रथ के साथ आचार्य महामंडलेश्वर का भव्य रथ श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बना.
महा निर्वाणी अखाड़ा सनातन धर्म के 13 अखाड़ों में सबसे धनवान माना जाता है. यह महा मंडलेश्वर पद की परंपरा शुरू करने वाला पहला अखाड़ा है. अखाड़े का इतिहास और परंपराएं इसे बेहद खास बनाते हैं.
महा निर्वाणी अखाड़ा नारी शक्ति को प्राथमिकता देने वाला पहला अखाड़ा है. 1962 में साध्वी गीता भारती को पहला महिला महा मंडलेश्वर बनाया गया. इस बार की यात्रा में भी चार महिला महा मंडलेश्वर शामिल थीं.
तीन साल की उम्र में अखाड़े से जुड़ने वाली संतोष पुरी को "गीता भारती" का सम्मान मिला. दस साल की उम्र में गीता प्रवचन से उन्होंने देशभर में ख्याति अर्जित की. यह नाम उन्हें देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने दिया था.
नारी शक्ति और वीरता का प्रतीक वीरांगना वाहिनी सोजत की झांकी श्रद्धालुओं के आकर्षण का विशेष केंद्र दिखाई दी. महिलाओं की भूमिका को दर्शाने वाली इस झांकी की शोभ देखते ही बन रही थी.
यात्रा में पर्यावरण संरक्षण के प्रतीक भी साथ चल रहे थे. श्री पंचायती अखाड़े ने हरित संदेश को प्राथमिकता देते हुए श्रद्धालुओं को प्रेरित किया. यह पहल महाकुंभ को अधिक जागरूक और पर्यावरणीय दृष्टि से अनुकूल बनाने की दिशा में की गई.
श्री पंचायती अखाड़ा ने पांच किलोमीटर का लंबा सफर तय करके छावनी क्षेत्र में प्रवेश किया. जैसे ही अखाड़ा जुलूस ने छावनी में प्रवेश किया. श्रद्धालुओं के जयकारों से पूरा मार्ग गूंज उठा. जुलूस में हर वर्ग के लोग दिखाई दे रहे थे.
महा निर्वाणी अखाड़े की यह यात्रा धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक विविधता का प्रतीक बनी तो वहीं अखाड़े के छावनी में प्रवेश ने सनातन धर्म की परंपराओं को जीवंत कर दिया. अखाड़ों का ये राजसी प्रवेश जिन्होंने भी अपने आंखों से वहां मौके पर देखा, उनके लिए यह एक अद्भुत अनुभव जो जीवनभर स्मृतियों में रहेगा.
श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी- दारागंज प्रयाग (उत्तर प्रदेश). श्री पंच अटल अखाड़ा- चैक हनुमान, वाराणसी (उत्तर प्रदेश), श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी- दारागंज, प्रयाग (उत्तर प्रदेश), श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा पंचायती - त्रंब्यकेश्वर, नासिक (महाराष्ट्र), श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा- बाबा हनुमान घाट, वाराणसी (उत्तर प्रदेश), श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा- दशाश्वमेघ घाट, वाराणसी (उत्तर प्रदेश), श्री पंचदशनाम पंच अग्नि अखाड़ा- गिरीनगर, भवनाथ, जूनागढ़ (गुजरात).
बैरागी वैष्णव संप्रदाय के 3 अखाड़े होते है, श्री दिगम्बर अनी अखाड़ा- शामलाजी खाकचौक मंदिर, सांभर कांथा (गुजरात), श्री निर्वानी आनी अखाड़ा- हनुमान गढ़ी, अयोध्या (उत्तर प्रदेश), श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा- धीर समीर मंदिर बंसीवट, वृंदावन, मथुरा (उत्तर प्रदेश)
श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा- कृष्णनगर, कीटगंज, प्रयाग (उत्तर प्रदेश), श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन- कनखल, हरिद्वार (उत्तराखंड) और श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा- कनखल, हरिद्वार (उत्तराखंड).
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