Mahakumbh 2025: महाकुंभ 2025 में देश और विदेश से लाखों श्रद्धालु संगम तट पर एकत्र होंगे. आप भी इस पवित्र अवसर पर प्रयागराज जा रहे हैं, तो यहां के 5 प्रसिद्ध मंदिरों का दर्शन करना न भूलें. ये मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण हैं.
महाकुंभ 2025 का आयोजन 13 जनवरी से ही हो रहा है. ऐसे में लाखों-करोड़ों लोग अपने आस्था की डुबकी लगाने संगम पहुंचेंगे. महांकुभ 26 फरवरी को अपने अंतिम शाही स्नान के साथ खत्म होगा. इस दौरान आप प्रयागराज के कुछ खास मंदिरों के दर्शन करने के लिए जा सकते हैं.
अगर आप भी इस पवित्र अवसर पर प्रयागराज जा रहे हैं, तो यहां के 5 प्रसिद्ध मंदिरों का दर्शन करना नहीं भूलें. ये मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण हैं.
यह जानना बेहद जरूरी है कि स्नान के बाद कहां-कहां के मंदिरों के दर्शन कर सकते हैं. आइए जानते हैं इन मंदिरों के बारे में जिनके दर्शन करने के बाद आपकी महाकुंभ यात्रा पूर्ण हो सकती है.
यह मंदिर प्रयागराज में गंगा के किनारे स्थित है. इसे लेटे हुए हनुमान मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. ऐसी मान्यता है कि हर साल मां गंगा पहले लेटे हुए हनुमान जी को स्नान कराती हैं. ये इकलौता मंदिर है जहां हनुमान जी लेटे हुए हैं. इस प्रतिमा की लंबाई करीब 20 फीट बताई जताई है. ऐसा कहा जाता है कि संगम स्नान के बाद इनके दर्शन बेहद जरूरी है, अगर इनके दर्शन नहीं किए तो आपका आना व्यर्थ माना जाएगा.
इस मंदिर में नागों के राजा वसुकी की पूजा होती है. पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के बाद देवताओं और असुरों ने नाग वासुकी को सुमेरु पर्वत रस्सी जैसा लपेटा था, जिसे कारण नागवासुकी घायल हो गए थे और फिर भगवान विष्णु ने उन्हें प्रयागराज में इसी जगह आराम करने को कहा था. इसी वजह से इसे नागवासुकी मंदिर कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि प्रयागराज आने वाले तीर्थयात्रियों की यात्रा तब तक अधूरी रहती है जब तक इनके दर्शन न कर लें.
सरस्वती कूप एक पवित्र कुआं है, जो त्रिवेणी संगम स्थित किले के अंदर है. यहां पर सरस्वती की एक मूर्ति भी है. जहां ये भूमिगत जलधारा है, उसे ‘सरस्वती कूप’ का नाम दिया गया. ऐसी मान्यता है कि सरस्वती भूलोक में गंगा और यमुना के संगम से भी मिलती है. ऐसा भी कहा जाता है कि सरस्वती कूप त्रिवेणी की गुप्त धारा है
पातालपुरी मंदिर में भगवान शिव अपनी अर्धनारीश्वर रूप में हैं, और यहां पर तीर्थों के राजा प्रयागराज की मूर्ति भी स्थापित है. इस मंदिर में एक अनंत ज्योति भी जलती रहती है, जो भगवान शनि को समर्पित है. यह ज्योति 12 महीने तक जलती रहती है. यह मंदिर महा कुंभ के दौरान तीर्थयात्रियों के लिए महत्वपूर्ण स्थल बन जाता है.
मां दुर्गा के कई रूप हैं, जिनके दर्शन के लिए शक्तिपीठ मंदिरों में भीड़ लगी रहती है. देवी के इन्हीं मंदिरों में एक पीठ संगम नगरी में मौजूद हैं, यहां मां दुर्गा की मूर्ति रूप में पूजा नहीं होती बल्कि यहां एक चुनरी में लिपटे एक पालने की पूजा होती है. यहां मां दुर्गा को अलोपशंकरी देवी के रूप में जाना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि मां सती के दाहिने हाथ का पंजा यहा गिरा था, जो विलुप्त हो गया था, इस कारण इस मंदिर का नाम अलोप शंकरी पड़ा. संगम में स्नान के बाद यहां जरूर जाना चाहिए.
प्रयागराज में ही एक काफी पुराना अक्षय वट (बरगद का पेड़) मौजूद है, जिसे देखने दूर-दराज से लोग आते हैं. संगमनगरी प्रयागराज में अक्षय वट का भी विशेष धार्मिक महत्व है. ऐसी मान्यता है कि यहां का बरगद का पेड़ चार युगों से अस्तित्व में है. महाकुंभ आए श्रद्धालुओं को इस जगह जरूर जाना चाहिए. पुराणों की मानें तो प्रलय के समय जब पूरी पृथ्वी डूब जाती है तो वट का एक वृक्ष बच जाता है, वही अक्षयवट कहलाता है. कहा जाता है कि त्रेतायुग में भगवान श्रीराम, माता सीता और भाई लक्ष्मण यहां आए थे और इस पेड़ के नीचे विश्राम किया था. इसलिए आप यहां पर दर्शन के लिए आ सकते हैं.
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