यूपी में महिलाओं के कपड़ों की माप अब पुरुष टेलर नहीं ले सकेंगे. लेकिन क्या आपको पता है मुगलकाल में बादशाहों और उनकी बेगमों की माप कौन लेता था? क्या इसके लिए महिला दर्जी होते थे या पुरुष दर्जी ही कपड़े सिला करते थे.
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यूपी में महिलाओं के कपड़ों की माप अब पुरुष टेलर नहीं ले सकेंगे. राज्य महिला आयोग ने इसका प्रस्ताव दिया है. महिलाओं को पुरुषों के 'गलत इरादे' और 'बैड टच' से बचाने के लिए ऐसा किया गया है. भारत में सिलाई का इतिहास बेहद पुराना है. मुगलकाल में सिलाई-कढ़ाई की कला ने ऊंचाइयां हासिल कीं. मुगल बादशाह कपड़ों के प्रति प्रेम के लिए जाने जाते थे. लेकिन क्या आपको पता है मुगलकाल में बादशाहों और उनकी बेगमों की माप कौन लेता था? क्या इसके लिए महिला दर्जी होते थे या पुरुष दर्जी ही कपड़े सिला करते थे.
मुगल काल को भारत में सिलाई का स्वर्णिम काल कहा जाता है. इसी समय कढ़ाई और सिलाई की कला नई ऊंचाइयों पर पहुंची. इस दौरान विकसित की गई कई तकनीकें और डिजाइन आज भी उपयोग में हैं. एजुकेशन वेबसाइट EDUREV पर दी जानकारी के मुताबिक मुगल काल के सबसे प्रसिद्ध दर्जियों में से एक मिर्जा जान-ए-जान थे. उनके तैयार किए कपड़े आरामदायक और स्टाइलिश दोनों होते थे. वह अकबर के निजी टेलर थे. उनके द्वारा तैयार किए शानदार डिजाइन के कपड़े अकबर पहना करते थे. मुगल काल में महारानियों के नए वस्त्रों की नाप-जोख के लिए उनके पहले से सिले वस्त्रों को भेजा जाता था. जबकि बादशाह और शाही परिवार के अन्य पुरुष सदस्यों की कपड़ों की नाप के लिए शाही दर्जी नियुक्त किया जाता था.
मुगलों के बाद ब्रिटिश काल में सिलाई इंडस्ट्री में बड़ा परिवर्तन देखने को मिला. इस दौरान नई तकनीकें आईं. वेस्टर्न कपड़ों की मांग तेजी से बाजारों में बढ़ी. सिलाई की दुकानें और कारखाने स्थापित किए गए. रिपोर्ट के मुताबकि ब्रिटिश काल के सबसे प्रसिद्ध दर्जियों में से एक सुधीर तैलंग थे, जिन्होंने 1900 के दशक की शुरुआत में अपना सिलाई व्यवसाय शुरू किया था. वह सिलाई कौशल और ऐसे कपड़े बनाने की क्षमता के लिए जाने जाते थे जो स्टाइलिश और आरामदायक हों.
टेक्नोलॉजी और ग्लोबलाइजेशन के साथ भारत में सिलाई उद्योग में भी बदलाव आया है. हाई क्वालिटी कपड़ों की मांग तेजी से बढ़ी है. उद्योग लगातार फल-फूल रहा है, और भारतीय दर्जी अपने डिजाइन, सिलाई कौशल और क्वालिटी के लिए जाने जाते हैं.