Kushinagar News: कुशीनगर के केले को देशभर में पहचान दिलाने में उत्तर प्रदेश सरकार ने अहम भूमिका निभाई है. 17 साल पहले, कुशीनगर में केवल 500 हेक्टेयर जमीन पर केले की खेती होती थी, और अब यह रकबा बढ़कर 16,000 हेक्टेयर तक पहुंच गया है.
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Kushinagar Banana Farming: कभी सिर्फ गिने-चुने खेतों में होने वाली केले की खेती आज कुशीनगर की पहचान बन चुकी है. उत्तर प्रदेश सरकार की ‘एक जिला, एक उत्पाद’ (ओडीओपी) योजना ने न केवल यहां के किसानों को एक नई दिशा दी है, बल्कि कुशीनगर के केले को देशभर में एक खास पहचान दिलाई है. इस योजना के तहत केले की खेती को उद्योग का दर्जा मिला है, जिसने स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए अवसर पैदा किए और किसानों की आय को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है.
करीब 17 साल पहले, कुशीनगर में केवल 500 हेक्टेयर जमीन पर केले की खेती होती थी. और आज, यह रकबा बढ़कर 16,000 हेक्टेयर तक पहुंच गया है. ये बढ़ोतरी केवल संख्या नहीं, बल्कि इस बात का प्रमाण है कि कैसे एक सरकारी पहल ने किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार किया. किसानों के चेहरों पर जो खुशी गायब हो चुकी थी, वह अब फिर से लौट आई है.
कुशीनगर का केला अब न केवल उत्तर प्रदेश और आसपास के जिलों जैसे गोरखपुर, कानपुर, और बिहार-नेपाल में लोकप्रिय हो चुका है, बल्कि दिल्ली, पंजाब और कश्मीर तक इसकी मांग बढ़ी है. इसने न सिर्फ किसानों को स्थिर आय का जरिया दिया है, बल्कि रोजगार के नए द्वार भी खोले हैं. खासकर केले के प्रसंस्करण और उससे उप-उत्पाद बनाने का ट्रेंड तेजी से बढ़ा है. कई स्वयंसेवी संस्थाएं केले से जूस, चिप्स, आटा, अचार और यहां तक कि केले के तने से रेशा निकालकर चटाई, डलिया, और चप्पल जैसे उत्पाद बना रही हैं. इन उत्पादों की मांग न केवल स्थानीय बल्कि देशभर में तेजी से बढ़ रही है.
कुशीनगर कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी अशोक राय के अनुसार, यहां के किसान केले की फसल को दो तरह से उगाते हैं—एक खाने के लिए और दूसरी सब्जी के लिए. खाने के लिए ‘जी 9’ प्रजाति सबसे लोकप्रिय है, जबकि सब्जी के लिए ‘रोबेस्टा’ प्रजाति उगाई जाती है. इसका रकबा अनुपात 70 प्रतिशत फल और 30 प्रतिशत सब्जी के लिए है.
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रति हेक्टेयर खेती पर 31,000 रुपए का अनुदान भी किसानों के लिए एक बड़ी राहत साबित हुआ है. इससे केले की खेती करने वालों को आर्थिक सहयोग मिला है, जिससे वे अपने खेतों का विस्तार और नई तकनीक का उपयोग कर सके. कुशीनगर के पूर्व डीएम उमेश मिश्र ने इस योजना को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई, उनके प्रयासों ने केले की खेती को एक नई पहचान दी.
कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार, गोरखपुर के सब्जी वैज्ञानिक डॉक्टर एसपी सिंह के अनुसार, फरवरी और जुलाई-अगस्त का समय केले के रोपण के लिए सबसे उपयुक्त होता है. जो किसान बड़े रकबे में खेती करते हैं, उन्हें दोनों सीजन में खेती करने से लाभ होता है, क्योंकि इससे जोखिम कम होता है और फसल उत्पादन बेहतर होता है.
कुल मिलाकर, कुशीनगर का केला अब सिर्फ एक फल नहीं, बल्कि एक उद्योग बन चुका है. ओडीओपी योजना ने इसे एक नई उड़ान दी है, जिससे किसानों की जिंदगी में समृद्धि आई है. कुशीनगर का केला अब न केवल खेतों में, बल्कि देशभर में अपनी जगह बना चुका है.