Banda News: कौन थे सिमोनी धाम के संत स्वामी अवधूत महाराज, संन्‍यास के बाद हमेशा खड़े होकर सोए
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Banda News: कौन थे सिमोनी धाम के संत स्वामी अवधूत महाराज, संन्‍यास के बाद हमेशा खड़े होकर सोए

Banda News: स्वामी बलराम अवधूत महाराज, जो सिमौनी धाम के प्रसिद्ध हठी संत थे, उनका निधन हो गया. उनका जीवन तपस्या, साधना और हठ का अद्वितीय उदाहरण था. स्वामी जी के निधन के बाद उनके भक्तों में गहरा शोक है, और यह खबर बबेरू क्षेत्र में भी फैल गई.

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Banda News: सिमौनी धाम के प्रसिद्ध हठी संत स्वामी बलराम अवधूत महाराज का शनिवार को दिल्ली में निधन हो गया. वे 101 वर्ष के थे. स्वामी जी का निधन उनके लाखों भक्तों के लिए एक गहरी शोक की घड़ी बन गया है. कहा जाता है कि ऐसे संत कभी नहीं मरते, वे सिर्फ समाधि लेते हैं. स्वामी अवधूत महाराज के निधन को भी इस दृष्टिकोण से देखा जा रहा है. उनका जीवन तप, साधना और हठ के अद्वितीय उदाहरण के रूप में हमेशा याद किया जाएगा.

1923 में हुआ था जन्म
स्वामी बलराम अवधूत महाराज का जन्म 1923 में उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के सिमौनी गांव में हुआ था. बचपन में ही उनकी आस्था और साधना के प्रति गहरी रुचि विकसित हो गई थी. स्वामी जी का जीवन कभी भी सामान्य नहीं रहा. उनका हठी स्वभाव और घोर तपस्या की ओर रुझान उन्हें इस धरती पर सबसे अलग बनाता था. 

ग्राम प्रधानी के चुनाव में भी लिया था भाग
स्वामी जी ने अपने जीवन के पहले कुछ वर्ष राजनीति में भी बिताए थे. वर्ष 1955 में उन्होंने ग्राम प्रधानी के चुनाव में भाग लिया था, लेकिन पराजय के बाद उन्होंने संन्यास लेने का निर्णय लिया. इसके बाद स्वामी जी ने ब्रह्मलीन परशुराम स्वामी के आश्रम में दीक्षा ली और आधिकारिक रूप से संत बन गए.

स्वामी जी ने 65 वर्षों तक अखंड ज्योति जलाए रखी
स्वामी अवधूत महाराज का नाम सिमौनी धाम से जुड़ा हुआ है. यह स्थान आज देशभर में एक आस्था का केंद्र बन चुका है, और स्वामी जी की घोर तपस्या की वजह से ही सिमौनी धाम को एक विशेष पहचान मिली है. स्वामी जी ने गडरा नदी के किनारे खड़े होकर धूप-बारिश में कठिन तपस्या की, जो उनकी हठ और साधना का प्रतीक बन गया. यहां पर स्वामी जी ने 65 वर्षों तक अखंड ज्योति जलाए रखी. यह ज्योति आज भी वहां भक्तों के लिए एक आस्था का प्रतीक है.

खूब की शारीरिक तपस्याएं
स्वामी अवधूत महाराज की जीवन यात्रा बहुत ही प्रेरणादायक रही. उन्होंने शारीरिक तपस्या के दौरान ठंडी ठंड में गडरा नाला में गले तक पानी में खड़े होकर और गर्मियों में तपती धूप में बालू में लेटकर अपनी साधना को सिद्ध किया. उनकी तपस्या और साधना ने सिमौनी धाम को प्रसिद्ध किया, और आज यह स्थान न केवल उत्तर प्रदेश, बल्कि पूरे भारत में श्रद्धालुओं के लिए महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल बन चुका है.

राजनीतिक गलियारों में भी शोक की लहर 
स्वामी जी के निधन के बाद उनके भक्तों में गहरा शोक व्याप्त है. उनकी मृत्यु दिल्ली में दिल का दौरा पड़ने से हुई. उनके निधन की खबर फैलते ही बबेरू क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई. स्वामी जी के निधन से न केवल उनके अनुयायी, बल्कि राजनीतिक गलियारों में भी शोक की लहर है.

हर साल भंडारे और मेले का भी आयोजन होता था
स्वामी जी के साथ कई केंद्रीय और प्रदेश स्तरीय नेताओं के घनिष्ठ संबंध रहे थे. हर साल 15 दिसंबर को सिमौनी धाम में विशाल भंडारे और मेले का आयोजन होता था, जिसमें राज्य सरकार भी शामिल होती थी. इस बार स्वामी जी के बिना यह मेला एक गहरी शून्यता महसूस कराएगा.

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