Agra Mughal Architecture News: सुल्तान परवेज का मकबरा और मुबारक मंजिल, आगरा की ऐतिहासिक धरोहरों को मिलेगा नया जीवन
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Agra Mughal Architecture News: सुल्तान परवेज का मकबरा और मुबारक मंजिल, आगरा की ऐतिहासिक धरोहरों को मिलेगा नया जीवन

Agra News: आगरा की ऐतिहासिक धरोहरों को फिर से जीवित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है. राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा स्मारकों का संरक्षण न केवल इनके ऐतिहासिक महत्व को बहाल करेगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी मुगलकालीन वास्तुकला की समृद्ध धरोहर से रूबरू होने का मौका देगा. 

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Agra News: आगरा, जिसे मुगलकालीन धरोहरों का शहर कहा जाता है, एक बार फिर अपने पुराने गौरव को प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है. यमुना किनारे स्थित "सुल्तान परवेज का मकबरा", "मुबारक मंजिल" और बल्केश्वर में स्थित प्राचीन बुर्ज अब उत्तर प्रदेश के राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित किए जाने वाले हैं. यह अब जल्द ही अपने पुराने गौरव को पुनः प्राप्त करेंगे, और यह आगरा के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ेंगे.

धरोहरों को मिलेगा संरक्षण
हाल ही में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल द्वारा इन स्मारकों को संरक्षित धरोहर घोषित करने की 'प्रारंभिक अधिसूचना' जारी की गई है. इस अधिसूचना के अनुसार, एक महीने तक इन स्मारकों को लेकर आपत्तियां दर्ज कराई जा सकती हैं. इस अवधि के बाद, अंतिम अधिसूचना जारी होगी और ये धरोहरें राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा पूरी तरह से संरक्षित घोषित कर दी जाएंगी.

मकबरा अब खंडहर बनके रह गया है
सुल्तान परवेज का मकबरा, जो कभी अपनी भव्यता और आकर्षण के लिए जाना जाता था, आज उपेक्षा और संरक्षण के अभाव में खंडहर में तब्दील हो गया है. यह मकबरा मुगल वास्तुकला का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है, जो तैमूर के समरकंद स्थित मकबरे की तर्ज पर बनाया गया था. चारों ओर बाग होने के कारण यह मकबरा एक समय पर बेहद सुंदर था, लेकिन अब केवल खंडहर और बर्बाद दीवारें रह गई है. मकबरे की बाहरी दीवारें खोखली हो चुकी हैं और चूने का प्लास्टर भी झड़ चुका है. हालांकि, इसके गुंबद पर बने उल्टे कमल के फूल का डिज़ाइन अभी भी लोगों का ध्यान आकर्षित करता है.

मुबारक मंजिल और बल्केश्वर का बुर्ज
सुल्तान परवेज का मकबरा ही नहीं, बल्कि मुबारक मंजिल और बल्केश्वर में स्थित प्राचीन बुर्ज भी इस संरक्षण की योजना में शामिल हैं. "मुबारक मंजिल", जिसे 'औरंगजेब की हवेली' भी कहा जाता है, मुगल काल की वास्तुकला का एक अन्य उदाहरण है. हवेली की स्थिति भी अब जर्जर हो चुकी है, लेकिन इसका ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व किसी से छुपा नहीं है. वहीं, यमुना किनारे स्थित 'बल्केश्वर का बुर्ज' भी मुगलों के दौर की शाही इमारतों का हिस्सा रहा है, और अब यह बुर्ज भी संरक्षण की राह देख रहा है.

संरक्षण के अभाव में जर्जर हो रहे स्मारक
आगरा में कई ऐतिहासिक स्मारक ऐसे हैं, जो उचित संरक्षण के अभाव में बुरी तरह से जर्जर हो गए हैं. कई सालों से राज्य और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के संरक्षण के लिए ये धरोहरें इंतजार कर रही थीं. इसके पहले, एएसआई ने हाथीखाना, हवेली आगा खां और हवेली खान-ए-दुर्रां को संरक्षित स्थल घोषित किया था. हाथीखाना के संरक्षण का कार्य भी सफलतापूर्वक पूरा हो चुका है. अब, राज्य पुरातत्व विभाग ने भी इन महत्वपूर्ण स्थलों के संरक्षण के लिए कदम बढ़ाया है.

42 स्थलों के संरक्षण की प्रक्रिया शुरू 
बटेश्वर के 42 स्थलों को भी प्रारंभिक अधिसूचना जारी कर संरक्षित धरोहर घोषित करने की प्रक्रिया शुरू की गई है. इसके अंतर्गत शिव मंदिर, दिगंबर जैन मंदिर, बटेश्वर किला, रानी घाट और कई अन्य स्थलों को संरक्षित करने का काम होगा. इन सभी स्थानों के संरक्षण से न केवल आगरा का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व बढ़ेगा, बल्कि इन स्थलों को देखने आने वाले पर्यटकों की संख्या में भी वृद्धि होगी.

मुगलकालीन धरोहरों का ऐतिहासिक महत्व
सुल्तान परवेज मिर्जा, जिनके नाम पर यह मकबरा है, शहंशाह जहांगीर के बेटे और शाहजहां के बड़े भाई थे. वह एक कुशल सेनानायक थे, और उनका मकबरा उनके शाही जीवन का प्रतीक था. यह मकबरा चीनी का रोजा और एत्माद्दौला के बीच स्थित है, लेकिन उपेक्षा के कारण अब यह अपनी भव्यता खो चुका है. संरक्षण के अभाव में यह मकबरा खंडहर में बदल गया है, लेकिन इसके गुंबद और अन्य संरचनात्मक हिस्से आज भी मुगल वास्तुकला की भव्यता को दर्शाते हैं.

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