महाभारत काल की गुरु द्रोणाचार्य और एकलव्य की कहानी गुरु दक्षिणा में अंगूठा मांगने को लेकर फेमस है.
धोखे का बदला
ऐसे में एकलव्य ने अपने गुरू से धोखे का बदला लेने के लिए दोबार जन्म लिया था. जानिए इसकी पूरी कहानी.
एकलव्य
कथाओं के मुताबिक, एकलव्य पूर्व जन्म में भगवान कृष्ण के चाचा के लड़के थे. वह भगवान कृष्ण के पिता वासुदेव के छोटे भाई देवश्रवा के बेटे थे.
निकाला आश्रम से बाहर
युवा होने के बाद एकलव्य धनुर्विद्या सीखने के लिए गुरु द्रोण के पास गए थे, लेकिन उनकी जाति पता करके उन्हें गुरु द्रोण से आश्रम से बाहर निकाल दिया. वहीं, एकलव्य गुरु द्रोण की मूर्ति बनाकर धनुष चलाना सीखते हैं.
दाएं हाथ का अगूंठा
जब गुरु द्रोण को इस बात का पता चलता है कि वह एकलव्य उनके प्रिय शिष्य अर्जुन को भी धनुर्विद्या में हरा सकता है, तो वे एकलव्य से गुरु दक्षिणा में दाएं हाथ का अगूंठा मांग लेते हैं.
अंगूठा
ये सुनते ही एकलव्य एक शिष्य होने के नाते गुरु द्रोण को अंगूठा दे देते हैं.
पिता की रक्षा
जानकारी के अनुसार, एकलव्य की मौत कृष्ण के हाथों रुरमणि स्वयंवर में हुई थी. एकलव्य अपने पिता की रक्षा करते हुए मार गए थे.
वरदान
वहीं, एकलव्य को कृष्ण ने गुरुद्रोण से बदला लेने के लिए फिर से जन्म का वरदान दिया था.
धृष्टधुम्र
इसके बाद एकलव्य धृष्टधुम्र के रूप में द्रुपद नरेश के घर पैदा हुए थे.
द्रौपदा
द्रोपदी का भाई होने के चलते उन्हें द्रौपदा कहा गया.
द्रोणाचार्य
महाभारत युद्ध के दौरान अश्वत्थामा की मौत के बारे में सुनकर द्रोणाचार्य डर गए और धनुष बाण रख दिया.
बदला
इस वक्त धृष्टधुम्र यानी पूर्व जन्म में एकलव्य ने तलवार निकाली और द्रोणाचार्य का सिर काट दिया. इस तरह अपना बदला लिया.