कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उत्तरी क्षेत्र खादी ग्रामोद्योग आयोग के सदस्य बसंत ने कहा कि खादी भारत की आजादी के आंदोलन की ताकत बना, जिसने गुलामी की जंजीरों को तोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उसी खादी के धागे के माध्यम से वर्तमान में आत्मनिर्भर भारत एवं विकसित भारत के प्रण को पूरा करने के उद्देश्य से निशुल्क चरखे दिए हैं.
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Tonk: उद्योग मंदिर, आमेर (जयपुर) तथा आचार्य विद्यासागर हथकरघा प्रशिक्षण एवं उत्पादन सहकारी समिति आवां के तत्वावधान में आज आवां में 50 चरखों का वितरण किया गया.
इस मौके पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उत्तरी क्षेत्र खादी ग्रामोद्योग आयोग के सदस्य बसंत ने कहा कि खादी भारत की आजादी के आंदोलन की ताकत बना, जिसने गुलामी की जंजीरों को तोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उसी खादी के धागे के माध्यम से वर्तमान में आत्मनिर्भर भारत एवं विकसित भारत के प्रण को पूरा करने के उद्देश्य से निशुल्क चरखे दिए हैं.
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खादी को नया मुकाम मिलेगा
उन्होंने कहा कि इन चरखों के माध्यम से युवक-युवतियां, महिलाएं जुड़ेंगी तो वे आत्मनिर्भर तो बनेंगी. साथ ही खादी में नया बदलाव भी देखने को मिलेगा. नए प्रयोग हो खादी है. इससे खादी को नया मुकाम मिलेगा. खादी को बढ़ावा देने के उद्देश्य के साथ-साथ क्षेत्र को प्रदेश स्तर पर प्रमुख खादी उत्पादक क्षेत्र के रूप में स्थापित करने के लिए 50 से अधिक ग्रामीण परिवारों को सूत कताई के लिए निःशुल्क अंबर चरखे वितरित किए गए हैं.
सुदर्शनोदयो अतिशय तीर्थ क्षेत्र आवां में विद्याशीष हथकरघा, आवां के सौजन्य से किए गए इस कार्यक्रम में विशिष्ठ अतिथि तथा अध्यक्ष के रूप में इंद्रभूषण गोयल (अध्यक्ष, राज. खादी ग्रामोद्योग संघ), डॉक्टर राहुल मिश्र (निदेशक, खादी ग्रामोद्योग आयोग जयपुर, राजस्थान) उपस्थित रहे.
सूती कपड़ों का निर्माण किया जाएगा
अतिथियों ने कहा कि इन चरखों के माध्यम से आवा के घर-घर में कपास की कताई कर के सूती धागा बनाया जाएगा. बाद में उसी धागे से हथकरघा के माध्यम से सूती कपड़ों का निर्माण किया जाएगा. इस समस्त प्रकिया में श्रम एवं कौशल स्थानीय लोगों का ही रहेगा एवं क्षेत्र को देश - प्रदेश स्तर पर एक नई पहचान मिलेगी. कपास की कताई से लेकर बनाई तक की संपूर्ण प्रक्रिया स्थानीय युवक-युवतियों तथा महिलाओं द्वारा अपने कौशल - हुनर द्वारा चरखे एवं करघे के माध्यम से की जाएगी तथा अंतिम उत्पाद के रूप में सूती वस्त्र निर्मित किए जाएंगे.
इस संस्था से जुड़े राहुल जैन ने बताया कि वस्त्र निर्माण के इस परंपरागत उद्योग की स्थापना ग्रामीण लोगों को स्थानीय स्तर पर ही रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से लगभग 5 वर्ष पूर्व की गई थी.
सम्मानपूर्ण आजीविका प्राप्त कर रहे
जब उन्होंने रोजगार के लिए ग्रामीण युवाओं को शहरों की ओर पलायन करते देखा तो उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद भी स्वयं नौकरी ना करते हुए स्वावलंबन के प्रक्रम हथकरघा की स्थापना करने का निर्णय लिया. राहुल जैन ने बातचीत करते हुए बताया कि उनके लिए हथकरघा - खादी का काम बिल्कुल नया था, लेकिन अपने जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी, सुधासागर जी महाराज के नौकर नहीं मालिक बनो एवं बड़े भाई आशीष जैन के प्रयास से ये उनका ये सपना पूर्ण हो सका, जिसमें वे सर्वप्रथम युवाओं को हथकरघा- खादी का सवैतनिक प्रशिक्षण देते है तथा उसके बाद उन्हें यहीं पर रोजगार भी उपलब्ध करवाते हैं. इससे वे लोग अपने घर- परिवार- समाज के साथ रहकर ही अपने कृषि कार्य के साथ साथ सम्मानपूर्ण आजीविका प्राप्त कर रहे हैं.
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस केंद्र पर केवल सूती वस्त्रों का ही निर्माण किया जाता है. आज हमारे द्वारा प्रशिक्षित युवा यहीं पर सुन्दर एवं आकर्षक सूती कपड़े जैसे सूती साड़ी (आंवा साड़ी के नाम से विख्यात), धोती -दुपट्टा, टॉवेल, चद्दर, बेडशीट, इत्यादि बनाते हैं, जिनकी सम्पूर्ण भारतवर्ष में मांग है.
चरखे एवं खादी का इतिहास
चरखा एक हस्तचालित युक्ति है, जिससे कपास को सूत के रूप में तैयार किया जाता है और यह सूत करघे के माध्यम से कपड़ा बनाने के काम आता है. भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में यह आर्थिक स्वावलम्बन का प्रतीक बन गया था. अंग्रेज़ों के भारत आने से पहले भारत भर में चरखे और करघे का प्रचलन था. 1500 ई. तक खादी और हस्तकला उद्योग पूरी तरह विकसित था, लेकिन उसके बाद अंग्रेजों ने इस उद्योग को पूरी तरह तबाह कर दिया. आजादी के महासंग्राम के दौरान महात्मा गांधी ने पुराने चरखे से मैनचेस्टर की सबसे आधुनिक कपड़ा मिलों को पीट दिया था और गांधीजी ने स्वयं तो खादी पहनी ही, साथ ही साथ पूरे देश को खादी पहना दिया, खादी पहनने को लोगों की शान बना दिया. आज खादी महज कपड़े भर का नाम नहीं है. यह हम भारतीयों के जीने के तरीक़े और सादगी से जुड़ा हुआ है.
Reporter- Purshottam Joshi
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