जोधपुर: आशा है तो नामुमकिन कुछ भी नहीं, जानिए कैसे....
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जोधपुर: आशा है तो नामुमकिन कुछ भी नहीं, जानिए कैसे....

आशा के लिए ये सफर आसान नहीं था, कई बार उन्हें लोगों की यातनाएं सहनी पड़ती, ताने सुनने पड़ते, यही नहीं स्वीपर का काम करने की वजह से लोग उन्हें हीन भावना से देखते थे.हाई सोसाइटी के लोगों के लिए वो बस एक कचरा साफ़ करने वाली थी. आशा को समाज के तानो से कोई फर्क नहीं पड़ता था क्योंकि अपने हौसले और जुनुन से सिर्फ आशा वाकिफ़ थी. 

आशा कंडारा

Jodhpur: जीवन में नामुमकिन कुछ भी नही होता है क्युकी नामुकिन में ही मुमकिन छुपा होता है. परेशानियां हम सब के जीवन में आती है लेकिन परेशानियों में जो हिम्मत और हौसला रखते है वो सफलता की इबारत लिखते है. कुछ ऐसी ही काहानी है जोधपुर की रहने वाली आशा कंडारा की. जिसका नाम ही आशा हो वो हार कैसे मान सकती है, बस इसी बात को जीवन का मूलमंत्र बना लिया राजस्थान की बेटी आशा ने.

आशा कभी जोधपुर की सड़कों पर झाडू लगाने का काम करती थी. लेकिन आज अपनी मेहनत और लगन से आशा ने एक अलग मुकाम हासिल किया है. उनकी कहानी लोगों को प्रेरणा दे रही है की संघर्ष के बाद सफलता कैसे मिलती है. आशा कंडारा अब आरएएस अफसर बन गई हैं. राजस्थान प्रशासनिक सेवा परीक्षा (RAS exam 2018) को पास करने के बाद आशा ने सिर्फ परिवार ही नहीं बल्कि राज्य के लोगों का भी सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है.

आशा ने नहीं छोड़ी आशा

आशा की साल 1997 में शादी हुई थी लेकिन उनके पति ने साल 2002 में उन्हें छोड़ दिया. एक लम्बे रिश्ते के खत्म होने के दुख से उबरने में आशा को बहुत समय लगा. तब भी उन्होंने हार नहीं मानी और अपने बच्चों को लेकर निकल पड़ी एक नई उम्मीद भरी राह की तरफ. अपने सपनों को पूरा करने के लिए उन्होंने मेहनत शुरू कर दी, उन्होंने तय किया कि वह हार नहीं मानेंगी और एक मजबूत महिला बनकर आगे बढ़ेंगी. जो लोग उन्हें अपमानित करते हैं, उन्हें वो बोलकर नहीं बल्कि अपनी काबिलियत से जवाब देंगी. दर्द से निकलने के बाद उन्होंने तय किया कि वह अब पढ़ाई करेंगी. शुरूआत देर से ही सही पर हो गई. आशा ने स्कूल लेवल से पढ़ाई शुरू की और साल 2016 में ग्रेजुएशन पूरा किया. इसके बाद जीवन को एक दिशा मिल गई, उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के जोधपुर नगर निगम की परीक्षा में स्वीपर के लिए फॉर्म भर लिया और उस परीक्षा में सफलता हासिल की. आशा की माने तो ''यह सिर्फ एक फेज था, क्योंकि इस दौरान मेरे द्वारा कुछ मांगने पर अक्सर कहा जाता था कि तुम कोई कलेक्टर नहीं हो क्या. दफ्तर के अलावा लोग मेरी जाति और काम की वजह से अपमान करते थे, यह सब कुछ मैं बर्दाश्त कर रही थी. अपने सपनों को पूरा करने के लिए उन्होंने मेहनत शुरू कर दी, उन्होंने तय किया कि वह हार नहीं मानेंगी और एक मजबूत महिला बनकर आगे बढ़ेंगी. जो लोग उन्हें अपमानित करते हैं, उन्हें वो बोलकर नहीं बल्कि अपनी काबिलियत से जवाब देंगी. लोगों दिए तानों और अपमान ने आशा को आगे बढ़ने की हिम्मत दी, क्योंकि समाज में सिर्फ शिक्षा से पहचान को बदला जा सकता है. समाज के तानो ने हर बार आशा को उम्मीद दी, सड़कों पर झाड़ू लगाते समय भी नजरें आसमान की बुलंदियों को देखती रही.

 

सड़कों पर झाड़ू लगाते हुए मिला रिजल्ट

आशा के लिए ये सफर आसान नहीं था, कई बार उन्हें लोगों की यातनाएं सहनी पड़ती, ताने सुनने पड़ते, यही नहीं स्वीपर का काम करने की वजह से लोग उन्हें हीन भावना से देखते थे.हाई सोसाइटी के लोगों के लिए वो बस एक कचरा साफ़ करने वाली थी. आशा को समाज के तानो से कोई फर्क नहीं पड़ता था क्योंकि अपने हौसले और जुनुन से सिर्फ आशा वाकिफ़ थी. उनका मानना था कि अगर आपके पास सपने देखने की ताकत है और उसे हासिल करने के लिए ईमानदारी तो आपका रास्ता कोई भी नहीं रोक सकता. मेहनत के बाद इंतजार था रिजल्ट का, जिस दिन परिणाम घोषित हुए, उस दिन तक आशा शहर की सड़कों पर झाड़ू लगा रही थी. आशा ने झाडू लगाते लगाते शहर की सड़कों का कचरा ही नहीं, लोगो की आँखों पर लगी धूल और कचरे को भी साफ़ कर दिया. आशा कहती है कि यहां तक पहुंचने के लिए जर्नी भले ही काफी मुश्किलों और संघर्षों से भरी थी, लेकिन अब वह उन लोगों के लिए कुछ करना चाहती हैं, जिनके साथ अन्याय हुआ है और समाज द्वारा वंचित हैं. आशा उन महिलाओं ले लिए एक उदाहरण है जो परिस्थितियों से हार मानकर किस्मत को दोष देती है, हिम्मत रखिये आशा है तो जिंदगी है.

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