जालोर: भीनमाल के नीलकंठ महादेव मंदिर प्रतिष्ठा कार्यक्रम में उत्तराखंड के सीएम पुष्करसिंह धामी ने लिया भाग
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जालोर: भीनमाल के नीलकंठ महादेव मंदिर प्रतिष्ठा कार्यक्रम में उत्तराखंड के सीएम पुष्करसिंह धामी ने लिया भाग

जालोर के भीनमाल के नीलकंठ महादेव मंदिर प्रतिष्ठा कार्यक्रम में उत्तराखंड के सीएम पुष्करसिंह धामी ने भाग लिया.

जालोर: भीनमाल के नीलकंठ महादेव मंदिर प्रतिष्ठा कार्यक्रम में उत्तराखंड के सीएम पुष्करसिंह धामी ने लिया भाग

Bhinmal: जालोर जिले के भीनमाल शहर में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्करसिंह धामी ने कहा कि राजस्थान के इतिहास को लिखने में देरी की गई. इसे आजादी से पहले ही व्यवस्थित रूप से लिखा जाना चाहिए था. वे भीनमाल के नीलकंठ महादेव मंदिर की प्रतिष्ठा समारोह में भाग लेने के दौरान श्रद्धालुओं को सम्बोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि नीलकंठ महादेव की इस पावन भूमि भीनमाल का उत्तराखंड की सांस्कृतिक राजधानी जिसको योग की भूमि कहा जाता है, उससे भी गहरा सम्बन्ध है, क्योंकि ऋषिकेश में भी नीलकंठ का भव्य प्रांगण है. वहां भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते है.

उन्होंने कहा कि राजस्थान रण बांकुरों की धरती है, इनकी गौरवशाली गाथा का लेखन सही नहीं हुआ, आजादी के बाद जो लिखा जा रहा है, यह पहले हो जाना चाहिए था. धामी ने कहा कि वे जब भी राजस्थान आते है तो भावुक हो जाते है, उनके पूर्वज भी राजस्थान से ही गए थे. धामी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की जागृति आई है. उन्होंने कहा कि अयोध्या में जो मंदिर बन रहा है, उसकी लम्बे कालखंड से इंतजार था, लेकिन उस सपने को साकार किया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने.

धामी ने कहा कि उनका की राजस्थान की धरती से गहरा सम्बन्ध है, वे जब जब राजस्थान आते है तो भावुक हो जाते है. उन्होंने कहा कि उनके पूर्वजों ने इसी राजस्थान की भूमि पर जन्म लिया था और यहीं से उत्तराखंड गए थे.उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्करसिंह धामी निर्धारित समय पर हेलीकॉप्टर से भीनमाल पहुंचे. जहां सबसे पहले वे वराह श्याम मंदिर पहुंचकर दर्शन किये. उसके बाद नीलकंठ महादेव मंदिर पहुंचे, उन्होंने महादेव के दर्शन कर पूजा अर्चना की. उसके बाद बाहर आते समय बड़ी संख्या में उपस्थित लोगों का अभिवादन स्वीकार किया. बाद में कथा पांडाल में उन्होंने जनसमूह को सम्बोधित किया. यहां आयोजक राव मुफतसिंह परिवार की ओर से उनका स्वागत किया गया. धामी के साथ आचार्य बाल कृष्ण भी साथ थे.

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