सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान में 2013 में आठ साल की बच्ची से रेप और हत्या के मामले में दोषी मनोज प्रताप सिंह को फांसी की सजा को बरकरार रखा है.
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Rajsamand: सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान में 2013 में आठ साल की बच्ची से रेप और हत्या के मामले में दोषी मनोज प्रताप सिंह को फांसी की सजा को बरकरार रखा है. इससे पहले हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि, मासूम बच्ची से दुष्कर्म और फिर उसकी हत्या जघन्य अपराध है, ऐसे अपराधी को सजा नहीं मिली तो समाज में आमजन का रहना मुश्किल हो जाएगा.
दरअसल, राजसमंद निवासी मनोज प्रतापसिंह ने 17 जनवरी 2013 की शाम शराब के नशे में पहले आठ वर्षीय बालिका का दुष्कर्म किया और फिर पत्थर से वारकर उसकी हत्या कर दी थी. बच्ची के लापता होने पर चिंतित परिजन थाने पहुंचे और बाद में तलाशी के दौरान बच्ची का शव मिला. इसके बाद जिला सेंशन और सत्र न्यायालय में त्वरित सुनवाई हुई, जहां जिला सेंशन और सत्र न्यायालय ने आरोपी को दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई. कोर्ट द्वारा सजा के ऐलान के बाद दोषी मनोज प्रताप सिंह ने हाई कोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
पुलिस के अनुसार बसन्तपुर-गुगली महाराजगंज (उत्तरप्रदेश) राजसमंद निवासी मनोज प्रतापसिंह ने 17 जनवरी 2013 की शाम शराब के नशे में 8 वर्षीय विकलांग बच्ची को घर से किडनैप कर दुष्कर्म किया और फिर पत्थर से वार कर उसकी हत्या कर दी. बालिका के लापता होने पर चिंतित परिजन थाने पहुंचे और तलाशी के दौरान बच्ची का क्षत-विक्षत शव मिला था. जिला सेशन और सत्र न्यायालय में त्वरित सुनवाई करते हुए 1 अक्टूबर 2013 को दोषी को फांसी की सजा सुनाई थी.
न्यायाधीश चंद्रशेखर ने कहा कि 24 वर्षीय दोषी मनोज प्रताप सिंह ने एक असहाय और मानसिक रूप से विक्षिप्त बच्ची का बलात्कार करने के बाद उसकी बेरहमी से हत्या करने का घिनौना कृत्य किया था. मनोज समाज और पूरी मानवता के लिए एक धब्बा है और वो मौत की सजा का हकदार है. अदालत ने कहा कि दोषी का आपराधिक इतिहास रहा है और वह सार्वजनिक संपत्तियों को नष्ट करने, चोरी और हत्या के प्रयास के कम से कम 4 मामलों में शामिल था.
साथ ही वर्तमान अपराध को चोरी की मोटरसाइकिल की मदद से अंजाम दिया गया है. दोषी ठहराए जाने के बाद भी दोषी को एक अन्य जेल साथी की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था और उसने एक अन्य कैदी के साथ झगड़े के लिए जेल में 7 दिन की सजा भी अर्जित की थी. ऐसे में वो समाज के लिए खतरा है और उसके सुधरने की भी कोई गुंजाइश नहीं है. ऐसे में उसे मौत की सजा से कोई भी कम सजा नहीं दी जा सकती. चाहे वो बिना छूट के पूरी जिंदगी जेल की सजा क्यों ना हो. पीड़िता बच्ची मानसिक और शारीरिक रूप से दिव्यांग थी.
सुप्रीम कोर्ट ने भी मामले को माना "रेयरेस्ट ऑफ द रेयर". भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 363, 365, 376 (2) (एफ), 302 और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम 2012 की धारा 6 के तहत अपीलकर्ता की दोषसिद्धि की पुष्टि की जाती है और भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 302 के तहत अपराध के लिए मौत की सजा सहित अपीलकर्ता को दी गई और सजा की भी पुष्टि की जाती है.
बता दें कि इस पूरे मामले पर जब जी मीडिया ने बच्ची के पिता से बात की तो उन्होंने रोते हुए कहा कि आरोपी को जल्द से जल्द फांसी दी जाए, तभी जाकर मेरी बच्ची को न्याय मिलेगा. मासूम बच्ची का पिता जैसे-तैसे अपना जीवन-यापन कर रहे हैं. बच्ची के पिता ने बताया कि मैं मेरी बच्ची को तो खो चुका हूं और इसी गम में मेरी पत्नी ने भी कोरोनाकाल में दम तोड़ दिया है, अब तो बस इसी उम्मीद पर जिंदा हूं कि मेरी बच्ची को जल्द से जल्द न्याय मिले और आरोपी को फांसी दी जाए. कोर्ट, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया है उससे उम्मीद जगी है कि जल्द ही आरोपी को फांसी दी जाएगी.
Reporter: Devendra Sharma
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