दीपावली पर मरका मिठाई नहीं खाई तो आपने कुछ नहीं खाया, लक्ष्मी पूजन हो या गोवर्धन पूजा. हर त्योहार में इस मिठाई को प्रसाद के रूप में भगवान को भोग लगाया जाता है. बिना मावे से बनी मरका मिठाई जिसे देश के कई प्रान्तो के साथ साथ खाड़ी देश में भी बडे चाव से खाया जाता है.
Trending Photos
Kapasan: दीपावली पर मरका मिठाई नहीं खाई तो आपने कुछ नहीं खाया, लक्ष्मी पूजन हो या गोवर्धन पूजा. हर त्योहार में इस मिठाई को प्रसाद के रूप में भगवान को भोग लगाया जाता है. बिना मावे से बनी मरका मिठाई जिसे देश के कई प्रान्तो के साथ साथ खाड़ी देश में भी बडे चाव से खाया जाता है. ये लम्बे समय तक चलने वाली मिठाई सिर्फ शुद्व घी और चावल के आटे से बनाई जाती है.
क्या है मरका मिठाई और कहा से आईं
चावल से निर्मित मरके मिठाई का सबसे पहले निर्माण कपासन में किया गया था. सेठीया जैन परिवार की यह पांचवी पिढ़ी है जो इस मिठाई का निमार्ण कर रही है . सेठीया जैन परिवार के पुरखे श्रीमाल सेठ ने इस मिठाई को सबसे पहले कपासन में ही बनाया था.
इस मांग त्योहारों पर इतनी बढ़ जाती है कि दीपावली से एक महीने पहले से ही इस मिठाई को दर्जनों हलवाई बनाने में लग जाते है. जो दिवाली के 15 दिन बाद तक जारी रहता है. मरके निमार्ण में जलवायु का भी काफी प्रभाव रहता है. हल्के ठंडे मौसम में यह मिठाई अच्छी बनती है जबकी गर्मी और बरसात में इसका स्वाद अच्छा नहीं बैठता है.
गुजरात महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश सहित कई राज्यों सहित विदेशों में इसे लोग खूब स्वाद लेकर खाते है. मरका एक ऐसी मिठाई है जो चावल के आटे से बनाई जाती है. जिसे राजस्थान के कई क्षेत्रों में व्यापारी खरीद कर ले जाते है और अपने इलाके में इसका विक्रय करते है..
कैसे बनती है मरका मिठाई
हलवाई के अनुसार एक किलो चावल का आटा लेकर उसे अच्छी तरह गुंथ लिया जाता है. यदी मौसम ज्यादा ठंडा हो तो गुनगुने पानी में इसे गुंथा जाता है. सामान्यत इसे ठंडे पानी में ही गुंथते है. इसके बाद इसके छोटे-छोटे लोई बनाए जाते है. इसके बनाने के लिये दो जनों की जरूरत होती है. जो एक लोई बनाता है और दूसरा उसे एक हाथ में गीला कपड़ा लेकर उस पर गोल-गोल पहिये की जैसी आकृति देकर उसमें उंगली से छेदकर गरम घी में डालकर उसे अच्छी तरह फ्राई करता है. फ्राई होने के बाद इन्हे दूसरे पात्र में निकाते है और जरूरत के अनुसार इन्हें शक्कर की चासनी पिलाई जाती है. सूखने के बाद इसे बड़े चाव से खाया जाता है. बता दें कि दुकानदार वनस्पति घी से बने मरके 300 से 350 रूपये और शुद्व देसी घी से बने मरके 200 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेचे जाते है.
Reporter: Deepak Vyas
अच्छी खबर: फसलों की गिरदावरी के लिए राजस्थान सरकार जल्द लॉन्च करेगी एक मोबाइल एप
शराब ना दी तो संचालक और सेल्समैन को पीटा, बोले-पार्टनर बनाओ नहीं तो जिंदा नहीं बचोगे