वन्य जीव संरक्षण का अनोखा जूनून, लगभग दो हजार सांपों को पकड़कर कई पुरस्कार जीते
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वन्य जीव संरक्षण का अनोखा जूनून, लगभग दो हजार सांपों को पकड़कर कई पुरस्कार जीते

मनीष तिवारी को वन्य जीव संरक्षण का ऐसा जूनून है कि वह एक सफल स्नेक केचर बन गए और पीछले चार सालों में ही लगभग दो हजार सांपों को पकड़कर कई पुरस्कार अपने नाम कर दिए.

 

 वन्य जीव संरक्षण का अनोखा जूनून, लगभग दो हजार सांपों को पकड़कर कई पुरस्कार जीते

Chittorgarh: चित्तौड़गढ़ शहर में एक ऐसा शख्स रहता है जो पेशे से तो नौकरी पेशा है लेकिन वन्यजीव संरक्षण का ऐसा जूनून इस शख्स को सवार हुआ कि महज चार सालों में ही दो हजार से अधिक सांपों को रेस्क्यू कर जंगलों में छोड़ इसने वन्यजीव संरक्षण की अनूठी मिसाल कायम की है. चित्तौड़गढ़ शहर में जन्मा और बड़ा हुआ यह शख्स जिसका नाम मनीष तिवारी है और यह चित्तौड़गढ़ की सरस डेयरी में काम करता है जो खरनाक से खतरनाक सांपों को मिनटों में ऐसे पकड़ लेता है जैसे मानों को रस्सी पकड़ ली हो.

वन्य जीवों के प्रति लगाव

शख्स ने बताया कि मेरा जन्म भक्ति और शक्ति की नगरी चित्तौड़गढ़ में हुआ जो भूमि हरियाली व जैव विविधता से सम्पन्न है. मैं बहुत भाग्यशाली हूं कि मेरा बचपन इस धरती पर प्राकृतिक सम्पन्नता में बीता. बहुत छोटी उम्र से ही मुझे सरीसृपों से विशेषकर सर्पों से बहुत लगाव रहा. मेरी नजर में सर्प भगवान की सुन्दरतम रचनाओं में से एक है.
मैं अपने आपको खुश किस्मत मानता हूं कि ईश्वर ने मुझे जीवों के प्रति वह नजरिया और हृदय में उनके प्रति दया व प्रेम का भाव दिया, जिससे प्रेरित होकर बचपन से ही जीवों के प्राणों की रक्षा या देखभाग का मौका मिलने पर पूरी श्रद्धा से करता था. धीरे-धीरे पडोस व मोहल्ले के लोग सर्प दिखाई पड़ने पर मुझे बुलाने आते और मैं सर्पों को सुरक्षित स्थान तक पहुंचाने का भरसक प्रयास करता. इस कार्य से मुझे इतनी खुशी व सन्तुष्टि मिलती कि मैं इस दिशा में और अधिक कार्य करने को प्रेरित होता रहा.

मनीष तिवारी का वन्य जीवों के प्रति लगाव और समर्पण

चित्तौड़गढ़ व आसपास के क्षेत्रों में सर्पों व अन्य जीव जन्तुओं से सम्बन्धित जानकारी और प्रशिक्षण देने वाली संस्था या विशेषज्ञ नहीं मिलने के कारण लम्बे समय तक मनीष तिवारी नाम का यह शख्स सीमित ज्ञान ही सही परन्तु सर्पों के प्रति अपने अपार प्रेम के चलते अपने रेस्क्यू कार्य में लगा रहा. एक वृतान्त है जो हमें मनीष तिवारी ने बताया कि जो एक ऐसा वाकया जो हमेशा मुझे सुख की अनुभूति देता है. एक दिन मैं किसी सामाजिक कार्यक्रम में शामिल होने जा रहा था तो रास्तें में देखा कुछ लोग सर्प को जला रहे थे. वहीं गाड़ी रोककर सर्प को बचाने पास गया तो पाया वह एक विषैला प्राणघातक कोबरा था.

जिससे लोग बहुत डरे हुये थे और वे लोग उसे मारना चाह रहे थे. कोबरा के व्यवहार व रेस्क्यू सम्बन्धित किसी प्रकार की कोई भी जानकारी ना होते हुये भी मैंने सफलतापूर्वक कोबरा को सुरक्षित बचा लिया व लोगों को उसके खौफ से निजात दिलवाई तभी से चालू हुआ जहरीले खतरनाक लेकिन अकारण हम इंसानों को नुक्सान नहीं पहुंचाने वाले इन सांपों को बचाने का यह खेल और बन गया लगभग दो हजार सांपों को रेस्क्यू करने का अनूठा रिकॉर्ड.

वन्य जीव संरक्षण कार्य की शुरूआत

चित्तौड़गढ़ के वन्य जीव प्रेमी मनीष शर्मा से बात करने पर उन्होंने हमें बताया कि ईश्वर की कृपा से ऐसा सुन्दर संयोग बना कि लगभग चार साल पहले मेरा मनीष तिवारी का मिलना वन्य जीव प्रेमी व सर्प विशेषज्ञ निखिल वानखेडे से हुआ और तब निखिल वानखेडे से मनीष तिवारी को सांपों को रेस्क्यू करने के क्षेत्र का प्रशिक्षण के साथ ही मार्गदर्शक मिला. निखिल ने मनीष को सर्पों की पहचान, उनके विषैले व विषहीन वर्गों में वर्गीकरण, उनके व्यवहार एवं उनके रेस्क्यू के सुरक्षित तौर-तरीकों व बचाव के साधनों के सम्बन्ध में ज्ञान व प्रशिक्षण दिया. 

इनसे प्राप्त जानकारी व प्रशिक्षण ने मनीष का उत्साहवर्धन किया उसके बाद से ही मनीष को वन्य जीवों और विषेले सांपों को बचाने के अभियान ने मानों ना रूकने वाली गति पकड़ ली. मनीष को लगा कि अब वह वास्तव में वन्य जीवों और सर्पों के संरक्षण के प्रति अपना योगदान दे सकता है. विगत 4 वर्षों में मनीष तिवारी द्वारा 2 हजार से ज्यादा सर्पों का रेस्क्यू किया है जिनमें *कोबरा, केट, रसल्स वाईपर, चेकर्ड कील बेक, ट्रीकेट रेट स्नेक, ग्रीन कील बेक, वुल्फ, कोमनसेंड बोआ, रेड सेंड बोआ, कुकरी* इत्यादि के साथ कई प्रमुख प्रजाति के सांप शामिल हैं .

खुशकिस्मती से मनीष को चित्तौड़गढ़ की दुर्लभ प्रजातियां जैसे *स्लेन्डर रेसर एवं बेंडेड रेसर* को रेस्क्यू करने का भी मौका मिला जिसे उन्होंने बखूबी पूरा किया यही नहीं मनीष की अब तक की रेस्क्यू की गई वन्य जीवों की सूची में 3 मगरमच्छ एवं 10 से अधिक इंडियन रोक पाईथन का रेस्क्यू भी शामिल है जिनमें से एक पाईथन तो 12 फीट तक लम्बा था. 

सर्पों के साथ ही अन्य जीवों के प्राणों की रक्षा एवं उनकी सेवा का मौका भी मनीष ने अपने हाथ से नहीं जाने दिया और मनीष ने कुत्ता, कछुआ के अलावा पक्षियों में बाज, उल्लू, तोता, बन्दर मोनिटर लिजार्ड इत्यादि का भी सफल रेस्क्यू कर इन घायल और मुसीबत में फंसे जानवरों और पक्षियों की जान की रक्षा की है.

जीवों की देखभाग एवं उपचार कराने का स्वर्णिम अवसर

मनीष तिवारी ने हमारी टीम को बताया कि उनका उद्देश्य केवल इंसानी आबादी क्षेत्र से सर्पों और वन्यजीवों का रेस्क्यू करना ही नहीं रहा अपितु उन्होंने बीमार अथवा घायल अवस्था में मिलने वाले वन्य जीवों और सर्पों का भी उपचार व पूर्णतः स्वस्थ होने की अवस्था तक देखभाल भी की है इन चार सालों के छोटे से सफर में तीन बार ऐसे मौके भी आये जब मनीष को घायल अवस्था में जहरीले सर्प मिले और एक सर्प तो ऐसा मिला जिसका जबड़ा खिसका हुआ था.

दूसरी बार एक घायल सर्प जो कि चरम निर्जलित अवस्था में मिला एवं तीसरी बार सर्प घायल अवस्था में मिला जिसके पेट वाले स्थान पर 2 इंच लम्बा घाव था. जिसका उन्होंने वरिष्ठ पशु चिकित्सक डा. धमेन्द्र सोन द्वारा और वन विभाग चित्तौड़गढ़ के निर्देशन में शल्य चिकित्सा कर 15 टांके लगा कर उसे उपचारित करवाया गया. उस सर्प को 15 दिवस तक उपचार करने के बाद चिकित्सकों और विशेषज्ञों की देखरेख में रखा गया बाद में उस सांप को पूर्णतः स्वस्थ होने पर वन विभाग द्वारा उसके नैसर्गिक आवास वन क्षेत्र में छोड़ दिया गया. 

एक बार का वाकया याद करते हुए मनीष तिवारी ने बताया कि उन्हें एक बार कुछ वन्यजीव प्रेमियों के सहयोग से एक ऐसे बन्दर के बारे में जानकारी प्राप्त हुई जो कोरोना लॉकडाउन काल में एक मदारी द्वारा छोड़ दिये जाने पर अन्यन्त गंभीर बिमारी की अवस्था में चला गया तब मनीष ने उस बन्दर को रेस्क्यू कर उसका चिकित्सकों की मदद से उपयुक्त उपचार करवाया और उसकी पूरी देखभाल की.

जागरूकता से सर्पों के प्रति लोगों के नजरीये में बदलाव का प्रयास

मनीष तिवारी ने बताया कि एक बात जो मुझे हमेशा परेशान करती है वो है हमारे समाज में सर्पों के सम्बन्ध में फैली गलत धारणाऐं एवं अन्धविश्वास जिसके चलते अधिकतर मौकों पर सर्पों से सामना होने पर लोग उन्हें मार देते हैं. अधिकांश लोग इस सच्चाई से अनजान है कि सामान्यतया पायी जाने वाली अधिकतर सर्पों की प्रजातियां विषहीन है जो मनुष्यों के लिये घातक नहीं हैं.

उसके उलट सर्प हमारे पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तन्त्र का महत्त्वपूर्ण अंग है एवं खाद्यजाल (Food web) में उनका बहुत जरूरी स्थान व योगदान भी रहा है. सर्पों को तो किसानों का मित्र भी कहा जाता है क्योंकि वह किसानों की अनेकों प्रकार से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से मदद करते हैं परंतु इन सबसे अनजान लोग इन्हें देखते ही मौके पर ही मार देते हैं जो बहुत चिन्तनीय व दुखदाई है.

मनीष तिवारी बताते हैं कि मैं हर सर्प रेस्क्यू पर लोगों को सर्पों की पहचान एवं उनके व्यवहार के सम्बन्ध में जानकारी देता हूं और इनके पारिस्थितिकी तन्त्र में महत्त्वपूर्ण योगदान के विषय में समझाने का प्रयास करता हूं. रेस्क्यू स्थल पर एकत्रित लोगों को सर्प दिखाई पड़ने पर उसे नहीं मारने अपितु उससे सुरक्षित दूरी बनाये रखकर वन विभाग को सूचित करने हेतु एवं सर्पदंश होने पर झाड़फूंक बाबा के पास न जाकर उपचार हेतु सीधे सरकारी अस्पताल जाने की जानकारी देकर, प्रेरित करने का प्रयास करता हूं.

हृदय से कृतज्ञता का भाव

मनीष तिवारी बताते हैं कि मेरे वन्यजीव संरक्षण एवं सर्पों के बचाव सम्बन्धित प्रयासों में चित्तौड़गढ़ के वन विभाग का अमूल्य योगदान रहा है. वन विभाग ने मेरे जीवों के प्रति समपर्ण एवं निस्वार्थ भाव से प्रेरित कार्यों को समर्थन प्रदान कर मुझे नया सम्बल दिया है और वन विभाग ने मेरे वन्यजीव संरक्षण कार्यों को एक विस्तृत मंच प्रदान किया है जिसके लिये मैं उनका हृदय से आभारी हूं. 

भगवान ने मुझे वन्यजीवों से प्रेम करने वाले ऐसे दोस्तों से नवाजा है जो मुझे हर सम्भव सहयोग देकर मुझे उर्जावान बनाये रखते हैं एवं इस दिशा में कार्य की निरन्तरता को बनाये रखने को उत्साहित करते हैं. मैं केवल हृदय में वन्यजीवों के प्रति प्रेम व दया भाव से इनके संरक्षण कार्यों को इस मुकाम तक नहीं पहुंचा पाता यदि मुझे मेरे मार्गदर्शक निखिल वानखेडे का सानिध्य प्राप्त नहीं होता जो मेरे प्रेरणास्त्रोत भी हैं. अंत में मनीष तिवारी हमें बताते हैं कि इन सभी वन्यजीव संरक्षण कार्यों के लिए वे कई बार जिला और राज्य स्तर पर सम्मानित भी हो चुके हैं.

Reporter-Deepak Vyas

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