Chittorgarh: कबीर दास के जन्मोत्सव पर साहित्य प्रेमी ने कही ये बड़ी बात
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Chittorgarh: कबीर दास के जन्मोत्सव पर साहित्य प्रेमी ने कही ये बड़ी बात

संत कबीर दास जो कुछ बोलते,उसे उनके साथ रहने सुनने वाले ,समझने वाले लिख लिया करते थे. वे एक ईश्वर को मानते थे.

Chittorgarh:  कबीर दास के जन्मोत्सव पर साहित्य प्रेमी ने कही ये बड़ी बात

Chittorgarh: अंतरराष्ट्रीय संत कबीर दास के जन्मोत्सव पर साहित्य प्रेमी लेखक मदन सालवी ओजस्वी ने लोगों को उनके जीवन से प्रेरणा लेकर जीने के लिए कहा. ओजस्वी ने कहा कि साहित्य जगत में अनूठा स्थान रखने वाले संत कबीर के जन्म में मतभेद तो रहेगा ही.

1338 में तालाब के किनारे एक अबोध बालक पानी में किसी टोकरे में पाया गया. एक दम्पत्ति जो कि मुस्लिम था, नीरू नीमा ने पाला पोसा, कबीर कपड़ों की बुनाई के काम करने लगे. उनमें अलग ही भाव प्रकट हो कर उभरता था, उनकी बातों में वास्तविकता तथा जीवन में छीपे अंधकार को दूर करने की समझ देने वाली हकीकत रही है.

वे जो कुछ बोलते,उसे उनके साथ रहने सुनने वाले ,समझने वाले लिख लिया करते थे. वे एक ईश्वर को मानते थे. अवतार, मूर्ति पूजा को नहीं मानते थे. वे निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे. रामानंद जी को उन्होंने अपना गुरु माना. संत साहेब कबीर की पत्नि का नाम लोई तथा पुत्री का नाम कमाली , पुत्र का नाम कमाल था.

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संत कबीर की भाषा सभी भाषाओं का तालमेल था. संत साहेब कबीर मानते थे कि गति अपने कर्मों के अनुसार होती हैं, 1518 में उन्होंने अंतिम सांस ली. आज पूरे विश्व में संत कबीर के भजन उपदेश को बहुत ही सम्मान दिया जाता है. किंतु बहुत कम लोग हैं जो उनके बताए रास्ते पर चलतें हैं.

आज तो अनेकों है जो संत कबीर के बताए रास्ते पर चलने के लिए कदम बढ़ा रहे हैं. संत साहेब कबीर के भजनों और दोहों के अधार पर ही अनेकों संत बन कर उपदेश दे रहे हैं. संत कबीर साहेब जैसा संत और कोई नहीं हुआ. उन्होंने इस मानव शरीर को ही चलता फिरता मंदिर बताया, इसी में ईश्वर, सारी शक्ति, तथा यह शरीर भौतिक शरीर होकर मिट्टी से बना मिट्टी में मिल जाना समझाया है. उन्होंने लिखा "मौकों कहां ढूंढे रे बंदे? मैं तो तेरे पास में". इस जीवन के महत्व को समझकर जीओ,यह जन्म बार बार नहीं आता.

मनुष्य जीवन में रहकर इसे सार्थक बना लें. इस संसार में उलझना नहीं हैं. उनका मानना था कि परमात्मा को वही पा सकता है जो उसका खोजी हो. हम अपने जीवन को मतलबी होकर नहीं, भलाई से,जीवन में पवित्रता से जीएं. भलाई,पुण्याई, नेकी करते हूए, उसका धन्यवाद करते रहने में ही जीवन है. केवल ठकुराई साथ नहीं जाने वाली है.

धार्मिकता के नाम पर बाहरी दिखावा, ढोंग, आडम्बरपूर्ण,पांखड, रूढ़ीवाद के रास्ते पर जाना बन्द करें. इसमें कुछ भी हकीकत नहीं होना समझाया है. उनका मानना था कि सिर मुंडवाने से, कपड़ा रंगाने से, बाल बढ़ाने से कुछ नहीं होता, जीवन में भलाई, नेक जीवन ही गति देता है. 

Reporter-Deepak Vyas

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