Bhandasar Jain Temple: दानवीर सेठ को मजदूर ने कहा- कंजूस, तो घी से बनानी पड़ गई मंदिर की नींव
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Bhandasar Jain Temple: दानवीर सेठ को मजदूर ने कहा- कंजूस, तो घी से बनानी पड़ गई मंदिर की नींव

Seth Bhandasar Jain Temple: एक ऐसा मंदिर जिसकी नींव के निर्माण में पानी के स्थान पर हजारों लीटर शुद्ध देसी घी का इस्तेमाल किया गया. बीकानेर के प्रसिद्ध भांडाशाह जैन मंदिर कहानी पढ़कर आप भी हैरत में पड़ जाएंगे.

घी से बनानी पड़ गई मंदिर की नींव

Bikaner Bhandashah Jain Temple: भारत के पश्चिम में स्थित राजस्थान एक ऐसा राज्य है जहां रेत के टीलों और राजपूतों की आन बान-शान की गवाही धरती देती है. एक से बढ़कर एक किले, हवेलियां देखकर किसी को भी इतिहास में दिलचस्पी बढ़ जाएगी.        

थार के रेगिस्तान से घिरा बीकेनेर शहर जिसे हजार हवेलियों का शहर कहा जाता है. यूं तो बीकानेर रसगुल्लों की मिठास और भुजिया के तीखापन के कारण पूरी दुनिया में मशहूर है, लेकिन अगर आपने बीकानेर का भांडाशाह जैन मंदिर नहीं देखा तो मान लीजिए कि कुछ नहीं देखा. ये एक ऐसा मंदिर है, जिसकी नींव पानी से नहीं, बल्कि 40 हजार लीटर देसी घी से भरी गई थी.

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पानी के स्थान पर घी के उपयोग से मंदिर का निर्माण सुनने में अजीब लगता है, जैसे कोई हवाई बात कर रहा हो, लेकिन बीकानेर में ऐसा मंदिर मौजूद है, जिसकी नींव देसी घी से भरी गई और घी भी एक-दो लीटर नहीं, बल्कि 40 हजार लीटर से मंदिर का निर्माण हुआ है.

लाल और पीले पत्थरों से बना तीन मंजिला विश्व प्रसिद्ध भांडाशाह जैन मंदिर, जिसकी नींव घी से भरी गई. यही नहीं, इस मंदिर में मथेरण और उस्ता कला से चित्रकारी भी की गई है, जिसे देखने के लिए रोजना बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक आते हैं.

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बीकानेर के लक्ष्मीनाथ मंदिर के पास मौजूद पांच शताब्दी से ज्यादा प्राचीन भांडाशाह जैन मंदिर दुनिया में अपनी अलग ही ख्याति रखता है. इसका निर्माण भांडाशाह नाम के व्यापारी ने 1468 में शुरू करवाया और 1541 में उनकी पुत्री ने इसे पूरा कराया था. मंदिर का निर्माण भांडाशाह जैन द्वारा करवाने के कारण इसका नाम भांडाशाह पड़ा गया.

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जमीन से करीब 108 फीट ऊंचे इस जैन मंदिर में पांचवें तीर्थकर भगवान सुमतिनाथ जी मूल वेदी के रूप में विराजमान हैं. यह पूरा मंदिर तीन मंजिलों में बंटा है. इस मंदिर को लाल बलुआ पत्थरों और संगमरमर से बनाया गया है. मंदिर के भीतर की सजावट बहुत सुंदर है.

ऐसे हुआ मंदिर का निर्माण 
मंदिर का निर्माण भांडाशाह ओसवाल ने करवाया, जो घी के व्यापारी थे. जब मंदिर के निर्माण को लेकर उनकी बैठक मिस्त्री के साथ चल रही थी, तब दुकान में रखे घी के पात्र में एक मक्खी गिर कर मर गयी, तो सेठ ने मक्खी को उठाकर अपने जूते पर रगड़ लिया और मक्खी को दूर फेंक दिया. पास बैठा मिस्त्री ये सब देखकर आश्चर्यचकित हो गया, कि सेठ कितना कंजूस है. मक्खी में लगे घी से भी अपने जूते चमका लिए. फिर मिस्त्री ने सेठ की दानवीरता की परीक्षा लेने की ठानी. मिस्त्री बोला सेठ जी मंदिर को शताब्दियों तक मजबूती देने के लिए इसमें उपयोग होने वाले मिश्रण में पानी की जगह घी का उपयोग करना उचित रहेगा. सेठ भोले-भाले थे और तभी उन्होंने घी का प्रबंध कर दिया. 

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मंदिर का निर्माण जब शुरू हो रहा था, उस समय मिस्त्री घी को देखकर आश्चर्य चकित हो उठा और तभी सेठ से क्षमा मांगी और कहा कि मैंने एक दिन आपको घी में पड़ी मक्खी से अपने जूते चमकाते देखा, तो सोचा की आप बहुत कंजूस हो, लेकिन सेठ जी आप तो बहुत बड़े दानवीर हो, मुझे माफ कर दीजिए, ये घी वापस ले जाइए, मैं मंदिर निर्माण में पानी का ही प्रयोग करूंगा. तब सेठ ने कहा कि वो तुम्हारी ना समझी थी कि तुमने मेरी परीक्षा ली. अब ये घी भगवान के नाम मैंने दान कर दिया है, सो अब इसका उपयोग तुमको मंदिर निर्माण में करना ही होगा. तब मिस्त्री ने मंदिर निर्माण में 40 हजार लीटर घी का प्रयोग किया. आज भी तेज गर्मी के दिनों में इस जैन मंदिर की दीवार और फर्श से घी रिसता है. 

हालांकि किसी भी लिखित दस्तावेज में इस बात का उल्लेख नहीं है, कि मंदिर की नींव घी से भरी गई थी, लेकिन ऐतिहासिक तथ्यों के लिए कई बार प्रमाणिकता की जरूरत नहीं होता. बीकानेर में यह बहुत आम बात है कि इस मंदिर की नींव घी से भरी गई थी.

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