Trending Photos
बीकानेर: क्या चन्द्रमा की सतह के नीचे डायनोसौर और मानव या एलियन की खोपड़ियों के अवशेष है. क्या चंद्रमा पर जीवन है इन सवालों को लेकर मानो पिछले कई दशकों से वैज्ञानिकों का शोध जारी है, लेकिन इन सब के बीच बीकानेर के रहने वाले जगमोहन सक्सेना ने चन्द्रमा के सतह के नीचे डायनोसौर और मानव या एलियन की खोपड़ियों के अवशेष होने का शोध करते हुए दावा किया है और इसे लेकर इंटरनेशनल साइंस एंड रिसर्च जर्नल में भी इस शोध को प्रकाशित किया है, जिसके बाद से इस तरह के अवशेष के चंद्रमा पर होने को लेकर नई बहस शुरू हो गयी है.
आप माने या ना माने,चंद्रमा की सतह के नीचे बड़े क्षेत्र को मेसोजोइक एरा के डायनोसौर के अवशेष जीवाश्मों के आप्लावित क्षेत्र के रूप में खोजा गया है. जिसे खगोलविद् जगमोहन सक्सेना ने अपने शोध में साफ़ किया है, जिसमें इस आशय का एक शोध आलेख इंटरनेशनल जर्नल आइ साइंस एण्ड रिसर्च जर्नल ने प्रकाशित भी कर दिया है. सक्सेना का दावा है कि यह पहली बार है जब उपग्रह छवियों के साथ रिमोट सेंसिंग टूल का उपयोग पारलौकिक जीवन के संकेतों को खोजने के लिए प्रभावी रूप से किया गया है.
यह भी पढ़ें: कहीं बाढ़ तो कहीं प्यास, ये कैसा राजस्थान? आठ दिन से खाली है टंकी, अब नरेगा मजदूरों के मटके से बुझ रही है प्यास
क्या है सक्सेना का दावा
सक्सेना कहते हैं कि यह शोध चंद्रमा, पशु और वनस्पतियों के विकास के क्रम व काल की एक नई बहस को शुरू कर सकता है. चन्द्रमा की सतह के नीचे की इस जगह की पहचान दक्षिण ध्रुव (निकट) क्षेत्र के रूप में की गई है, जो क्रेटर माजिनियस ई के बीच से बोगू सलॉवस्की एच क्रेटर हिन्द क्रेटर और नुस्ल एस क्रेटर में पाया गया है. ये वे क्षेत्र हैं जो मेसोज़ोइक एरा के अन्य जानवरों के साथ डायनासोर के जीवाश्मों से बहुतायत में मिले हैं. बहुत संभव है कि मेसोज़ोइक एरा के वनस्पतियों और अन्य जीवों के जीवाश्म भी इस जगह पर पाए जा सकते हैं.
चंद्रमा की सतह के नीचे पाए जाने वाले इन जीवाश्मों को संभवतः टी-रेक्स की एक खोप व 2 एलायन खोपड़ी के रूप में पहचाना गया है, और परसौरौलोफस के दो कंकाल, प्रोटोसीराटोप्सियन के एक कंकाल की संरचना भी देखी गई है. इन्हें चंद्रमा की सतह के नीचे नासा द्वारा एल आर ओ सी साईट पर उप्लब्ध कराई गई छवियों में रिमोट सेंसिंग टूल की सहायता से देखा गया है.
चंद्रमा और डायनासोर के विकास की अवधि के बीच एक बड़ा अंतर
हालांकि, चंद्रमा के एक विशाल क्षेत्र की पहचान ''मेसोजोइक एरा'' के बड़े जानवरों के जीवाश्मों से आच्छादित क्षेत्र के रूप में की गई है, लेकिन जिस क्षेत्र में जीवाश्मों की स्पष्ट संरचनाएं देखी गई हैं, उन्हें ही यहां रिपोर्ट किया गया है. यह खोज चंद्रमा के उद्भव के काल के बारे में एक नयी बहस शुरू कर सकती है. क्या चंद्रमा का उद्भव केवल 6.5 करोड़ वर्ष पहले हुआ था. या यह पृथ्वी से टूटे हुए टुकड़ों या कुछ उल्का पिंडों के माध्यम से जीवाश्मों से भर गया. या यह पृथ्वी और चंद्रमा पर एक साथ डायनासोर का समानांतर विकास की और इशारा करता है. यह आगे के अध्ययन और चर्चा का विषय हो सकता है. क्योंकि चंद्रमा और डायनासोर के विकास की अवधि के बीच एक बड़ा अंतर रहा है. जैसा कि माना जाता है? कि चंद्रमा 4.5 अरब साल पहले अस्तित्व में आया, जबकि डायनासोर कुछ करोड़ साल पहले मेसोज़ोईक काल में अस्तित्व में आये थे.
चन्द्रमा पर पाए गए ये जीवाश्म अवशेष किस अवधि के हैं, वे चंद्रमा तक कैसे पहुंचे. क्या पृथ्वी पर डायनासोर के विनाश का क्रम, चंद्रमा की व्युत्पत्ति से संबंध रखता है? ये सभी बिंदु गहरी जिज्ञासा उत्पन्न करते हैं. जो हमें भविष्य के विज्ञान को और अधिक समृद्ध करने में सक्षम करेगा.
अंतरिक्ष विज्ञान में रुचि होने से सरल हुआ रिसर्च
शोधकर्ता खगोलविद जगमोहन सक्सेना पिछले कई सालों से देश ओर दुनिया के वैज्ञानिक के सम्पर्क में है ओर अपने शोध को आगे बढ़ा रहे हैं. ऐसे में शोध को लेकर ये ख़ुशी ज़ाहिर करते हैं की साइंस जर्नल में छपे उनके शोध के बाद उनकी मेहनत ओर शोध को नई दिशा मिली है .सक्सेना कहते हैं कि इस समय जब हमारा chandrayaan-2 चांद पर गया तो मेरी रुचि और ज्यादा बढ़ गई उस रुचि के बढ़ने से मैंने इस दिशा में अपना प्रयास करने शुरू किए और यह भी एक सी योगिता में सेवानिवृत्त हो चुका था स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से उसके बाद में मेरे पास में अपने शौक को पूरा करने के लिए बहुत सारा समय था और उस समय को मैसेज भेजो करके तो मैंने इसके अंदर अंतरिक्ष विज्ञान को सुना और अंतरिक्ष विज्ञान मेरा सबसे फेवरेट विषय है, जिसमें एलियंस एस्ट्रा ट्रेडिशनल लाइफ के बारे में सभी को जैसे कि बहुत ज्यादा रोमांस रहता है मुझे भी उसी तरह था, लेकिन मेरे पास साधन उपलब्ध नहीं थे जिन से मैं काम कर सके, फिर भी मैंने अपना प्रयास किया और जितना भी जो भी ऑनलाइन मीटर उपलब्ध था उसको मैंने देख कर उसको समझने की कोशिश की और तब मुझे यह जानकारी मिली.
विश्व के लाखों वैज्ञानिक इस विषय के ऊपर शोधकर्ता लगे हुए हैं. रोजाना कोई न कोई नया समाचार पढ़ने को मिलता है जिसमें यह पता लगता है कि जीवन की खोज के प्रयास जारी है जीवन मिलने वाला है दूसरे ग्रुप पर और उस पर जीवन की कल्पना भी उसी के सामने स्पष्ट नहीं थी तब मैंने प्रयास किया और चंद्रमा को अपना मूल उद्देश्य बनाया और मूल उद्देश्य बनाने के बाद में इसमें chandrayaan-2 की सफलता हमारे सामने थी उनसे लेकर आगे बढ़ा और आगे बढ़ने के बाद में मैंने कहा कि चंद्रमा हमारे पृथ्वी के सबसे नजदीक है कुचलने के अधिकतम संभावना हो सकती है चंद्रमा पृथ्वी जुड़वा ही है.
Reporter- Rounak vyas
अपने जिले की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें