Pachpadra - Balotra Vidhansabha Seat : पश्चिमी राजस्थान के बाड़मेर जिले की पचपदरा सीट की जनता ने भाजपा कांग्रेस को अब तक लगभग बराबर मौका दिया है, वहीं बालोतरा को जिला बनाकर विधायक मदन प्रजापत ने अपना वादा क्षेत्र की जनता से पूरा किया है, जानें यहां इतिहास
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Pachpadra - Balotra Vidhansabha Seat : विश्व पटल पर रिफाइनरी के लिए अपना नाम अंकित कर चुका पचपदरा पूर्वी राजस्थान का एक अहम विधानसभा क्षेत्र है. इस क्षेत्र का इतिहास बेहद दिलचस्प रहा है. यह पूर्वी राजस्थान की वो सीट है जहां से पहली बार महिला विधायक चुनी गई और उन्होंने लगातार 3 बार जीत हासिल की. इस क्षेत्र के लोगों ने दिल खोल कर हर बड़े दल को मौका दिया. अब यह क्षेत्र अपने आप में जिला बनने जा रहा है. बाड़मेर जिले में आने वाले पचपदरा-बालोतरा विधानसभा सीट, अब 2023 में नए जिले में होगी. हालांकि इस सीट का इतिहास भी दिलचस्प रहा है. इस सीट पर 5 बार भाजपा और 6 बार कांग्रेस का कब्जा रहा है, जबकि दो बार निर्दलीय ने इस सीट पर जीत हासिल की है.
पचपदरा विधानसभा सीट पर अमराराम चौधरी 8 बार निर्दलीय के साथ-साथ कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़ते रहे, जबकि 7 बार मदन कौर ने चुनाव लड़ा. अमराराम ने 1980 में पहला चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ा और जीत हासिल की. इसके बाद 1993 में अमराराम निर्दलीय खड़े हुए और जीते. फिर 1998, 2003 और 2013 में अमराराम भाजपा के टिकट पर जीते. हालांकि लंबे सफर में अमराराम को तीन बार हार का सामना भी करना पड़ा. साथ ही अमराराम बाद में मंत्री भी बने. वहीं मदन कौर ने पहला चुनाव 1962 में लड़ा था जिसमें उन्हें चुनाव में हार का सामना करना पड़ा, लेकिन 1967 से लेकर 1977 तक मदन कौर ने तीन बार जीत हासिल की.
विधानसभा चुनाव 1962
1962 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने महिला उम्मीदवार को मैदान में उतारते हुए मदन कौर को अपना प्रत्याशी बनाया, जबकि सामने निर्दलीय के तौर पर अमर सिंह ने ताल ठोकी. इस चुनाव के नतीजे आए तो अमर सिंह के खाते में 15,673 वोट पड़े तो वहीं मदन कौर को 13197 वोट मिले. इस चुनाव में अमर सिंह की जीत हुई और वह बालोतरा से विधायक चुने गए.
विधानसभा चुनाव 1967
विधानसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस ने मदन कौर पर ही विश्वास जताते हुए उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया, जबकि सामने बीजेएस पार्टी से सीएल सबीहा ने चुनाव लड़ा. हालांकि सीएल सबीहा को इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा और कांग्रेस की मदन कौर की जीत हुई.
विधानसभा चुनाव 1972-1977
इस चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस की ओर से मदन कौर चुनावी मैदान में थी तो वहीं उनके सबसे करीबी प्रतिद्वंदी के तौर पर निर्दलीय उम्मीदवार तेज सिंह थे. इस चुनाव में मदन कौर ने तेज सिंह को 2984 वोटों से शिकस्त दी और जीत हासिल की. इसके अगले विधानसभा चुनाव 1977 में एक बार फिर मदन कौर 27042 वोटों से विधायक चुनी गई.
विधानसभा चुनाव 1980
1980 में इंदिरा गांधी को लेकर कांग्रेस दो धड़ो में बट चुकी थी और चुनाव में मुकाबला कांग्रेस बनाम कांग्रेस था. कांग्रेस आई की ओर से अमराराम चौधरी उम्मीदवार चुने गए तो वहीं कांग्रेस यू की तरफ से मदन कौर ने ताल ठोकी. इस चुनाव में 31,677 वोट हासिल करके अमराराम की जीत हुई.
विधानसभा चुनाव 1985
इस चुनाव में भाजपा ने चुनावी ताल ठोकी और चंपालाल बांठिया को चुनावी मैदान में उतारा जबकि कांग्रेस ने अमराराम चौधरी को अपना उम्मीदवार बनाया. इस चुनाव में चंपालाल बांठिया और अमराराम के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिला. जहां चंपालाल के पक्ष में 34,544 वोट पड़े तो वहीं अमराराम के पक्ष में 31,885 वोट डले. इस चुनाव में भाजपा उम्मीदवार चंपालाल की जीत हुई.
विधानसभा चुनाव 1990
इस चुनाव में एक बार फिर भाजपा के चंपालाल और कांग्रेस की ओर से अमराराम के बीच सियासी घमासान हुआ, हालांकि चुनावी नतीजे आए तो फिर से बालोतरा की जनता ने चंपालाल बांठिया को अपना प्रतिनिधि चुना.
विधानसभा चुनाव 1993
विधानसभा चुनाव में लगातार 10 सालों से विधायक चंपालाल बांठिया को भाजपा ने अपना उम्मीदवार बनाया तो वहीं कांग्रेस ने अपने मजबूत खिलाड़ी अमराराम पर ही विश्वास जताया. इस चुनाव में अमराराम के पक्ष में 46,003 वोट पड़े तो वहीं चंपालाल के पक्ष में 33,759 वोट पड़े. अमराराम इस बार विधायक बने जबकि 10 साल की विधायकी के बाद चंपालाल को हार का सामना करना पड़ा.
विधानसभा चुनाव 1988 और 2003
1998 के विधानसभा चुनाव आते-आते बड़ा फेरबदल हो चुका था. अमराराम अपना पाला बदल चुके थे, इस बार अमराराम कांग्रेस नहीं बल्कि भाजपा के उम्मीदवार बने. इस चुनाव में कांग्रेस को एक बार फिर अपनी पुरानी सिपाही यानी मदन कौर याद आई. कांग्रेस ने मदन कौर को अपना प्रत्याशी बनाया. हालांकि चुनाव के नतीजे आए तो अमराराम को जीत हासिल हुई और मदन कौर को हार का सामना करना पड़ा, वहीं 2003 के विधानसभा चुनाव की तस्वीर भी कुछ ऐसी ही रही. बीजेपी की ओर से अमराराम चुनावी मैदान में थे और सामने मदन कौर थी इस चुनाव में अमराराम के पक्ष में 63,737 वोट पड़े तो वहीं मदन कौर के पक्ष में सिर्फ 49,407 वोट हुए. इस चुनाव में अमराराम की जीत हुई.
विधानसभा चुनाव 2008
इस चुनाव में एक बार फिर बीजेपी ने अमराराम को अपना उम्मीदवार बनाया, जो पहले निर्दलीय और कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके थे. जबकि इस चुनाव में कांग्रेस ने एक नया चेहरा ढूंढा और साथ ही एक नई जातीय समीकरण बिठाने की कोशिश की. इस बार कांग्रेस ने मदन प्रजापत को टिकट दिया. इस चुनाव के नतीजे आए तो पिछले 15 सालों से विधायक अमराराम के पक्ष में 39,577 वोट पड़े. वहीं मदन प्रजापत के पाले में 51,702 मतदाताओं ने वोट किया. मदन प्रजापत की इस चुनाव में जीत हुई और प्रदेश की सत्ता में कांग्रेस की वापसी हुई.
विधानसभा चुनाव 2013
2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने मदन प्रजापत को टिकट दिया. भाजपा का विश्वास अमराराम पर ही रहा. इस चुनाव में मोदी लहर भी हावी थी. चुनाव के नतीजे आए तो अमराराम 70,486 वोटों के साथ चुनाव जीत चुके थे. मौजूदा विधायक मदन प्रजापत के पक्ष में 54,239 वोट पड़े.
विधानसभा चुनाव 2018
इस चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर मदन प्रजापत पर ही विश्वास जताया और उन्हें पचपदरा-बालोतरा सीट से टिकट दिया, जबकि भाजपा का विश्वास पुराने सियासी खिलाड़ी अमराराम पर कायम रहा. इस चुनाव में अमराराम के पक्ष में 66,998 वोट पड़े तो वहीं मदन प्रजापत के पक्ष में 69,393 वोट डलें. मदन प्रजापत एक बार फिर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे और उन्होंने पचपदरा का प्रतिनिधित्व किया.
पचपदरा विधानसभा सीट पर सर्वाधिक मतों से अमराराम चौधरी ने जीत दर्ज की पहने साल 2013 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और 23237 मतों के अंतर से मदन प्रजापत को हराया.
2008 में कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल करने वाले मदन प्रजापत को भले ही साल 2013 में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा हो, लेकिन साल 2018 के विधानसभा चुनाव में मदन प्रजापत ने एक बार फिर विजयी हुए. इसके बाद मदन प्रजापत लगातार सुर्खियों में भी बने रहे. मदन प्रजापत ने संकल्प लिया कि जब तक बालोतरा जिला नहीं बनेगा, तब तक वह जूते-चप्पल नहीं पहनेंगे. इसी प्रण के चलते प्रजापत बिना जूते-चप्पलों के ही कई महीने चलते रहे. यहां तक कि 45 डिग्री की तेज धूप में भी मदन प्रजापत नंगे पांव ही विधानसभा भी पहुंचे. हालांकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उनका यह प्राण पूरा किया और इसी साल बालोतरा को जिला बना कर तौहफा दिया. प्रजापत का कहना है 1984 से ही बालोतरा को जिला बनाने की मांग थी. बाड़मेर जिला मुख्यालय से 200 किलोमीटर दूर होने के चलते लोगों को किसी भी तरह के काम के लिए मीलों का सफर तय करना पड़ता था, लिहाजा ऐसे में बालोतरा का जिला बनना जरूरी था. अब मदन प्रजापत 2023 के विधानसभा चुनाव में जनता के बीच इसी बात को लेकर जाएंगे कि उन्होंने जो जनता से वादा किया और प्रण लिया उसे पूरा किया.
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