Nawan Vidhansabha Seat : नागौर शुरू से ही परिवारवाद और वंशवाद का गढ़ रहा है. इसकी बानगी अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में देखने को मिलती रही है. आज के दौर में भी दोनों प्रमुख पार्टियों के नेता अपनी सियासी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. जहां हनुमान चौधरी के पुत्र महेंद्र चौधरी मौजूदा विधायक है.
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Nawan Vidhansabha Seat : राजस्थान के नवगठित डीडवाना-कुचामन जिले की नावां विधानसभा सीट का इतिहास बेहद खास रहा है. यहां की सियासत 72 साल से सिर्फ चार परिवारों के इर्द गिर घूम रही है. इस दौरान कांग्रेस के 9 और भाजपा के पांच विधायक रहे हैं.
नावां विधानसभा क्षेत्र से चुने गए पहले विधायक कृष्ण लाल शाह यहां से लगातार दो बार विधायक रहे. इसके बाद उनका यह रिकॉर्ड रामेश्वर लाल चौधरी ने तोड़ा. रामेश्वर लाल यहां से 1972, 1977 और 1980 में लगातार विधायक चुने गए. इसके बाद रामेश्वर लाल 1993 में भी जीते और विधानसभा पहुंचे. वहीं बीजेपी के हरिश्चंद्र ने भी कुल चार बार विधानसभा चुनाव जीता. 1985 और 1990 में हरिश्चंद्र लगातार दो बार चुनाव जीते. इसके बाद 1993 में उन्हें हार मिली लेकिन 1998 और 2003 में हरिश्चंद्र फिर से लगातार दो बार चुनाव जीतने में कामयाब हुए. वहीं महेंद्र चौधरी के नाम भी दो बार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड है.
नागौर शुरू से ही परिवारवाद और वंशवाद का गढ़ रहा है. इसकी बानगी अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में देखने को मिलती रही है. आज के दौर में भी दोनों प्रमुख पार्टियों के नेता अपनी सियासी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. जहां हनुमान चौधरी के पुत्र महेंद्र चौधरी मौजूदा विधायक है, तो वहीं 4 बार जीत हासिल करने वाले रामेश्वर लाल चौधरी के पुत्र विजय सिंह 2013 से 2018 तक विधायक रह चुके हैं.
2023 का विधानसभा चुनाव बेहद ही रोमांचक रहने वाला है. इसकी सबसे बड़ी वजह नागौर से अलग होकर नावां विधानसभा क्षेत्र के कुचामन डीडवाना में आने का है. हालांकि नए जिले बनने का जितना फायदा यहां के मौजूदा विधायक को हुआ है, उतना ही अब नुकसान होता भी दिखाई पड़ रहा है. जिला मुख्यालय अस्थाई तौर पर डीडवाना में बनाएं जाने को लेकर नावां की जनता में खासी नाराजगी है. नावां की जनता पिछले 38 सालों से नए जिले की मांग कर रही थी, इस मांग को पूरा करवाने में महेंद्र चौधरी कामयाब तो रहे लेकिन अब जिला मुख्यालय को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है. वही रामेश्वर लाल चौधरी की विरासत को आगे बढ़ा रहे विजय सिंह भी एक मजबूत दावेदार हैं.
नावां विधानसभा क्षेत्र में लंबे वक्त से जाट बनाम जाट का मुकाबला होता आया है, ऐसे में यहां कुमावत समाज निर्णायक भूमिका निभाता है. हालांकि इस क्षेत्र में कुमावत समाज भी बहुसंख्यक है, लेकिन उसके बावजूद जाटों का यहां खास सियासी वर्चस्व देखने को मिलता रहा है. इसके अलावा यहां ब्राह्मण और एससी-एसटी की भी खासी आबादी है. जो चुनाव में अहम भूमिका निभाती है.
1951 के पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने कृष्ण लाल शाह को टिकट दिया, जबकि रामराज्य पार्टी की ओर से सीताराम ने ताल ठोका. इस चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई और इसके साथ ही 14,297 मतों के साथ कृष्ण लाल शाह नावां के पहले विधायक चुने गए, जबकि रामराज्य पार्टी के सीताराम को 13,564 वोट मिले.
1957 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस की ओर से कृष्ण लाल शाह चुनावी ताल ठोकने उतरे तो वहीं बीजेएस पार्टी से मदन मोहन लाल ने ताल ठोकी. जबकि राम राज्य परिषद की ओर से गुलाबचंद चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में कृष्ण लाल शाह की जीत हुई. साथ ही द्विसदस्यीय प्रणाली के चलते यहां से अनुसूचित जाति के जेठमल भी विधायक चुने गए.
1962 के विधानसभा चुनाव आते-आते तक नावां में जातिवाद हावी होने लगी. कांग्रेस की ओर से गुलाम मुस्तफा ने चुनावी ताल ठोकी तो वहीं स्वतंत्र पार्टी की ओर से आयु वानसिंह उम्मीदवार बने. जबकि भारतीय जनसंघ पार्टी ने भी ताल ठोकी. वहीं निर्दलीय के तौर पर हनुमान सिंह चौधरी चुनावी मैदान में आए. यह चुनाव बेहद ही खस रहा. क्योंकि निर्दलीय के तौर पर उतरे हनुमान सिंह चौधरी की जीत हुई, जबकि कांग्रेस उम्मीदवार गुलाम मुस्तफा चुनाव हार गए. गुलाम मुस्तफा को चुनाव में 9818 वोट मिले तो वहीं हनुमान सिंह चौधरी को 16.755 मतदाताओं का साथ जीत मिली. इसके साथ ही यह पहला मौका रहा जब यहां से कांग्रेस की हार हुई.
1967 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की ओर से हनुमान सिंह चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं स्वराज पार्टी की ओर से कृष्ण लाल ने ताल ठोकी. इस चुनाव में हनुमान सिंह को हार का सामना पर करना पड़ा. 37 फीसदी वोट मिलने के बावजूद हार का सामना करना पड़ा तो वहीं कृष्ण लाल 44% वोट पाकर चुनाव जीत गए.
1972 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने रामेश्वर लाल को चुनावी मैदान में उतारा जबकि उन्हें निर्दलीय उम्मीदवार हनुमान सिंह चौधरी से चुनौती मिली. इस चुनाव में हनुमान सिंह चौधरी को 14,622 मतदाताओं का साथ मिला तो वहीं कांग्रेस के रामेश्वर लाल को 18,953 मत मिले. इसके साथ ही रामेश्वर लाल की इस चुनाव में जीत हुई. साथ ही कांग्रेस की वापसी भी हुई.
1977 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर से रामेश्वर लाल चौधरी को ही टिकट दिया तो वहीं जनता पार्टी की ओर से भंवर सिंह चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में रामेश्वर लाल को 18,398 वोट मिले तो वहीं भंवर लाल चौधरी को 17,430 वोटों के साथ शिकस्त का सामना करना पड़ा. वहीं रामेश्वर लाल लगातार दूसरी बार राजस्थान विधानसभा पहुंचे.
1980 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस भारी गुटबाजी से जूझ रही थी और इसी का नतीजा रहा कि कांग्रेस के दोनों गुटों ने चुनाव लड़ा. कांग्रेस आई की ओर से ओंकार सिंह को उम्मीदवार बनाया गया तो वहीं कांग्रेस यू के उम्मीदवार रामेश्वर लाल बने. रामेश्वर लाल के पक्ष में 16,776 वोट पड़े तो वहीं ओंकार सिंह को 14,540 वोट मिले. इसके साथ ही रामेश्वर लाल लगातार तीसरी बार नावां से विधायक चुने गए. रामेश्वर लाल का रिकॉर्ड आज तक कोई दूसरा नेता नहीं तोड़ पाया है.
1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार ओंकार सिंह बने जबकि बीजेपी ने हरिश्चंद्र को टिकट दिया. वहीं रामेश्वर लाल चौधरी ने निर्दलीय ही चुनावी ताल ठोकी. इस चुनाव में रामेश्वर लाल चौधरी को 19,604 मतदाताओं का समर्थन प्राप्त हो सका. जबकि कांग्रेस के ओंकार सिंह को 19,748 मतदाताओं ने अपना समर्थन दिया. लेकिन यह जीत के लिए नाकाफी था. क्योंकि बड़े अंतर के साथ हरीश बीजेपी के हरिश्चंद्र चुनाव जीत चुके थे. उन्हें 38% के साथ 26,241 वोट मिले और वह राजस्थान विधानसभा पहुंचे.
1990 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने एक बार फिर हरिश्चंद्र पर ही दांव खेला जबकि कांग्रेस ने रामेश्वर लाल चौधरी को टिकट दिया. यह चुनाव भी बेहद दिलचस्प रहा. हालांकि कांग्रेस की बदली हुई रणनीति कामयाब नहीं हो सकी और रामेश्वर लाल चौधरी 37,840 वोट पाकर भी चुनाव हार गए, जबकि भाजपा के हरिश्चंद्र को 40,601 मतदाताओं ने साथ दिया.
1993 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर मुकाबला हरिश्चंद्र वर्सेस रामेश्वर लाल चौधरी था, लेकिन इस बार नवां की जनता ने हरिश्चंद्र का साथ ना देकर रामेश्वर लाल को जिताया. हरिश्चंद्र को 34,581 वोट मिले तो वहीं रामेश्वर लाल 45,997 वोटों के साथ चुनाव जितने में कामयाब हुए.
1998 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने फिर से अपने मजबूत और पुराने सिपाही हरिश्चंद्र को ही टिकट दिया तो वहीं कांग्रेस ने रामेश्वर लाल चौधरी के बेटे महेंद्र सिंह चौधरी को चुनावी मैदान में कुदाया. हालांकि नावां की जनता ने ओल्ड गार्ड हरिश्चंद्र पर ही भरोसा जताया और 39,655 वोटों के साथ उनकी जीत हुई, जबकि महेंद्र सिंह चौधरी को हार का मुंह देखना पड़ा.
2003 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर मुकाबला हरिश्चंद्र वर्सेस महेंद्र चौधरी हुआ. महेंद्र चौधरी को कांग्रेस ने फिर से चुनावी मैदान में उतारा तो 38,822 मतदाताओं ने उन्हें समर्थन दिया. जबकि बीजेपी के हरिश्चंद्र को 39,655 मतों के साथ जीत हासिल हुई और वह चौथी बार नावां से विधायक चुने गए. चार बार जितने का रिकॉर्ड अब भी हरिशचंद के ही नाम है.
2008 के विधानसभा चुनाव में मुकाबला हरिश्चंद्र बनाम महेंद्र चौधरी ही रहा यानी 1998 की तस्वीर 2008 तक चलती रही, लेकिन यह चुनाव कुछ अलग होने वाला था. चुनावी नतीजे आए तो नावां की जनता ने बीजेपी के हरिश्चंद्र को 41,116 वोट दिया तो वहीं महेंद्र चौधरी को 62,963 वोट दिए और इसके साथ ही महेंद्र चौधरी लगातार दो चुनाव हारने के बाद इस चुनाव को जीतने में कामयाब हुए और इसके साथ ही प्रदेश में भी कांग्रेस की सरकार की वापसी हुई.
2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने तीन बार कांग्रेस से विधायक रहे रामेश्वर लाल चौधरी के पुत्र विजय सिंह को टिकट दिया. वहीं उन्हें एक बार फिर महेंद्र चौधरी से चुनौती मिली. हालांकि इस चुनाव में विजय सिंह चौधरी मोदी लहर पर सवार थे और उन्हें प्रचंड जीत हासिल हुई, जबकि महेंद्र चौधरी को 55,239 वोट मिले वहीं बात विजय सिंह की करें तो उन्हें 85,008 मतदाताओं ने अपना समर्थन देकर जिताया.
2018 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर महेंद्र चौधरी और विजय सिंह चौधरी आमने-सामने थे, हालांकि नावां की जनता ने परिवर्तन का मन बना लिया था और इसी का नतीजा रहा कि कांग्रेस के महेंद्र सिंह चौधरी को 72,168 वोटों के साथ जीत हासिल हुई तो वहीं विजय सिंह को 69912 वोट मिले.