पुष्कर के ग्रामीण अंचल में गन्ने की भारी पैदवार हुआ करती थी. गनाहेड़ा के किसान और मशहूर सैंड आर्टिस्ट अजय रावत बताते है कि इस क्षेत्र में पानी की उपलब्धता जरूरत से अधिक थी. जिसके चलते यहां बंपर गन्ने की खेती की जाती थी.
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Pushkar: अरावली पर्वत माला के बीच बसा पुष्कर यू तो अपने आंचल में कई सदियों का धार्मिक और एतिहासिक इतिहास संजोए है . यहां की संस्कृति,व्यजंन, धर्म,इतिहास की चर्चा देश-विदेश तक की जाती है . इन्ही एतिहासिक तथ्यों की गवाही देते भौगोलिक साक्ष्य आज भी पुष्कर में मौजूद हैं. पुष्कर के निकटवर्ती ग्राम गनाहेड़ा भी इनमें से एक है. जहां गन्नों की खेती इतनी मात्रा में होती थी कि गांव का नाम ही "गनाहेड़ा'' रख दिया गया.
किसान परिवार कई पीढ़ियों से कर रहे थे गन्ने की खेती
पुष्कर के ग्रामीण अंचल में गन्ने की भारी पैदवार हुआ करती थी. गनाहेड़ा के किसान और मशहूर सैंड आर्टिस्ट अजय रावत बताते है कि इस क्षेत्र में पानी की उपलब्धता जरूरत से अधिक थी . जिसके चलते यहां बंपर गन्ने की खेती की जाती थी. क्षेत्र के किसान खेत मे ही गन्ने का रस निकालकर गुड़ बनाते थे और बड़े शहरों में इस गुड़ का निर्यात किया जाता था. अजय बताते है कि उनका परिवार की 5 पीढ़ी गन्ने के खेती करती थी. उनके दादा का निधन भी खेतों से गन्ना ले जाते वक्त हुआ था . उनका कहना है कि 50 वर्ष पूर्व गन्ने ही पुष्कर के किसानों की वार्षिक आय का मुख्य साधन थे .
बीते 50 वर्षो में सिमट गई गन्ने की खेती
दीपावली ओर पुष्कर मेले के पूर्व उगाई जाने वाली खेती अब पानी की अन्न उपलब्धता के कारण संकुचित होती जा रही है. गनाहेड़ा के निकटवर्ती ग्राम चावंडिया के किसान प्रताप कुमावत बताते हैं कि करीब 5 दशक पहले 100 से 120 टन गन्ने की पैदवार हुआ करती थी जो अब 10 से 12 टन तक सिमट गई है. कुमावत बताते है कि पानी की कमी के चलते गन्ने की मोटाई ओर लंबाई में फर्क आया है . जिसके चलते बाजार में गन्नों का भाव कम मिलता है. साथ ही खेतों में लगाए जाने वाले मजदूरों की मजदूरी ओर ट्रांसपोर्ट का खर्चा भी बढ़ गया है. इस दिवाली 28 रुपये से 32 रुपये जोड़ी के भाव मे गन्ना बेचा जा रहा है.
दीपावली पर मां लक्ष्मी को गन्ना अर्पित करने का है बड़ा महत्व
पुष्कर के प्रसिद्ध ज्योतोषाचार्य पवन कुमार राजऋषि बताते है कि ऐसी मान्यता है कि महालक्ष्मी का पूजन गजलक्ष्मी के रूप में किया जाता है. दीपावली के दिन महालक्ष्मी एरावत हाथी पर सवार होकर आती हैं . हाथी का सबसे प्रिय भोजन गन्ना ही होता है. इसलिए दीपावली के दिन गन्ने की पूजा करने का विशेष महत्व है. मान्यता है कि महालक्ष्मी की सवारी एरावत हाथी जब प्रसन्न होंगे तो महालक्ष्मी भी प्रसन्न होती है. इस दिन मीठे गन्ने को मंदिर में चढ़ाने और पूजा करने का कोटि गुना फल मिलता है .