लठमार होली से कम नहीं है ब्यावर की कोड़ामार होली, भाभियां बरसाती हैं देवरों पर कोड़े
Advertisement

लठमार होली से कम नहीं है ब्यावर की कोड़ामार होली, भाभियां बरसाती हैं देवरों पर कोड़े

Beawar News: बरसाने की लठमार होली हो या फिर ब्यावर की कोडामार होली. हिन्दुस्तान की होली में ये दो रंग ऐसे है जो विभिन्न अंचलों के लोगों को इस ओर खींच लाते है. ब्यावर के जीनगर समाज की ओर से भाभी और देवरों के बीच खेली जाने वाली होली न सिर्फ राज्य बल्कि पूरे भारत में अपनी अलग पहचान रखती है.

 

लठमार होली से कम नहीं है ब्यावर की कोड़ामार होली, भाभियां बरसाती हैं देवरों पर कोड़े

Beawar: बरसाने की लठमार होली हो या फिर ब्यावर की कोडामार होली. हिन्दुस्तान की होली में ये दो रंग ऐसे है जो विभिन्न अंचलों के लोगों को इस ओर खींच लाते है. ब्यावर के जीनगर समाज की ओर से भाभी और देवरों के बीच खेली जाने वाली होली न सिर्फ राज्य बल्कि पूरे भारत में अपनी अलग पहचान रखती है. होली त्यौहार के अगले दिन मनाई जाने वाली इस होली में भाभियां देवरों पर कोडे बरसाती है तो देवर भाभियों पर उनके प्यार का रंग डालते है. इस नजारे को कैद करने के लिये कई विदेश सैलानी भी इस होली का हिस्सा बनते है.

लगभग 150 साल से भी अधिक पुरानी परंपरा के मुताबिक बुधवार को भी जिनगर समाज द्वारा कोडामार होली का आयोजन किया गया. भाभीयों और देवरो के बीच खेली जाने वाली इस होली से पूर्व, समाज सदस्यो द्वारा अलग अलग 11 कड़ावों में सतरंगी रंग का पानी भरा गया. इससे पूर्व चारभूजा नाथ मंदिर से विशाल शोभायात्रा का आयोजन किया गया, जिसमें ठाकुर जी को डोली में सजाकर और रंग गुलाल बरसाते हुए आयोजन स्थल पर लाया गया. उसके पश्चात पंचामृत व सतरंगी रंग से भरे 11 कड़ावों में ठाकुर जी को स्नान करवाया गया. उसके पश्चात कोडामार होली आयोजित की गई.

कोडामार होली में देवरों की ओर से जैसे ही रंग भरा पानी भाभीयों पर डाला गया तो बदले में भाभीयों ने देवरो पर प्यार भरे कोडे बरसाए. इस दौराना बडी संख्या में शहरवासी व ग्रामीणवासियों सहित समाज पदाधिकारीयों ने कोडामार होली का भरपूर आनंद लिया. करीब आधे घंटे तक भाभियों और देवरो के बीच चली कोडामार जंग में भाभियां देवरो पर भारी पड़ी. देवरो ने भी ढोलचिया भर भरकर भाभियों पर रंगों की बौछार की. होली के समापन पर ठाकुर जी को पुनः निजधाम के लिए विदाई दी गई.

देवरों पर बरसाया जाने वाला कोडा भाभीयो द्वारा होली के चार दिन पहले लहरिया रंग के सूती कपडे से तैयार किया जाता है ओर उसमें बट् देकर दो दिन तक पानी में भिगोया जाता है. देवरों द्वारा भाभीयों पर फैंका गया रंग ओर बदले में मिलने वाले प्यार के कोडे खाने के लिये समाज के सभी पुरुष इस होली में भाग लेते है. विभिन्न 11 कड़ावो में भरा गया रंग खत्म होने के बाद ही इस कोडामार होली का समापन किया जाता है और उसके पश्चात पुनः शोभायात्रा के साथ भगवान चारभूजा नाथ जी को मंदिर तक विदाई दी जाती है.

Reporter- Dilip Chouhan

Trending news