'हम रातों को उठ उठ के जिन के लिए रोते हैं'...पढ़िए हरसत जयपुरी के चुनिंदा शेर

Harsh Katare
Dec 12, 2024

दीवार है दुनिया इसे राहों से हटा दे हर रस्म-ए-मोहब्बत को मिटाने के लिए आ

ये किस ने कहा है मिरी तक़दीर बना दे आ अपने ही हाथों से मिटाने के लिए आ

हम रातों को उठ उठ के जिन के लिए रोते हैं वो ग़ैर की बांहों में आराम से सोते हैं

किस वास्ते लिक्खा है हथेली पे मिरा नाम मैं हर्फ़-ए-ग़लत हूँ तो मिटा क्यूँ नहीं देते

जब प्यार नहीं है तो भुला क्यूँ नहीं देते ख़त किस लिए रक्खे हैं जला क्यूँ नहीं देते

कहीं वो आ के मिटा दें न इंतिज़ार का लुत्फ़ कहीं क़ुबूल न हो जाए इल्तिजा मेरी

प्यार सच्चा हो तो राहें भी निकल आती हैं बिजलियां अर्श से ख़ुद रास्ता दिखलाती हैं

ख़ुदा जाने किस-किस की ये जान लेगी वो क़ातिल अदा वो सबा महकी महकी

हम अश्क़ जुदाई के गिरने ही नहीं देते बेचैन सी पलकों में मोती से पिरोते हैं

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