पति-पत्नी के बीच लंबे समय तक शारीरिक संबंध न होना मानसिक क्रूरता, इलाहाबाद हाई कोर्ट की टिप्पणी
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पति-पत्नी के बीच लंबे समय तक शारीरिक संबंध न होना मानसिक क्रूरता, इलाहाबाद हाई कोर्ट की टिप्पणी

Allahabad High Court: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पति-पत्नी के माामले पर इस बात को माना है कि अगर लंबे समय तक पति या पत्नी के बीच बिना कारण शारीरिक संबंध नहीं बना है तो ये मानसिक क्रूरता है.

पति-पत्नी के बीच लंबे समय तक शारीरिक संबंध न होना मानसिक क्रूरता, इलाहाबाद हाई कोर्ट की टिप्पणी

Allahabad High Court: इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने पति-पत्नी से जुड़े मामले में बड़ी टिप्पणी की है. जिसमें कोर्ट ने कहा कि लंबे वक्त तक अपने जीवनसाथी को शारीरिक संबंध (physical relation) न बनाने देना मानसिक क्रूरता है. कोर्ट ने कहा कि ''अगर कोई पति या पत्नी अपने साथी को बिना किसी कारण लंबे समय तक यौन संबंध बनाने की अनुमति नहीं देता है तो ये एक मानसिक क्रूरता है.

इसी के साथ मानसिक क्रूरता के आधार पर एक दंपत्ति की शादी के रिश्ते को खत्म करते हुए जस्टिस सुनीत कुमार और राजेंद्र कुमार की खंडपीठ ने ये टिप्पणी की है. पीठ ने इस बात को स्वीकार किया है कि ''बिना कारण अपने जीवन साथी के साथ फिजिकल रिलेशन बनाने की अनुमति न देना, अपने आप में मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है.''

वैवाहित संबध पर क्या बोली कोर्ट?
फैसला सुनाते हुए खंडपीठ ने कहा कि शादी के बाद लंबे समय से पति और पत्नी अलग रह रहे थे. पत्नी के लिए वैवाहिक बंधन को कोई सम्मान नहीं था. उसने अपने दायित्वों को निर्वहन करने से इनकार कर दिया. इसलिए ऐसी कोई वजह नहीं है, जिससे यह माना जाए कि एक पति या पत्नी को पत्नी के साथ जीवन फिर से शुरू करने पर मजबूर किया जा सकता है. इससे साबित होता है कि ये शादी टूट चुकी है.

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जानिए पूरा मामला?
दरअसल कोर्ट एक फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ पति की तरफ से दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी. जिससे हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत उसकी तलाक की याचिका को खारिज कर दिया था. याचिका में उसने आरोप लगाया कि शादी के बाद उसकी पत्नी का उसके प्रति व्यवहार काफी बदल गया और उसने उसके साथ रहने से इनकार कर दिया. पति के अनुसार यद्यपि वे कुछ समय तक एक ही छत के नीचे रहते थे, लेकिन पत्नी स्वेच्छा से कुछ समय बाद अपने माता-पिता के घर में अलग रहने लगी.

1994 में हुआ था तलाक
शादी के 6 माह बाद जब पति उसे लेने ससुराल गया और पत्नी को मानने की कोशिश की तो उसने साथ चलने से साफ इंकार कर दिया. फिर  जुलाई 1994 में गांव में ही आयोजित एक पंचायत के माध्यम से पति की तरफ से पत्नी को 22 हजार का स्थायी गुजारा भत्ता देने के बाद, दंपति का आपसी तलाक हो गया. पत्नी के दूसरी शादी करने के बाद पति ने मानसिक क्रूरता और लंबे समय तक परेशान रहने के आधार पर फैमिली कोर्ट से तलाक की डिक्री मांगी. 

फैमिली कोर्ट ने मामले को एकतरफा आगे बढ़ाया और पति की याचिका को खारिज कर दिया, यह देखते हुए कि तलाक देने के लिए क्रूरता का कोई आधार नहीं था.  अब, तमाम फैक्ट को देखने के बाद हाई कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि फैमिली कोर्ट ने पति के मामले को खारिज करते हुए हाइपर-टेक्निकल अप्रोच अपनाई. पूरा मामला सुनने के बाद फैमिली कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया, औफ अपीलकर्ता को तलाक की डिक्री दे दी. 

वहीं, अब फैक्ट्स को देखने के बाद हाई कोर्ट ने टिप्पणी की कि फैमिली कोर्ट ने पति के मामले को खारिज करते हुए हाइपर-टेक्निकल अप्रोच अपनाई थी. हाई कोर्ट ने पूरा मामला सुनने के बाद फैमिली कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया और अपीलकर्ता को तलाक की डिक्री दे दी.

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