नींद नहीं आती या अगर ज्यादा सोते हैं आप तो सावधान! खो सकते हैं आंखों की रोशनी
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नींद नहीं आती या अगर ज्यादा सोते हैं आप तो सावधान! खो सकते हैं आंखों की रोशनी

Irregular Sleeping Pattern: स्वस्थ नींद पैटर्न वाले लोगों की तुलना में, खर्राटे लेने और दिन में सोने वालों से ग्लूकोमा का खतरा 11% बढ़ जाता है. वहीं अनिद्रा और बहुत अधिक या बहुत कम सोने से यह खतरा 13% बढ़ जाता है.

नींद नहीं आती या अगर ज्यादा सोते हैं आप तो सावधान! खो सकते हैं आंखों की रोशनी

Irregular Sleeping Pattern Cause Glaucoma : यह तो लगभग सभी जानते हैं कि समय पर पर्याप्त नींद न लेने का हमारी मनोदशा, चीजों को सीखने और याद रखने की क्षमता पर विपरीत असर पड़ता है. साथ ही गंभीर दुर्घटनाओं और चोट का खतरा बढ़ जाता है, लेकिन अब एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि एक लंबे समय तक बहुत कम या बहुत अधिक सोना, खर्राटे लेना, दिन में नींद आना और अनिद्रा जैसी स्थितियां आपके अंधेपन का कारण भी बन सकती है. इस तरह के हालत ग्लूकोमा (मोतियाबिंद) के खतरे को बढ़ा सकते हैं. 

खराब नींद के दीर्घकालिक परिणामों का असर जानने के लिए बीजिंग (चीन) के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में शिक्षाविदों ने यूनाइटेड किंगडम में 4 लाख से ज्यादा  लोगों को अपने अध्ययन का हिस्सा बनाया. 40 से 69 आयु वर्ग के लोगों को 2006 से लेकर 2010 तक शोध में शामिल किया गया और 2021 तक उनकी नींद की आदतों के बारे में जानकारी एकत्र की गई.

बीएमजे ओपन जर्नल में प्रकाशित शोध के नतीजे बताते हैं कि जिन लोगों की नींद खराब होती है उनमें ग्लूकोमा होने का खतरा बढ़ जाता है. यदि समय पर इसका निदान और उपचार नहीं किया गया तो यह आखों की रौशनी जाने का कारण बन जाती है.

आंखों में प्रकाश संवेदनशील कोशिकाएं नष्ट 

अध्ययन के मुताबिक 2040 तक दुनियाभर में 112 मिलियन लोग ग्लूकोमा से पीड़ित हो सकते हैं. शोधकर्ताओं ने बताया कि खर्राटे लेने वालों, दिन में सोने वालों, अनिद्रा और छोटी या लंबी अवधि तक सोने वाले लोग ग्लूकोमा के जोखिम से जुड़े पाए गए. इस दौरान नींद के लिए हैल्दी और अनहैल्दी पैटर्न अपनाने वाले लोगों में अलग-अलग असर देखे गए. दोनों की आंखों की जांच करने पर शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सोने की खराब आदतों वाले लोगों की आंखों में प्रकाश संवेदनशील कोशिकाओं को काफी नुकसान पहुंचा. 

सामान्य नींद की अवधि सात से नौ घंटे के बीच परिभाषित की गई है. लगभग 11 वर्षों की औसत अवधि के दौरान ग्लूकोमा के 8,690 मामलों की पहचान की गई. शोधकर्ताओं ने पाया कि स्वस्थ नींद पैटर्न वाले लोगों की तुलना में, खर्राटे लेने और दिन में सोने से ग्लूकोमा का खतरा 11% बढ़ जाता है. वहीं अनिद्रा और बहुत अधिक या बहुत कम सोने से यह खतरा 13% बढ़ जाता है. 

आंख पर पड़ने वाला दबाव बड़ी वजह 

 

शोधकर्ताओं ने नींद के पैटर्न और ग्लूकोमा के बीच संबंध को स्पष्ट करते हुए बताया कि आंख पर पड़ने वाला आंतरिक दबाव ग्लूकोमा के विकास का एक महत्वपूर्ण कारक है. अवसाद और चिंता से ग्रस्त लोगों ( जो अक्सर अनिद्रा के शिकार लोगों में पाया जाता है.) की आंखों के आंतरिक दबाव को भी बढ़ा सकती है,