World Plastic Surgery Day : दुनिया की पहली सर्जरी हुई थी भारत में, साबित करने के लिए AIIMS करेगा सुश्रुत पर रिसर्च
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World Plastic Surgery Day : दुनिया की पहली सर्जरी हुई थी भारत में, साबित करने के लिए AIIMS करेगा सुश्रुत पर रिसर्च

World Plastic Surgery Day : महर्षि सुश्रुत को फादर ऑफ सर्जरी के नाम से जाना जाता है, लेकिन केरल की किताबों में उनकी जगह किसी और का जिक्र है. ऐसे में इस सच्चाई से पर्दा हटाने के लिए एम्स अब महर्षि सुश्रुत पर रिसर्च करना चाहता है. 

World Plastic Surgery Day : दुनिया की पहली सर्जरी हुई थी भारत में, साबित करने के लिए AIIMS करेगा सुश्रुत पर रिसर्च

पूजा मक्कड़/ नई दिल्ली : World Plastic Surgery Day : चेहरे को सुंदर बनाने की कॉस्मेटिक सर्जरी हो, सिजेरियन से बच्चे का जन्म हो या मुश्किल से मुश्किल हालात में किसी के कट चुके अंग को वापस जोड़ना हो. आपको लगता होगा ये सब मेडिकल साइंस ने तरक्की से संभव हुआ, लेकिन आज हम आपको बताना चाहते हैं कि भारत में एक ऐसी किताब मौजूद थी, जिसमें एक महर्षि ने मुश्किल से मुश्किल ऑपरेशन को करने के तमाम तरीके बता दिए थे और उसी किताब को आधार बनाकर पूरे विश्व ने सर्जरी सीखी. 

इस किताब का नाम है सुश्रुत संहिता और महर्षि सुश्रुत हैं दुनिया के पहले सर्जन. अब इसी ऐतिहासिक तथ्य को रिसर्च के साथ साबित किया जाएगा. सुश्रुत को फादर ऑफ सर्जरी के नाम से जाना जाता है. देश के सबसे बड़े अस्पताल एम्स के डॉक्टरों ने Department of science and Technology को ये प्रस्ताव भेजा है कि उन्हें महर्षि सुश्रुत के काम और आज की मेडिकल सर्जरी की दुनिया के संबंध को साबित करने वाली रिसर्च के लिए मंजूरी दी जाए.

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ऐसा करने की सबसे बड़ी वजह है इतिहास को दुरुस्त करना. ग्रीस और अमेरिका जैसे देश अभी प्लास्टिक सर्जरी से लेकर मेडिकल साइंस की लगभग हर नई टेक्नोल़ॉजी को अपना बताकर दूसरों को सिखा रहे हैं, लेकिन भारत अब 600 ईसा पूर्व के एन्साइक्लोपीडिया और मेडिकल साइंस की सबसे मुश्किल तकनीकी के जनक से दुनिया को मिलवाना चाहता है. एम्स में डिपार्टमेंट ऑफ बर्न एंड प्लास्टिक सर्जरी के हेड डॉ मनीष सिंघल ने यह जानकारी दी. 

काशी में कटी नाक को जोड़ा था महर्षि सुश्रुत ने 

इतिहास में ये दर्ज है कि दुनिया की पहली प्लास्टिक सर्जरी काशी में 3 हजार वर्ष पहले हुई थी. जब महर्षि सुश्रुत के पास एक व्यक्ति कटी हुई नाक के साथ पहुंचा था. पहले सुश्रुत ने उस व्यक्ति को नशीला पदार्थ पिला दिया ताकि उसे दर्द न हो, उसके माथे से त्वचा का हिस्सा लिया। पत्ते के जरिए उसकी नाक का आकार समझा और टांके लगाकर नाक बना दी और जोड़ दी.

सुश्रुत संहिता में ये भी दर्ज है कि वह 125 अलग-अलग सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट्स का इस्तेमाल करते थे. चाकू, सुई, चिमटे जैसे अलग अलग इंस्ट्रूमेंटस को वो उबालकर यूज करते थे. सुश्रुत संहिता के 184 चैप्टर हैं, जिसमें 1120 बीमारियों के बारे में बताया गया है. 700 मेडिसिन वाले पौधों, 12 तरह के फ्रैक्चर और 7 डिस्लोकेशन यानी हड्डी का खिसकना समझाया गया है.

300 तरह की सर्जरी आती थी

हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ कौशल कांत मिश्रा का कहना है कि महर्षि सुश्रुत को 300 तरह की सर्जरी आती थी, जिसमें नाक और कान की सर्जरी मुख्य थी की सर्जरी में उन्हे महारत थी। इसके अलावा सर्जरी से बच्चे का जन्म, एनेस्थिसिया यानी बेहोश करने की सही डोज का ज्ञान भी उन्हें खूब था. अपने शिष्यों को सिखाने के लिए महर्षि सुश्रुत फल, सब्जियों और मोम के पुतलों का प्रयोग करते थे. बाद में शवों पर उन्होंने खुद सर्जरी सीखी और फिर अपने स्टूडेंट्स को भी सिखाई.

केरल में दी जा रही गलत जानकारी 

आप सोच रहे होंगे कि इस रिसर्च की जरूरत क्यों पड़ी, इसका जवाब अपने ही देश में दी जा रही गलत शिक्षा. केरल स्टेट बोर्ड क्लास 9th social science की किताब में फादर ऑफ सर्जरी के तौर पर कुछ और ही पढ़ाया जा रहा है. इस किताब में एक अरब मुस्लिम अबू अल कासिम अल ज़हरावी के बारे में पढ़ाया  जा रहा है, जो मदीना में पैदा हुए थे. सुश्रुत का जन्म 800  ईसा पूर्व (BC) हुआ था, जबकि अल ज़हरावी के जन्म का समय 936 AD का मदीना में बताया जाता है.

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पिछले वर्ष जनवरी में इस बात पर काफी बवाल भी हुआ था, लेकिन आज भी यही पढ़ाया जा रहा है. हालांकि मॉर्डन मेडिकल साइंस के जानकार मानते हैं कि 400 साल पहले ही सर्जरी के बारे में दुनिया को पता लगा था. लेकिन सुश्रुत ने कई हजार साल पहले इस काम को करके दिखा दिया था. ऑस्‍ट्रेलिया के मेलबर्न में रॉयल ऑस्‍ट्रेलिया कॉलेज ऑफ सर्जंस में महर्षि सुश्रुत की मूर्ति लगी हुई है. महर्षि सुश्रुत की एक पेंटिंग एम्स के हाल ही में बने प्लास्टिक सर्जरी डिपार्टमेंट में भी बनी है. 15 जुलाई को वर्ल्ड प्लास्टिक सर्जरी डे मनाया जाता है और इस मौके पर दुनिया को ये बताना बहुत जरूरी है कि दुनिया को प्लास्टिक सर्जरी सिखाने की शुरुआत भारत ने 3 हजार साल पहले कर दी थी.

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