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Ambala News: अंबाला के मुलाना में मां बाला सुंदरी का मंदिर है. जिसकी बहुत मान्यता है मंदिर में नवरात्रि के दिनों में काफी भीड़ देखने को मिलती है. यहां श्रद्धालु दूर-दूर से माथा टेकने आते हैं. मां बाला सुंदरी के मंदिर की स्थापना सन् 1426 में की गई थी.
हमारे भारत में कई तरह की मान्यताएं हैं. ऐसे ही एक मान्यता अंबाला के मुलाना स्थित बाला सुंदरी मंदिर से जुड़ी भी है. वहीं नवरात्रों में बाला सुंदरी मंदिर में भव्य सजावट की गई है. अलग-अलग जगह से लोग मां का आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं और यहां पर मन्नतें पूरी होने पर परिवार समेत आते हैं.
माता बाला सुंदरी मंदिर की कहानी
राजस्थानी भाटों के अनुसार सन् 1426 में माता बाला सुंदरी मंदिर मुलाना में पिंडी स्थापित की गई थी. माता ने सन् 1425 में मुलाना के सोराज सिंह को सपने में कन्या रूप में दर्शन देकर मंदिर बनाने को कहा था. सोराज सिंह ने 1426 में बाला सुंदरी की पिंडी को मंदिर बनाकर स्थापित किया था. मंदिर के पुजारी ने बताया कि मंदिर की स्थापना राजा सोराज ने की थी. जो जयपुर राजघराने से संबंध रखते थे. उनकी 7 पुश्तों द्वारा 100 साल के लगभग सेवा की. किसी कारणवश सेवा रूक गई थी और मंदिर विलुप्त हो गया था. जो लोग त्रिलोकपुर माथा टेकने जाते थे, वह यहां पर रूकते थे और फिर त्रिलोकपुर जाते थे.
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एक बार संगत पंजाब से आई और बिना रूके त्रिलोकपुर चली गई. वह सारी रात चलते रहे, लेकिन मुलाना की सीमाएं क्रोस नहीं कर पाए. फिर किसी बुजुर्ग ने कहा कि जब-तक आप मुलाना में माता बाला सुंदरी मंदिर में माथा टेककर नहीं आओगे तब-तक आपको त्रिलोकपुर के दर्शन नहीं होंगे. 1820 के आस-पास प्लेग नाम की महामारी फैली. गांव के उस समय मुखिया को माता सपने में दिखी और बोली की त्रिलोकपुर माथा टेकने लोग जाते हैं. मुझे इसी गांव में विराजमान करो. मेरे नाम से 5 ईंटे निकालो.
मंदिर कमेटी सचिव ने बताया कि आज 9 अप्रैल से माता के नवरात्रे शुरू हो गए हैं. भक्तों को तांता लगा हुआ है. भक्त माता की ज्योत लेकर जाते हैं और अपने घर पर प्रज्वलित करते हैं. माता बाला सुंदरी मंदिर सोसायटी द्वारा भी कई जनहित कार्य किए गए हैं. जैसे महिलाओं के लिए निशुल्क सिलाई सेंटर, अन्नपुर्णा रसोई में 10 रुपये में भरपेट भोजन दिया जाता है. पिछले 3 साल के लगभग आंखों का निशुल्क इलाज किया जाता है. ओमोपेथिक डिस्पेंसरी में भी 20 रुपये में दवाई दी जाती है. भंडारे का 9 दिन आयोजन भी किया जाता है.
मंदिर में नवरात्रों के मौके काफी भीड़ देखने को मिलती है. श्रद्धालु दूर-दूर से यहां आते हैं. श्रद्धालु का कहना है कि हम 6 महीने में यहां मंडली के साथ दरबार में आते हैं. मैं पैदल यात्रा करती हूं और मेरी संगत भी पूरा साथ देती है.
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