Haryana News: हरियाणा कांग्रेस में लंबे समय से हुड्डा और कुमारी सैलजा गुट में खींचतान चल रही है. इस बीच चुनाव से ठीक पहले बीजेपी के दो कद्दावर ने सीएम पद पर दावेदारी ठोक दी है. चुनाव परिणाम के बाद दिग्गजों की नाराजगी आलाकमान को फैसला बदलने पर मजबूर कर सकती है.
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दरअसल लोकसभा चुनाव से पहले 12 मार्च को हरियाणा से सीएम मनोहर लाल ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद बाकी बचे कार्यकाल के लिए प्रदेश की कमान उनके करीबी और संघ से जुड़े रहे नायब सिंह सैनी को सौंपी गई. चुनाव पूर्व बीजेपी में सीएम पद की दावेदारी देखकर ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि अगर चुनाव जीतती है तो आलाकमान सीएम फेस को बदल भी सकती है.
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बीजेपी में ऐसा बहुत कम या फिर न के बराबर ही दिखाई दिया है, जब पार्टी नेता स्वयं को मुख्यमंत्री का दावेदार घोषित करते हों, लेकिन इस बार हरियाणा में मामला उल्टा है. हाल ही में प्रदेश के पूर्व गृहमंत्री और अंबाला कैंट से छह बार के विधायक अनिल विज ने वरिष्ठता के आधार पर सीएम पद की दावेदारी पेश कर दी. 71 वर्षीय अनिल विज कई मंचों से प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने की अपनी इच्छा जाहिर कर चुके हैं. हाल ही में उन्होंने कहा कि यदि हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा जीतती है तो वह पार्टी में सीएम पद के लिए दावेदारी पेश करेंगे. उनके पास काम का है. उनके समर्थक अकसर सवाल करते हैं कि वरिष्ठ होने के बाद भी वह सीएम क्यों नहीं बनाए गए. उन्होंने कहा की वह हाईकमान से ये मांग करेंगे. अनिल विज ने ये भी कहा है कि अगर वह मुख्यमंत्री बने तो हरियाणा का चेहरा बदल देंगे.
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प्रदेश में जेजेपी से गठबंधन टूटने के बाद जब मनोहर लाल ने सीएम पद खाली किया तो अपने करीबी नायब सैनी का नाम आगे बढ़ा दिया. सैनी के सीएम बनने के बाद अनिल विज नाराज हो गए. इसका अंदाजा ऐसे लगाया जा सकता है कि सीएम बनने के बाद सीएम सैनी जब अंबाला गए तो अनिल विज ने उनसे मुलाकात तक नहीं की. इस बीच राजनीतिक गलियारों में उनके पार्टी छोड़ने की भी खबर उड़ी, लेकिन मनोहर लाल के साथ कई राउंड की बैठक के बाद अनिल विज की नाराजगी दूर जाती दिखी. विज हमेशा से कहते रहे हैं कि वह बीजेपी के बड़े भक्त हैं. ऐसे में जब चुनाव नजदीक है तो विज ने अपनी अपनी भक्ति का फल पाने की इच्छा जाहिर कर दी.
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राव इंद्रजीत सिंह भी अपने कद से करा चुके हैं रूबरू
अनिल विज के बाद लगे हाथ गुरुग्राम के सांसद राव इंद्रजीत सिंह ने भी हरियाणा के सीएम बनने की इच्छा जाहिर कर दी. उनका कहना है कि उन्होंने निजी तौर पर कभी सीएम पद की डिमांड नहीं की, लेकिन उनके समर्थकों की इच्छा और उनके राजनीतिक प्रदर्शन और उपलब्धियों को देखते हुए लगता है कि वह सीएम पद के लिए सही उम्मीदवार हैं. उन्होंने तो इतना तक कह दिया कि वह तो 2014 से ही सीएम पद के दावेदार हैं. बता दें राव इंद्रजीत के संसदीय क्षेत्र में विधानसभा की चार सीट-पटौदी, सोहना, बादशाहपुर और गुरुग्राम आती है. 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने बादशाहपुर के अलावा शेष सभी सीटें जीती थीं, जबकि 2014 में बीजेपी के खाते में चारों सीट गई थीं.
पहले वाला प्रदर्शन दोहराना भी चुनौती
प्रदेश में इस बार बीजेपी के सामने कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी भी है. लोकसभा में पांच सीट गंवाने के बाद विधानसभा चुनाव में अच्छे प्रदर्शन का दबाव साफ नजर आ रहा है. पार्टी के लिए पहले जैसा प्रदर्शन करना आसान नहीं है. ऐसे में अगर बीजेपी को सरकार बनाने लायक सीटें मिल भी जाती है तो सीएम बनने के लिए पार्टी के दो कद्दावर नेता हाईकमान के सामने आ सकते हैं.
Congress में भी दो गुट और दोनों मजबूत
वहीं कांग्रेस के लिए भी सीएम फेस बनाना आसान नहीं होगा. अगर पार्टी पूर्व की तरह भूपेंद्र हुड्डा को इस लायक समझती है तो कुमारी सैलजा गुट नाराज हो सकता हैं. हाल ही में गुरुग्राम में कुमारी सैलजा के पोस्टर लगाकर किसी दलित को सीएम बनाने की मांग की गई थी. हालांकि बुधवार को पार्टी का घोषणा पत्र जारी करने के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि सीएम फेस वह होगा, जिसे विधायक चुनेंगे. अब सवाल उठता है कि दोनों ही पार्टी एक फूल दो माली (सीएम पद पर दावेदार दो) जैसी स्थिति से कैसे निपटेंगी.
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