उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना ने पिछले 6 वर्षों के दौरान निजी बिजली कंपनियों को दिए गए 13,549 करोड़ रुपये का ऑडिट नहीं कराये जाने पर केजरीवाल सरकार की तीखी आलोचना की है.
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New Delhi News: दिल्ली के उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना ने निजी बिजली कंपनियों को दी गई 13,549 करोड़ रुपये की सब्सिडी के ऑडिट कराने से बचने के लिए आप सरकार की जमकर आलोचना की है. यह सब्सिडी 2016 से 2022 के दौरान दी गई. एलजी सक्सेना ने गरीबों को दी जाने वाली बिजली सब्सिडी पर अपनी सहमति और प्रतिबद्धता को दोहराते हुए स्पष्ट किया कि इस तरह की सब्सिडी में दिया गया पैसा जनता से टैक्स/रेवेन्यू के रूप में प्राप्त धन है. इसलिए यह सुनिश्चित करना सरकार की प्रमुख जिम्मेदारी है कि यह किसी निहित स्वार्थ वाले या धन चोरी करने वाले के हाथों में न जाए, बल्कि इसका लाभ लक्षित आबादी तक पहुंचे.
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उपराज्यपाल ने केजरीवाल सरकार के कैग के पैनलबद्ध ऑडिटर्स से बिजली कंपनियों के ऑडिट के प्रस्ताव को अनुमति देते हुए स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में ऑडिट कैग द्वारा ही किया जाना चाहिए न कि कैग द्वारा पैनलबद्ध ऑडिटर्स से. उन्होंने कहा कि कैग द्वारा पैनलबद्ध ऑडिटर्स को कैग ऑडिट के विकल्प के रूप में नहीं माना जा सकता.
मनीष सिसोदिया ने खारिज किया था प्रस्ताव
आप सरकार ने बिजली कंपनियों के खातों के ऑडिट कराने में काफी लापरवाही बरती है. सरकार ने 2015 में डीईआरसी से बिजली कंपनियों के खाते का ऑडिट कराने के लिए कह तो दिया, लेकिन इस मुद्दे पर काफी उदासीन रही, जबकि वह विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 108 को लागू कर सकती थी. इस अधिनियम के तहत डीईआरसी को ऑडिट करने के लिए बाध्यकारी निर्देश दे सकती थी. पर सच्चाई यह है कि डीईआरसी ने किसी तरह का ऑडिट नहीं किया. इसके बाद मुख्य सचिव ने इस अधिनियम के बाध्यकारी धारा के तहत डीईआरसी को ऑडिट करने के लिए दिसंबर 2022 में फाइल भेजी, लेकिन 27 जनवरी 2023 को तत्कालीन उप मुख्यमंत्री और बिजली विभाग के मंत्री मनीष सिसोदिया ने इसे भी खारिज कर दिया.
एलजी ने भेजी सीएम को फाइल
उपराज्यपाल ने मुख्यमंत्री को भेजे अपनी फाइल में कहा है कि आश्चर्य की बात यह है कि दिसंबर 2022 में काफी देर से विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 108 के तहत विभाग ने डीईआरसी को ऑडिट करने के लिए कहा है, लेकिन इससे भी बड़ी आश्चर्य की बात यह रही कि 27 जनवरी 2023 को तत्कालीन उपमुख्यमंत्री ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया.
पिछले 6 साल से नहीं हुआ ऑडिट
सार्वजनिक धन का ऑडिट न कराने पर अपनी गंभीर आपत्ति व्यक्त करते हुए उपराज्यपाल ने कहा कि सबसे पहले मुझे इस बात पर घोर आपत्ति है कि जनता के 13,549 करोड़ रुपये का पिछले 6 वर्षों से ऑडिट नहीं किया गया है. इतने अधिक सार्वजनिक धन को बिना किसी ठोस जांच के कि गरीबों के लिए तय की गई यह सब्सिडी लक्षित आबादी तक पहुंच रही है या नहीं, निजी बिजली वितरण कंपनियों को दे दिया गया. मुझे तब और ज्यादा हैरानी हुई जब सरकार को विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 108 के तहत डीईआरसी से विशेष ऑडिट करवाने के लिए अपनी शक्ति का इस्तेमाल करने में 6 साल का लंबा समय लग गया. इन 6 वर्षों में कैबिनेट ने बहुत लापरवाही से काम किया, क्योंकि 6 साल से दिल्ली इलेक्ट्रीसिटी रेग्युलेटरी कमिशन (DERC) से ऑडिट कराने के लिए कहा जाता रहा, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.
सुप्रीम कोर्ट में लंबित है मामला
एलजी ने इस बात पर भी आपत्ति दर्ज की कि सरकार की ढुलमुल रवैये के कारण बिजली कंपनियों के खाते का कैग से ऑडिट कराने संबंधी मामला पिछले 7 साल से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. उपराज्यपाल ने कहा कि मुख्यमंत्री ने जो फाइल उपलब्ध कराई है, उसमें किसी भी तरह से सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को जल्दी सुलझाने में सरकार की मंशा नहीं दिख रही है. दरअसल, 2015 में दिल्ली हाईकोर्ट ने बिजली कंपनियों के कैग द्वारा ऑडिट कराने के दिल्ली सरकार के आदेश को रद्द कर दिया था. दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ 2016 में अपील दायर की थी, लेकिन तब से यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.