इस बार करवा चौथ दो दिन की पड़ रही हैं. इसको लेकर लोगों में कंफ्यूजन है कि 13 या 14 अक्टूबर में से किस दिन मनाएं. इसलिए हमने नीचे खबर में शुभ मुहूर्त के साथ सारी जानकारी साझा की है.
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Karwa Chauth Vrat 2022: हमारे देश में करवा चौथ (Karwa Chauth) का बहुत बड़ा महत्व है. इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए वर्त रखती हैं. वहीं इस बार दो करवा चौथ पड़ रही हैं. ऐसे में लोग ये जानना चाहते हैं कि किस दिन करवा चौथ मनाना ज्यादा शुभ होगा. बता दें कि हिंदू पंचाग के अनुसार करवा चौथ व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है.
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इस साल करवाचौथ की तारीख को लेकर कंफ्यूजन की स्थिति पैदा हो गई है. बता दें कि इस बार करवा चौथ दो दिन तक पड़ रही है. इसलिए ऐसा हो रहा है. अब लोगों में कंफ्यूजन है कि करवा चौथ 13 का मनाएं या 14 अक्टूबर का मनाएं. वहीं ज्यादातर जानकारों के अनुसार 13 अक्टूबर को ही करवा चौथ मनाने की बात कही जा रही है. इसी तारीख को शुभ माना है. ऐसा इसलिए क्योंकि सनातन धर्म में कोई भी व्रत या पर्व उदया तिथि के आधार पर मनाया जाता है.
13 अक्टूबर को करवा चौथ
जानकारों के अनुसार इस बार 13 अक्टूबर 2022 को ही करवा चौथ का व्रत रखा जाएगा. हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 13 अक्टूबर को सुबह 1 बजकर 59 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 14 अक्टूबर यानी शुक्रवार को सुबह 3 बजकर 8 मिनट तक रहेगी. वहीं ज्योतिषाचार्यों के अनुसार भी 13 अक्टूबर को पूजा का अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 21 मिनट से 12 बजकर 7 मिनट तक और अमृत काल मुहूर्त शाम 4 बजकर 8 मिनट से शाम 5 बजकर 50 मिनट तक रहेगा.
वहीं पूजा के लिए शाम 6 बजकर 1 मिनट से शाम 7 बजकर 15 मिनट के बीच के समय को भी शुभ बताया जा रहा है. नक्षत्रों के अनुसार 13 अक्टूबर को करवा चौथ के दिन रात 8 बजकर 19 मिनट पर चंद्रोदय होगा. इन सब बातों को देखते हुए करवा चौथ का व्रत 13 अक्टूबर को ही रखना शुभ होगा.
पूजा विधि
करवा चौथ के दिन महिलाएं सबसे पहले सुबह स्नान करने के बाद व्रत रखने का संकल्प लें, फिर चौथ माता की पूजा का करें. इसके बाद अखंड सौभाग्य के लिए निर्जला व्रत रखें. शुभ मुहूर्त में चौथ माता या मां गौरी और भगवान गणेश की पूजा करें. पूजा के दौरान गंगाजल, नैवेद्य, धूप-दीप, अक्षत्, रोली, फूल, पंचामृत आदि अर्पित करें. इसके बाद मां गौरी और भगवान गणेश को श्रद्धापूर्वक फल और रीत के अनुसार भोग लगाएं. इसके बाद चंद्रमा के उदय होने पर अर्घ्य देते हैं और फिर बाद पति के हाथों जल ग्रहण करके व्रत खोलें.