हरियाणा का रोहनात गांव की कहानी, जहां आजादी के 71 साल तक नहीं फहराया गया तिरंगा झंडा
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हरियाणा का रोहनात गांव की कहानी, जहां आजादी के 71 साल तक नहीं फहराया गया तिरंगा झंडा

हरियाणा का वो गांव, जिसने अंग्रेजी हुकूमत के आगे नहीं टेके घुटने और शहीद हो गए. आज भी है गुलाम. सालों नहीं फहराया इस गांव तिरंगा. लेकिन, इस साल हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल गांव के लोगों को गुलामी के दर्द से आजादी दिलवाने वाले थे. मगर गांव के लोगों ने इस कार्यक्रम को स्थगित करवा दिया. पढ़ें क्या है पूरी कहानी. 

हरियाणा का रोहनात गांव की कहानी, जहां आजादी के 71 साल तक नहीं फहराया गया तिरंगा झंडा

Independence Day 2022​: इस साल 15 अगस्त, 2022 को देश को आजाद हुए 75 साल पूरे होने जा रहे हैं. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि हरियाणा का एक गांव ऐसा है जो अपने आप को आज तक गुलाम मानता है और इसी वजह से इस गांव में आज तक तिरंगा नहीं फहराया जाता है. गांव के लोगों की मांग थी की आजादी के 70 साल उन्हें मूलभूल सुविधाएं नहीं मिली थी. इसी के विरोध में उन्होंने 70 सालों तक गांव में तिरंगा नहीं फहराया था. कहानी के रोहनात गांव की है. 

लेकिन, साल 2018 में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल इस गांव में तिरंगा पहुंचे थे और गांव वासियों को सभी सुविधा देने का वादा किया था. कहते हैं कि इस गांव के लोगों ने अंग्रेजी हुकूमत के आगे अपने घुटने कभी नहीं टेके और शहीद हो गए. इसके बाद भी यह गांव सालों से सरकार की उपेक्षा का शिकार बना हुआ था. क्योंकि इस गांव की पूरी जमीन अंग्रेजों ने नीलाम कर दी थी और सरकार के रिकॉड में आज भी गांव के लोगों को उनकी जमीन नहीं मिली थी. 

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अंग्रेजों ने जलियांवाला बाग जैसा नरसंहार

हरियाणा के रोहनात गांव की आबादी 4200 के करीब है और अंग्रेजों ने इस गांव में जलियांवाला बाग जैसा नरसंहार किया था. इस गांव के लोगों को 1857 के क्रांति में भाग लेने की सजा दी गई थी. गांव के लोगों के मुताबिक हांसी में अंग्रेजों की छावनी हुआ करती थी. साल 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी हिसार- हांसी भी पहुंची थी,.

उन दिनों देश को आजाद करवाने को लेकर 29 मई, 1857 को मंगल खां के विरोध का साथ देते हुए रोहनात के लोगों ने स्वामी बरण दास बैरागी, रूपा खाती व नौंदा जाट सहित हिंदू व मुस्लिम एकत्रित होकर हांसी पहुंचे. रोहनात के अलावा आस-पास के गांवों के लोगों ने भी अंग्रेजों पर हमला कर दिया, जिसमे हांसी व हिसार के दर्जन-दर्जन भर अंग्रेजी अफसर मारे गए.

इस दौरान क्रांतिकारियों वीरों ने जेल में बंद हजारों कैदियों को रिहा कर दिया और अंग्रेजी सल्तनत के खजाने भी लूट लिया. लेकिन, जब इस घटना की जानकारी अंग्रेज आला अधिकारियों को इस बात की सूचना मिली तो विरोध को रोकने के लिए एक पलाटून को जरनल कोर्ट लैंड की अगुवाई में हांसी भेजा.

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इज्जत बचाने के लिए कुंए में कूदी थी महिलाएं

इस हमले के बाद अंग्रेजों ने भी गांव पुठी मंगल क्षेत्र में तोपों से हमला करना शुरू कर दिया. गांव रोहनात के सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया. इतना ही नहीं गांव के बिरड़ दास बैरागी को तोप पर बांध कर उनके शरीर को चीथड़ों की तरह उड़ा दिया. गांव की कई महिलाओं ने उस दौरान अपनी इज्जत बचाने के लिए गांव के कुंए में कूद कर अपनी जान गवा दी.

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'लाल सड़क' जानें क्यों पड़ा ये नाम

आपको बता दें कि अंग्रेजों को गुस्सा इतने में शांत नहीं हुआ. उन्होंने विरोध करने वाले लोगों को अपने साथ ले गए, जहां पर उनके शरीर के उपर से रोड़ रोलर फेर दिया, जिससे यह सडक़ खून से लथपथ होकर लाल हो गई और वर्तमान में भी यह सडक़ लाल सडक़ के नाम से जानी जाती है और इस सड़क को रोहनात व आसपास के ग्रामीणों के बलिदान की निशानी माना जाता है. कहते हैं कि यह सड़क यहां आज भी मौजूद है.

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