HAU ने खोज निकाले धान की फसल में बौनेपन के जिम्मेदार वायरस, नुकसान से बचने के लिए दी किसानों को सलाह
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HAU ने खोज निकाले धान की फसल में बौनेपन के जिम्मेदार वायरस, नुकसान से बचने के लिए दी किसानों को सलाह

Haryana News: देश में फैले धान फसल में बौनेपन की समस्या के कारक वाले वायरस की HAU ने पहचान की है.  ये फसल 2022 में इस समस्या से त्रस्त थी. जिसको लेकर रिसर्च की जा रही है. 

HAU ने खोज निकाले धान की फसल में बौनेपन के जिम्मेदार वायरस, नुकसान से बचने के लिए दी किसानों को सलाह

हिसार: गेहूं के बाद सबसे ज्यादा खाया जाने वाला पदार्थ चावल है, लेकिन इसकी कटाई से पहले खेत लगे होने के समय इसे धान कहते हैं. मसलन, धान ही राइस मिल शेलर में जाता है और साफ सफाई के बाद वो चावल का रूप लेता है. इसकी फसल 2022 में एक खास समस्या से त्रस्त थी. दरअसल, HAU (Haryana Agriculture University) ने खास किस्म के वायरस की पहचान की है. ऐसे में अगर आप या आपके परिवार का कोई भी सदस्य खेती करता है तो ये खबर आपके लिए बेहद जानना जरूरी है.

हिसार के चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (Chaudhary Charan Singh Haryana Agriculture University) ने धान के पौधों में बौनेपन के कारणों का पता लगाया है. HAU के वीसी प्रोफेसर बीआर काम्बोज ने बताया कि यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने धान की फसल में इसका मुख्य कारण वाले वायरस की पहचान की है. खास बात ये है कि ये वायरस खपतवार से आगे फैलता है. इतना ही नहीं, लालच के लिए अगेती और पछेती धान उगाने वालों को भी इससे बचाव के सजगता की जरूरत है. 

ये दो राइस वायरल पाए गए 
वीसी प्रोफेसर बीआर कम्बोज ने बताया कि खरीफ 2022 (Kharif 2022) के दौरान हरियाणा में धान के पौधों में बौनेपन की समस्या देखी गई. इसका प्रकोप सभी किस्मों यानी बासमती, गैर-बासमती, संकर, पी.आर. समूह में पाया गया था. चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बी.आर. काम्बोज ने बताया धान के पौधों के बौनेपन के पीछे स्पाइनारियोविरिडे वायरस समूह है, जिसमें सदर्न राइस ब्लैक स्ट्रीक्ड ड्वार्फ वायरस (SRBSDV) व राइस गॉल ड्वार्फ वायरस (RGDV) शामिल हैं जो बीमारी के कारक हैं. 

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इनमें आर.जी.डी.वी की तुलना में SRBSDV का संक्रमण ज्यादा पाया गया है. रबी सीजन (Rabi Crop) के खपतवार में SRBSDV का स्थानांतरण होना चिंता की बात है, जिसका शीघ्र रोका जाना आवश्यक है. प्रो. काम्बोज ने वैज्ञानिकों से आह्वान किया कि अति शीघ्र वायरस के स्त्रोत को नियंत्रित करने की दिशा में काम करें.

वायरस किया डिकोड, गेहूं में हैं राहत
विश्वविद्यालय के प्लांट पैथोलॉजिस्ट डॉ. विनोद कुमार मलिक और बायोटैक्नोलॉजिस्ट डॉ. शिखा यशवीर ने न्यूक्लिक एसिड और कोट प्रोटीन क्षेत्रों में वायरस को डिकोड किया है. इसकी पुष्टि वायरस के लिए विशिष्ट प्राइमरों का प्रयोग और वायरस के एस4, एस9 और एस10 खंडों के आणविक अध्ययनों से हुई है. प्राप्त किए गए न्यूक्लियोटाइड अनुक्रम (SRBSDV) को NRBI, USA द्वारा अनुग्रहित किया गया है. वैज्ञानिकों ने पोवा अनोवा में SRBSDV की उपस्थिती पाई है जबकि गेंहू में फिलहाल कोई संक्रमण नहीं है.

2 वायरस मिले हैं, रिसर्च अभी भी जारी
अनुसंधान निदेशक डॉ. जीत राम शर्मा ने बताया कि विभिन्न नमूनों की लैब में जांच की, जिसमें दो वायरस की उपस्थिती मिली. कुछ नमूनों में सह-संक्रमण भी पाया गया. हम वायरस के पाथ का नियमित अध्ययन कर रहे हैं और विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक वायरस संक्रमण को रोकने के लिए हर दिशा में काम कर रहे हैं. पौध रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. हवासिंह सहारण ने स्वच्छ खेती पर जोर देते हुए नाली व मेढ़े पर नियमित सफाई करने पर जोर दिया, जिससे वायरस के आगे स्थानांतरण को रोका जा सकता है. डॉ. टोडरमल ने बताया कि पोवा पोइसी फैमिली का खरपतवार है जिसे यांत्रिक विधियों के साथ-साथ खपतवारनाशकों के मिश्रण (क्लोडिनाफोप 200 ग्राम और मैटरीब्यूजीन 240 ग्राम प्रति एकड़) से नियंत्रित किया जा सकता है.

किसानों के लिए सलाह:-
- अगेती नर्सरी बुवाई (25 मई से पहले) और अगेती रोपाई (25 जून से पहले) से बचें.
- नर्सरी को हॉपर्स से बचाना सबसे जरूरी है. इसके लिए अनुशंसित कीटनाशकों डायनोटीफ्यूरान 20 प्रतिशत एस.जी. / 80 ग्राम और पाइमेट्रोजिन 50 प्रतिशत डब्ल्यू.जी. / 120 ग्राम प्रति एकड़ प्रयोग करें.
- प्रभावित धान के पौधों को तुरंत उखाड़ कर नष्ट कर दें या मिट्टी में दबा दें.
- धान की खेती की सीधी बिजाई विधि को अपनाएं.