World Environment Day: सर्दी, गर्मी और बारिश के टूट रहे रिकॉर्ड खतरे की घंटी, बढ़ सकता है देश में मौत का आंकड़ा
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World Environment Day: सर्दी, गर्मी और बारिश के टूट रहे रिकॉर्ड खतरे की घंटी, बढ़ सकता है देश में मौत का आंकड़ा

World Environment Day: द अर्थ कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक तेजी से हो रहे इस जलवायु परिवर्तन (Climate Change) की वजह से अब इंसान की जान पर खतरा मंडरा रहा है. गर्मी, मलेरिया और दूसरी वायरल और बैक्टीरियल बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाएगा.

World Environment Day: सर्दी, गर्मी और बारिश के टूट रहे रिकॉर्ड खतरे की घंटी, बढ़ सकता है देश में मौत का आंकड़ा

World Environment Day 2023: इस साल फरवरी यानी सर्दी के महीने में दिल्ली से लेकर मध्य भारत यानी गुजरात तक हीट वेव का अलर्ट जारी किया गया. 2023 की फरवरी 1877 के बाद सबसे गर्म रही, जबकि इस वर्ष मई यानी गर्मी के मौसम में बारिश ने रिकॉर्ड तोड़ा. देश के सबसे गर्म राज्य राजस्थान में इतनी बारिश हुई कि उसने 100 वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ा. 7 बार वेस्टर्न डिस्टर्बेंस की वजह मौसम अचानक पलटा. मई के महीने में राजस्थान में 62 मिलीमीटर बारिश रिकॉर्ड हुई. 

आपने पिछले महीने उत्तर भारत में बारिश और मैदानों में पहाड़ों वाले मौसम का मजा जरूर लिया होगा, लेकिन क्या ये सिर्फ कुछ समय के एन्जॉयमेंट की बात है तो बिल्कुल नहीं. पल-पल बदल रहा मौसम फसलों और इंसान दोनों की सेहत बिगाड़ रहा है और ये जलवायु परिवर्तन का परिणाम है. द अर्थ कमीशन (The Earth commission) की रिपोर्ट के मुताबिक तेजी से हो रहे इस जलवायु परिवर्तन (Climate Change) की वजह से अब इंसान की जान पर खतरा मंडरा रहा है. 

बढ़ेगा इन बीमारियों का खतरा 
जलवायु परिवर्तन की वजह से पूरी दुनिया में बीमारियों का खतरा बढ़ जाएगा. भारत भी उन देशों में शामिल होगा, जहां गर्मी, मलेरिया और दूसरी वायरल और बैक्टीरियल बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाएगा.  

0.1 डिग्री तापमान बढ़ने से प्रभावित होंगे 14 करोड़ लोग 
इस रिपोर्ट के मुताबिक अगर दुनिया का तापमान इसी तरह बढ़ता रहा तो सबसे ज्यादा असर भारत पर होगा. इस शोध के मुताबिक तापमान में 2.7 डिग्री की बढ़ोतरी का असर 60 करोड़ से ज्यादा भारतीयों पर पड़ेगा. दुनिया में अगर तापमान की औसत बढ़त 1 डिग्री सेल्सियस है तो भारत में ये 1.2 डिग्री सेल्सियस मापी गई है. आने वाले समय में इस वजह से 9 करोड़ भारतीय बढ़ती गर्मी और लू का प्रकोप झेलने को मजबूर होंगे. अनुमान है कि हर 0.1 डिग्री तापमान बढ़ने के साथ 14 करोड़ लोग भीषण गर्मी की चपेट में आएंगे. फिलहाल दुनियाभर के छह करोड़ लोग ऐसी जगहों पर रह रहे हैं, जहां औसत तापमान 29 डिग्री से ऊपर है.  

50 साल में आ चुकी हैं 600 प्राकृतिक आपदाएं 
22 मई को यूनाइटेड नेशन्स (संयुक्त राष्ट्र) ने आंकड़े जारी किए. इसके मुताबिक भारत में मौसम में हो रहे अचानक बदलाव यानी Extreme Weather Events की वजह से पिछले 5 दशकों में 600 प्राकृतिक आपदाएं आई हैं, जिसकी वजह से भारत में 1,38,377 लोग मारे गए. यूएन की रिपोर्ट के मुताबिक इस दौरान दुनियाभर में प्राकृतिक आपदाओं की वजह से कुल जितनी मौतें हुईं, उनमें से 90% विकासशील देशों में हुई हैं.   

क्लाइमेट चेंज से बढ़ेगा मौत का आंकड़ा 
लैंसेट (Lancet) की रिपोर्ट के मुताबिक ग्लोब का उत्तरी हिस्सा, जहां दुनिया की कुल 14% आबादी ही रहती है, वो धरती के 92% कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है, जबकि दक्षिणी हिस्से में स्थित भारत अभी भी कार्बन उत्सर्जन के मामले में सीमा के अंदर ही है. इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत सबसे कम कार्बन उत्सर्जन करने वाले देशों में शामिल है. इसके बावजूद क्लाइमेट चेंज का सबसे ज्यादा नुकसान झेलने वाले देशों में भारत होगा. आने वाले वर्षों में भारतीयों को मौसम में हो रहे बदलावों और तापमान में हो रही बढ़ोतरी की वजह से बीमारियों को नए सिरे से जूझना और समझना होगा. फसलों को बोने के नए मौसम भी समझने होंगे और ज्यादा मौतों और बड़े आर्थिक नुकसान के लिए तैयार भी रहना होगा.  

2027 तक 1.5 डिग्री बढ़ जाएगा तापमान 
इससे पहले संयुक्त राष्ट्र की संस्था विश्व मौसम संगठन ने अनुमान लगाया था कि  2022 से 2027 यानी पांच वर्षों के बीच धरती का तापमान 19वीं सदी के मध्य की तुलना में 1.5 डिग्री से ज्यादा पर बढ़ जाएगा. एक अनुमान ये भी है कि अगर धरती का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ता है, तो 15 फीसदी प्रजातियां खत्म हो जाएंगी. धरती जैसे ही 2.5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्म होगी तो 30 फीसदी प्रजातियां खत्म हो जाएंगी.  

गर्मी की वजह से बढ़ीं मौतें 
Lancet की रिपोर्ट के मुताबिक गर्मी की वजह से भारत में वर्ष 2000 के मुकाबले 2021 में 55% ज्यादा मौतें हुई हैं. अकेले 2020 में 3 लाख 30 हजार लोग भारत में प्रदूषण और Fossil Fuel यानी गैसों के उत्सर्जन के शिकार होकर मारे गए.  

लंबे समय तक रह सकता है सीजनल फ्लू 
PSRI Multispeciality Hospital Delhi की क्रिटिकल केयर एक्सपर्ट डॉ नीतू जैन के मुताबिक मौसम में हो रहे लगातार बदलाव की वजह से सीजनल फ्लू समेत कई इन्फेक्शन्स और वायरस की मार सालभर झेलनी पड़ सकती है. हो सकता है कि मौसमी बुखार का कोई मौसम ही न रहे जैसे इस साल की शुरुआत में उत्तर भारत में लोगों ने दो हफ्ते से लेकर दो महीने तक खांसी जुकाम और बुखार को झेला, जबकि मौसमी बुखार आमतौर पर एक हफ्ते ही टिक पाता है.  

कार्बन एक्सचेंज पर चल रहा है काम 
पर्यावरणविद् राजेश सोलोमन पॉल के मुताबिक भारत कार्बन उत्सर्जन कम करने पर काम कर रहा है. पूरी दुनिया में कार्बन एक्सचेंज पर काम चल रहा है. मसलन अगर आपको पेड़ काटकर इंडस्ट्री लगा रहे हैं तो या तो आप किसी दूसरी जगह पर कई गुना ज्यादा पेड़ उगाएं या फिर किसी दूसरे देश या राज्य में पेड़ों की कटाई को रोकें।

ज्यादा तापमान झेलने वाली फसलों पर हो रहा काम  
गेंहू, मक्का और धान, भारत में उगाई जाने वाली तीन बड़ी फसलें  हैं. गेंहू 29 डिग्री से ज्यादा का तापमान नहीं झेल पाता, लेकिन अब जेनेटिक इंजीनियरिंग के माध्यम से गेंहू की ऐसी किस्म बनाने की कोशिश की जा रही है जो तेज गर्म मौसम को झेल पाए. ऐसे प्रयोग कई फसलों को लेकर हो रहे हैं, जिससे आर्थिक नुकसान भी कम हो और खाने पीने की कमी भी न हो.  

कैसे दे सकते हैं पर्यावरण बचाने में योगदान 
जलवायु परिवर्तन अब सेमिनार में चर्चा का विषय नहीं रहा. हमारे और आपके जीवन में प्रवेश कर चुका है. जरूरी है कि अब अगर आप ट्रैफिक सिग्नल पर गाड़ी का इंजन ऑफ कर दें. घर में बेवजह लाइट ऑन करके न रखें या कम से कम या बहुत जरूरी होने पर ही एसी चलाएं. इस तरह अपना छोटा सा योगदान देकर आप तापमान कम करने में मदद कर सकते हैं.

 

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