56 वर्ष बाद अब हिंदी में होगा हरियाणा विधानसभा का सारा कामकाज, आदेश जारी
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56 वर्ष बाद अब हिंदी में होगा हरियाणा विधानसभा का सारा कामकाज, आदेश जारी

विधानसभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता ने कहा कि हिंदी न केवल संवैधानिक दृष्टि से राजभाषा है, बल्कि यह प्रदेशवासियों की मातृभाषा भी है. विधानसभा प्रदेश की जनता का शीर्ष विधायी निकाय है. इसलिए यह जनता के हितों को समर्पित है. 

56 वर्ष बाद अब हिंदी में होगा हरियाणा विधानसभा का सारा कामकाज, आदेश जारी

चंडीगढ़ : हरियाणा विधानसभा बड़े बदलाव की साक्षी बनने जा रही है. अपने गठन के 56 वर्ष बाद हरियाणा विधानसभा का पूरा कामकाज हिंदी में शुरू किया जा रहा है. इसके लिए अरसे से योजना बना रहे विधानसभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता ने शुक्रवार को इस संबंध में आदेश जारी कर दिए हैं. अभी तक विधानसभा का कामकाज अंग्रेजी भाषा में हो रहा था. इस नए आदेश के बाद विधानसभा सचिवालय में सभी प्रकार के फाइल कार्य, पत्राचार और विधायी कामकाज से संबंधित सभी प्रकार की कार्यवाही हिंदी भाषा में होगी.

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ज्ञान चंद गुप्ता ने कहा कि भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय 1 में वर्णित अनुच्छेद 343 के अनुसार संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी.  संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतरराष्ट्रीय रूप होगा. 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने व्यापक चर्चा के बाद एक मत से हिंदी को राजभाषा बनाने का निर्णय लिया था. उन्होंने कहा कि संविधान की अनुपालना के लिए यह निर्देशित किया जाता है कि हरियाणा विधानसभा का पूरा कामकाज हिंदी भाषा में होगा. इसके लिए देवनागरी लिपि और अंकों का अंतरराष्ट्रीय रूप प्रयोग में लाया जाएगा.

विधानसभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता ने कहा कि हिंदी न केवल संवैधानिक दृष्टि से राजभाषा है, बल्कि यह प्रदेशवासियों की मातृभाषा भी है. विधानसभा प्रदेश की जनता का शीर्ष विधायी निकाय है. इसलिए यह जनता के हितों को समर्पित है. गुप्ता ने कहा कि जनता के हित कभी विदेशी भाषा के माध्यम से पूरे नहीं किए जा सकते. 

विधान सभा अध्यक्ष ने कहा कि अनेक शोध यह प्रामाणित कर चुके हैं कि किसी भी देश के विकास में उसकी मातृभाषा पर विशेष योगदान रहता है. विश्व के 56 देशों ने शिक्षा के माध्यम से लेकर शासकीय कामकाज अपनी मातृभाषा में करना शुरू किया है. इन सभी देशों ने अंग्रेजी वालों देशों की तुलना में अधिक विकास किया है. चीन, जापान और कोरिया इनके प्रमुख उदाहरण है. यूरोपीय देशों ने भी अपनी-अपनी स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहित किया है.

 

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