जान हथेली पर रखकर स्कूल जाने को मजबूर बच्चे, क्या? सुविधा मुहैया कराने वाली सरकार के दावे फेल
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जान हथेली पर रखकर स्कूल जाने को मजबूर बच्चे, क्या? सुविधा मुहैया कराने वाली सरकार के दावे फेल

रोजाना बच्चों को अपनी जान जोखिम में डालकर मुख्य सड़क को भारी रफ्तार से दौड़ते वाहनों के बीच में सड़क को पार कर पढ़ने के लिए जाना पड़ता है. क्योंकि प्राथमिक स्कूल बल्लभगढ़ बदरौला से गुजरने वाली मुख्य सड़क पर मौजूद है.

जान हथेली पर रखकर स्कूल जाने को मजबूर बच्चे, क्या? सुविधा मुहैया कराने वाली सरकार के दावे फेल

बल्लभगढ़ः प्रदेश का शिक्षा विभाग लगातार प्राइवेट स्कूलों को टक्कर देने का दावा व दम भरता रहा है. इन अधिकारियों की बातों में कितनी है हकीकत, जानने के लिए Zee मीडिया लगातार प्रदेश की स्कूलों में जाकर हालातों का जायजा ले रही है. इसी क्रम में संवाददाता अमित चौधरी पहुंचे तिगांव विधानसभा के बदरौला गांव के राजकीय प्राथमिक विद्यालय में.

दिखाई दे रहा है ये नजारा फरीदाबाद की तिगांव विधानसभा के बदरौला गांव में मौजूद राजकीय प्राथमिक विद्यालय का है. जहां एक तरफ रोजाना बच्चों को अपनी जान जोखिम में डालकर मुख्य सड़क को भारी रफ्तार से दौड़ते वाहनों के बीच में सड़क को पार कर पढ़ने के लिए जाना पड़ता है. क्योंकि यह प्राथमिक स्कूल बल्लभगढ़ बदरौला से गुजरने वाली मुख्य सड़क पर मौजूद है.

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जान हथेली पर रखकर स्कूल जाते बच्चे

इसलिए इस स्कूल में पढ़ने आने के लिए गांव के बच्चों छात्रों को यह सड़क पार करने के बाद ही स्कूल आना पड़ेगा. खानापूर्ति के लिए भी स्कूल के सामने न कोई ब्रेकर बना है और न ही कोई जेबरा क्रॉसिंग न कोई साइन बोर्ड सुबह शाम बच्चे जान हथेली पर रखकर इस मुख्य सड़क को पार करते हैं. तो वहीं, दूसरी ओर इस स्कूल में चौकीदार होने के बावजूद न चोरों को डर है न बाहर के किसी व्यक्ति को.

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इसी के साथ कोई भी बाहरी व्यक्ति व चोर इस स्कूल में कभी भी बेधड़क आ सकता है. क्योंकि इस स्कूल की बाउंड्री चारों तरफ से टूटी हुई है, जिसका परिणाम है कि स्कूल में कई बार चोरी भी हो चुकी हैं. वहीं, दूसरी ओर स्कूल का मुख्य द्वार कभी भी गिरने को तैयार है, जिला शिक्षा विभाग को सूचित किए जाने के बावजूद अभी तक कोई समाधान नहीं हुआ है.

शायद किसी बड़ी दुर्घटना का इंतजार है. सरकार भी ढांचागत सुविधाएं, पर्याप्त शिक्षक, फर्नीचर, किताबें मुहैया कराने का दावा सरकार के नेता अधिकारी भी खूब करते रहे हैं, लेकिन यह दावे नीचे तक क्यों नहीं पहुंच अमल क्यों नहीं हो पाते यह तो जांच का विषय है.

(इनपुटः अमित चौधरी)