Adipurush Controversy: आदिपुरुष के डायलॉग बेकार और टाइटल भी गलत, फिल्म नहीं बच्चों के लिए है ये कार्टून- संत
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Adipurush Controversy: आदिपुरुष के डायलॉग बेकार और टाइटल भी गलत, फिल्म नहीं बच्चों के लिए है ये कार्टून- संत

Adipurush Dialogue Controversy: आचार्य पवन सिन्हा के मुताबिक आदिपुरुष यानी प्रथम पुरुष टाइटल ही गलत चुना गया है. क्योंकि भगवान श्री राम पुरुषोत्तम थे ना कि प्रथम पुरुष थे. साथ ही कहा कि इस फिल्म को देखने पर ऐसा लग रहा है कि मानो कि बच्चों के कार्टून चैनल के लिए कोई फिल्म बना दी गई हो.

Adipurush Controversy: आदिपुरुष के डायलॉग बेकार और टाइटल भी गलत, फिल्म नहीं बच्चों के लिए है ये कार्टून- संत

Adipurush Controversy: प्रभास और क्रीति सेनन की फिल्म आदिपुरुष कल सिनेमाघरों में रिलिज हुई है. इसको लेकर अब विवाद भी सामने आने लगे हैं. फिल्म में जिस तरीके से चरित्रों का फिल्मांकन किया गया है उसको लेकर हिंदू संगठनों में काफी नाराजगी देखी जा रही है.

आचार्य पवन सिन्हा के मुताबिक आदिपुरुष यानी प्रथम पुरुष टाइटल ही गलत चुना गया है. क्योंकि भगवान श्री राम पुरुषोत्तम थे ना कि प्रथम पुरुष थे. जिस प्रकार के चेहरे और वस्त्र इस फिल्म में दर्शाए गए हैं ऐसा लगता है कि आवश्यकता से अधिक स्वतंत्रता लेने का प्रयास किया गया है.

साथ ही उन्होंने कहा कि कोई पीरियड फिल्म हमें दिखानी भी है तो क्या हम उसमें चरित्र चित्रण क साथ बिल्कुल छेड़छाड़ कर दिखा सकते हैं. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि यदि वर्ल्ड वार पर कोई फिल्म बनानी हो तो उसमें क्या हिटलर को 6 फुट का दिखाया जा सकता है, चेगुवारा की तरह उसका चेहरा मोहरा बना सकते हैं, क्या मुसोलिनी की तरह उसको घोड़े पर दिखा सकते हैं. उसकी एक सीमाएं है. 

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इसी तरह वाल्मीकिजी ने रामायण में जो वर्णन और चरित्र चित्रण किया है, उसमें दृश्य और प्रभाव डाल सकते हैं पर उस की भी एक सीमा है. उसमें राम, सीता, लक्ष्मण और भगवान हनुमान के के चरित्र चित्रण के साथ छेड़छाड़ नहीं कर सकते है. उन्होंने कहा कि इस फिल्म को देखने पर ऐसा लग रहा है कि मानो कि बच्चों के कार्टून चैनल के लिए कोई फिल्म बना दी गई हो.

उन्होंने कहा कि जिस तरह के संवाद हनुमानजी बोलते हुए दिखाई दे रहे हैं, वह कतई उचित नहीं है. उन्होंने फिल्म के लेखक मनोज मुंतशिर पर वार करते हुए कहा कि मनोज मुंतशिर जी ऐसा कैसे लिख सकते हैं, इन्हें राही मासूम रज़ा से सिखने की जरूरत है. क्योंकि हनुमानजी सामवेद के ज्ञाता थे और सामवेद भाषा के साथ में भाषा शैली का भी ग्रंथ है. साथ ही कहा कि ऐसे में सामवेद जानने वाला इस तर ह की भाषा का कैसे प्रयोग करता दिखाया जा सकता है. जबकि सामवेद के ज्ञाता की भाषा, भाषा शैली और भाव भंगिमा बेहद संतुलित होती है. यहां डायलॉग में भी शब्दों का गलत चयन किया गया है. जिनकी बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं थी. ऐसे में इस तरह आचार्य पवन सिन्हा ने फिल्म से बिल्कुल असहमति जाहिर की. 

Input: पियुष गौर

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