साहब! मैं जिंदा हूं, कागजों में मुझे मार दिया गया है, मुझे फिर से जिंदा कर दें
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साहब! मैं जिंदा हूं, कागजों में मुझे मार दिया गया है, मुझे फिर से जिंदा कर दें

Vishwanath Rait Is Alive: कितना बेबस और लाचार हो जाता होगा इंसान, जब उसे जीते जी मार दिया जाता है. जिंदा होने का सबूत वह खुद दे रहा होता है और सब कुछ सामने होते हुए भी अधिकारियों के चेहरे पर शिकन तक नहीं आती. 

खुद के जिंदा होने का सबूत दे रहे विश्वनाथ राउत

Vishwanath Rait Is Alive: कभी अख़बार, कभी ख़त कागज़ की... रोज़मर्रा की ज़रूरत कागज़... आने जाने की सहूलियत कागज़ की... जीने मरने की इज़्ज़त कागज़ की... प्यार की चिट्ठियां भी कागज़ की... काम की अर्जियां भी कागज़ की... जश्न में झंडियां भी कागज की... जिस्म की मंडियां भी कागज की...बने रातों का भी गवाह कागज...कहीं शादी, कहीं निकाह कागज...कहीं तलाक का गुनाह कागज...बने और करें तबाह कागज... छीन ले खेत, घर, ज़मीन, कागज़... पूछे आंखों की भी नमी कागज़...हर जगह यूं है लाजिमी कागज़... जैसे घर का है आदमी कागज़... कुछ नहीं है, मगर है सब कुछ भी... क्या अजब चीज़ है ये कागज़. फिल्म 'कागज' में भरत लाल बिहारी के रूप में पंकज त्रिपाठी के ये डॉयलॉग सरकारी सिस्टम के लिए एक तमाचे की तरह है. बेलगाम अधिकारी कुर्सी के नशे में चूर होकर व्यवस्था को मदहोश कर देते हैं तो कई भरत लाल बिहारी जीते जी मर जाते हैं. फिर वे अपने जिंदा होने का सबूत लेकर अधिकारियों के दरवाजे दर दरवाजे खुद को कागजों में जिंदा करने की भीख मांगते हैं. 

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फिल्मी सीन से बाहर निकलकर अब हकीकत में आते हैं. यहां भरत लाल बिहारी के रूप में विश्वनाथ राउत अपने जिंदा होने का सबूत लेकर अधिकारियों से कागज में भी जिंदा होने करने की भीख मांग रहे हैं. विश्वनाथ राउत जैसे लोग अफसरों से गिड़गिड़ाते हैं, 'साहब! मैं जिंदा हूं लेकिन कागज में मुझे मृत घोषित कर दिया गया है. कृपया मेरे आवेदन को पढ़ लें. मुझे सही सलामत सामने से देख लें. मैं सांस ले रहा हूं. मेरे शरीर में आत्मा है. अभी मुझमे जान बाकी है और मैं चल फिर सकता हूं. मैं आपके सामने जिंदा खड़ा हूं. मुझे कागजों में भी जिंदा कर दें.'

मामला पश्चिम चंपारण के नरकटियागंज के कुकरा पंचायत के मनियारी गांव के 68 साल के बुजुर्ग व्यक्ति विश्वनाथ राउत का बताया जा रहा है. विश्वनाथ राउत ने अपने जिन्दा होने का सबूत प्रखंड कार्यालय में दिया है. बुजुर्ग का आवेदन किसी को भी भावुक करने के लिए काफी है. बुजुर्ग ने बीडीओ यानी प्रखंड विकास पदाधिकारी, नरकटियागंज को दिए आवेदन में लिखा है, 'मुझे मृत घोषित कर दिया गया है. मुझे तीन साल पहले से वृद्धा पेंशन मिल रहा था. अब मुझे मालूम हुआ है कि मुझे कागज में मृत घोषित कर दिया गया है, जिससे मेंरा पेंशन नहीं मिल रहा है. कृपया मेंरे कागजात को देखकर मुझे जिन्दा करने की कृपा करें, ताकि मैं पेंशन पाने का हकदार बन सकूं.'

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बुजुर्ग विश्वनाथ रावत को पिछले दो-तीन सालों से लगातार वृद्धा पेंशन मिल रहा था. अचानक से उनका वृद्धा पेंशन रुक गया. काफी खोजबीन के बाद पता चला कि विश्वनाथ रावत को मृत घोषित कर दिया गया है. इसके बाद से विश्वनाथ राउत अपने जिंदा होने के सबूत कार्यालय में दे रहे हैं. अधिकारियों के समक्ष खड़ा होकर यह बता रहे हैं कि साहब मैं जिंदा हूं. कृपया कागज में पुनः जिंदा कर दें, ताकि फिर से वृद्धा पेंशन उठा सकूं. 

इस पूरे प्रकरण में बीडीओ पप्पू कुमार ने बताया, पेंशनधारियों को हर साल ई केवाईसी  करना होता है. ऐसा नहीं करने पर पेंशन स्वतः रुक जाता है. इस मामले में भी ऐसा ही हुआ होगा. बहरहाल, बुजुर्ग का आवेदन जिला कार्यालय में भेज दिया गया है, ताकि उनको फिर से पेंशन मिल सके.

रिपोर्ट: धनंजय द्विवेदी

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