पिछले 14 सालों में ये करीब 200 से ज्यादा छोटी-बड़ी कलाकृतियों को एक जीवंत रूप दे चुके हैं. इन कलाकृतियों को यह अपने घर के ही एक छोटे कमरे में संग्रहालय का रूप देकर संभाल कर रखे हैं.
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रामगढ़: प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती इसे चरितार्थ कर रहे है रामगढ़ निवासी सेवानिवृत्त अनिल कुमार मिश्रा. बेकार समझ कर बाहर फेंकी गई चीजों में अपने हुनर के बदौलत जान डालने वाले अनिल मिश्रा के इस प्रयास को आज खूब तारीफ हो रही है वही दूसरी तरफ अनोखी कलाकृति को आगे बढ़ाने में भी बल मिल रहा है. इस बारे में अनिल कुमार मिश्रा बताते हैं कि लकड़ियों को संग्रह कर के मैं कई तरह के जानवर,बर्ड,ह्यूमेंस्ट्रेक्चर बनाया,आकृति बनाया है.
अनिल मिश्रा एक रिटायर्ड शिक्षक है जिन्होंने लगभग 33 सालो तक डीएवी पब्लिक स्कूल में बतौर शिक्षक बेहतर योगदान देने के बाद 2014 में रिटायर्ड हो गए. इनके हाथो में गज़ब की कला है जिसके इस्तेमाल से ये बेजान बेकार एवं कूड़ा समझ कर फेंकी गई लकड़ियों एवम अन्य दूसरी चीजों में जिवंत भाव देने की कोशिश करते है. कला से अनिल जी का रिश्ता बहुत ही पुराना है. ये अपने जीवन के शुरूआती दिनों से ही पेंसिल चित्रकला में काफी रूचि रखते थे जिसकी हर जगह तारीफ़ की जाती थी. 2006 में एक शाम मंदिर से लौटते वक्त उन्हें पेड़ का एक बहुत छोटा सा ठुथ मिला जिसको उन्होंने एक चिड़िया का रूप दिया. इसे बनाते वक़्त उनके पिताजी उनसे मिलने उनके घर पर आये और अनिल की मेहनत को देख कर उनकी तारीफ़ की और उनसे तीन शब्द कहे इसे जारी रखना उसके बाद वे वापस चले गए.
कुछ दिन बाद उनके पिता एक गंभीर बिमारी से ग्रसित हुए और इलाज के दौरान गुजर गए. अनिल को अपने पिता के वो तीन शब्द याद थे जिसकी बदौलत उन्होंने अपनी कला को आगे बढ़ाया. पिछले 14 सालों में ये करीब 200 से ज्यादा छोटी-बड़ी कलाकृतियों को एक जीवंत रूप दे चुके हैं. इन कलाकृतियों को यह अपने घर के ही एक छोटे कमरे में संग्रहालय का रूप देकर संभाल कर रखे हैं. इस बारे में उनके छोटे भाई सुशील कुमार मिश्रा बताते हैं कि ये जब बाहर के कचड़ों को घर में लाने लगे तब हम लोगों को अच्छा नहीं लगता था लेकिन अब इनके प्रयास से लगता है कि ये कहीं ना कहीं प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत अभियान के सपनों को साकार कर रहे हैं जो इनके जीवन का अब मकसद बन चुका है.
इनके इस प्रयास से समाज में एक संदेश भी जा रहा है कि कोई भी चीज बेकार नहीं होती है. इसे लेकर उनके परिवार वाले काफी गौरवान्वित महसूस करते हैं कि कोई भी चीज बेकार नही होता है. इस विषय पर उनके पुत्र बताते हैं कि कभी मैं समझता हूं कि यह सोसायटी में दिया हुआ. एक मैसेज है अगर आप में कुछ करने की इच्छा शक्ति है. अगर आप समाज केलिय कुछ करना चाहते है यो हमारे आस पास बहुत कुछ बिखरा हुआ है ,वे किसी भी चीज में कूड़ा कबाड़ नहीं देखते है उस कचरे से एक जीवंत रूप देना रियल्टी में एक अच्छा चीज है.
अनिल जी के कामों को शुरुआती दौर में देखने के बाद इनके पत्नी को भी अच्छा नहीं लगता था लेकिन आप ये पूर्ण रूप से उनका सहयोग करने लगी हैं. वर बताती हैं कि कई बार तो इनके खाने की टेबल पर रखा हुआ चाय एवं खाना बेकार हो जाता था लेकिन अब इनके इस छोटे संग्रहालय को देखकर मुझे इन पर गर्व भी होता है.
इनपुट- झूलन अग्रवाल
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